क्या अब न्यायपालिका ही बंगाल में हिंदुओं के अस्तित्व को बचा सकती है?

ममता ने बंगाल को बर्बाद कर दिया है!

सौजन्य से khabar36

बंगाल की राजनीति रक्तपात, प्रतिशोध और राजनीतिक मूल्यों में गिरावट से भरी हुई है। सीएम ममता बनर्जी ने हाल ही में बीरभूम में 8 लोगों को जिंदा जला देने के एक अमानवीय और बर्बर मामले पर बड़े ठंडे दिल से प्रतिक्रिया दी और इसे एक सामान्य दुर्भाग्यपूर्ण मामला बताया। इतना ही नहीं मामले की गंभीरता को समझकर तृणमूल के गुंडों पर कार्रवाई करने के बजाय वो अन्य राज्यों में हुए घटनाक्रम से इसकी तीव्रता से तुलना करने लगीं। यह संवेदनहीनता की हद है और शायद इसीलिए  राजनीतिक कीचड़ उछालने, उदासीनता और निष्क्रियता के कारण बंगाल में हिंदुओं को केवल न्यायपालिका ही अंतिम उम्मीद लगती है।

और पढ़ें:- नाजी शासन का पर्याय बनता जा रहा है ममता दीदी का बंगाल

राजनीतिक नैतिकता का हो रहा है घोर पतन

इस वीभत्स मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने इसकी तुलना दूसरे राज्यों में भी हो रहे किसी भी सामान्य दुर्भाग्यपूर्ण मामले से की। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने राज्य के एक कार्यक्रम में कहा- “सरकार हमारी है, हम अपने राज्य के लोगों के बारे में चिंतित हैं। हम कभी नहीं चाहेंगे कि किसी को तकलीफ हो। बीरभूम, रामपुरहाट की घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। मैंने ओसी, एसडीपीओ को तत्काल बर्खास्त कर दिया है। मैं कल रामपुरहाट जाऊंगी।” सीएम ने राज्य की कानून व्यवस्था की विफलता को कम करने की लज्जाजनक कोशिश करते हुए कहा कि इस तरह की घटनाएं अन्य राज्यों जैसे यूपी, राजस्थान, गुजरात आदि में अक्सर होती हैं।

ममता बनर्जी ने बंगाल के हिंदुओं के खिलाफ सभी राजनीतिक हिंसा और नरसंहार को कालीन के नीचे दबा दिया है। वह ऐसे हर मामले को भाजपा की साजिश, फेक न्यूज, पुराना मामला, आत्महत्या या पारिवारिक कलह के रूप में लेबल कर जनता को भ्रमित करती हैं। इस मामले में भी उन्होंने अपने नाम के विपरीत पीड़ितों और मृतकों के लिए कोई सहानुभूति या करुणा नहीं दिखाई है बल्कि इसे बिहार, यूपी, गुजरात आदि में नियमित होने वाले मामलों के रूप में तुच्छ बनाने की कोशिश की है।

राजनीतिक आदान-प्रदान अभी भी चालू है

राजनीति कभी नहीं रुकती, यहां तक ​​कि बीरभूम जैसे मामलों में तो और नहीं, जहां बच्चों के साथ एक परिवार को जिंदा जला दिया गया था। दोषारोपण का खेल चालू है। विपक्ष सरकार पर आरोप लगा रहा है, बदले में सत्ता पक्ष विपक्ष पर सरकार को बदनाम करने की साजिश करने का आरोप लगाता है और अंततः राजनीतिक हिंसा के शिकार लोगों को कोई फायदा नहीं होता है। विपक्ष के नेता और भाजपा चाहते हैं कि सीएम इस्तीफा दें और केंद्र को राष्ट्रपति शासन लगाने का सुझाव दें, परन्तु इन सबके बीच ममता अपनी संवेदनहीनता और बेशर्मी की हद भी पर कर चुकी है।

और पढ़ें:-हास्यास्पद! अब भी ‘महामहिम’ चुनने का सपना संजो रही हैं ममता बनर्जी

पीएम मोदी ने भी यह उम्मीद करते हुए एक बयान दिया कि राज्य सरकार सभी को न्याय दिलाएगी और इस जघन्य मामले के दोषियों को दंडित करने के लिए केंद्र के  समर्थन का पूरा भरोसा दिया। गृह मंत्रालय ने इससे पहले राज्य से बीरभूम की घटना पर 72 घंटे के भीतर रिपोर्ट मांगी थी।

पर, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिकाओं को स्वीकार किया और स्पष्ट निर्देश दिए कि अगले आदेश तक अपराध स्थल की बारीकी से निगरानी की जानी चाहिए और जिला न्यायाधीश पूर्व बर्धमान की उपस्थिति में साइट पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं। अदालत ने सीएफएसएल दिल्ली को अपराध स्थल से सभी फोरेंसिक सामग्री एकत्र करने का भी निर्देश दिया।

और पढ़ें:- ममता बनर्जी के राज्य में हिंदुओं को न्याय मिलना मुश्किल नहीं, नामुमकिन है!

कलकत्ता एचसी ने पहले भी चुनाव के बाद की राजनीतिक हिंसा के पीड़ितों को कुछ राहत प्रदान की थी और सभी आरोपों की जांच के लिए सीबीआई जांच का आदेश दिया था। एक लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र के सभी 4 स्तंभों की अपनी भूमिका होती है, लेकिन जब तीन स्तंभ एक साथ विफल हो जाते हैं, तो नागरिक आशा और प्रार्थना करते हैं कि न्यायपालिका ऐसे संकट के समय में उठे और सभी के लिए ‘एक सम्मानजनक जीवन के साथ न्याय और सुरक्षा सुनिश्चित करे।

Exit mobile version