इन दिनों एक फिल्म, द कश्मीर फाइल्स, विश्व स्तर पर ट्रेंड कर रही है और बड़े पैमाने पर नाम कमा रही है। यह कश्मीरी पंडितों और अन्य लोगों पर की गई भयानक क्रूरताओं का हिस्सा दिखाता है। यह फिल्म वास्तविक तथ्यों पर आधारित है और सच्चाई से कश्मीरी पंडितों पर हुए बर्बरता को दर्शाता है। 1990 के दशक में कश्मीर घाटी में रहने वाले अधिकांश हिन्दुओं का कत्लेआम किया गया था। हिन्दुओं का अपना देश कोई है तो वह भारत है और वहां भी हिन्दुओं पर इतनी क्रूरता इस बात को दर्शाता है की उस समय देश का नेतृत्व कर रहे लोगों को हिन्दुओं की कोई परवाह नहीं थी।
आपको बता दें कि कश्मीर घाटी में इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा हजारों कश्मीरी हिंदुओं के साथ बलात्कार, लूटपाट और हत्या की गई थी। जो बच गए वे डर के मारे कश्मीर छोड़कर अपने ही देश में शरणार्थी बन गए। इस जघन्य घटना के बाद कश्मीरी पंडितों को जम्मू के शिविरों में अमानवीय परिस्थितियों में उनका पुनर्वास किया गया था और आपको बता दें की इन सब जघन्य अपराध और कश्मीरी पंडितों का हत्यारा जिसे कश्मीरी पंडितों का कसाई भी कहते हैं वो नाम है बिट्टा कराटे का। कश्मीरी पंडितों का दर्द जितना बड़ा है, उससे ज्यादा दर्दनाक यह है कि उनके हत्यारों को सजा दिलाने में 31 साल से ज्यादा लग गये!
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आइये जानते हैं कौन हैं बिट्टा कराटे –
बिट्टा कराटे उर्फ फारूक अहमद डार पर 1990 में पलायन के दौरान कई कश्मीरी पंडितों की हत्या करने का आरोप है। 1991 में एक साक्षात्कार में, कराटे ने कहा था कि उसने ’20 से अधिक कश्मीरी पंडितों’ या ‘शायद 30-40 से अधिक’ को मार डाला, जबकि कश्मीरी पंडितों ने कहा कि वे इस जेकेएलएफ आतंकवादी को ‘पंडितों का कसाई’ मानते हैं। इतिहास दर्शाता है कि समुदाय को अपनी मातृभूमि से भागने और घाटी से पलायन करने के लिए मजबूर किया गया था, जब उन्हें ‘रालिव, गलिव या सालिव’ (कन्वर्ट, डाई या लीव) के बीच चयन करने के लिए मजबूर किया गया था। कहा जाता है कि कराटे ने जेकेएलएफ के शीर्ष कमांडर अशफाक मजीद वानी के आदेश का पालन किया था और कश्मीरी पंडितो और हिन्दुओं की निर्मम हत्या की थी।
आज हम कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार और नरसंहार की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि कश्मीरी पंडितों का हत्यारा या कहें कसाई बिट्टा कराटे का अब आखिरी समय आ गया है। दरअसल जून 1990 में गिरफ्तार होने तक बिट्टा कराटे ने कश्मीरी पंडितों के नरसंहार किया था । News18 के खबरों के अनुसार यह एक ऐसा नाम है जो अभी भी भारत के कश्मीरी पंडितों को परेशान करता है और अब, 1990 में “20 से अधिक” कश्मीरी पंडितों या “शायद 30-40 से अधिक” की हत्या करने के 31 साल बाद बिट्टा कराटे को एक स्थानीय व्यवसायी और कराटे के करीबी दोस्त सतीश टिक्कू की हत्या के मुकदमे का सामना करना पड़ रहा है।
आपको बतादें कि टिक्कू के परिवार ने अधिवक्ता उत्सव बैंस के माध्यम से और कार्यकर्ता विकास रैना के समर्थन से श्रीनगर सत्र न्यायालय का रुख किया है और बिट्टा कराटे मामले में अदालत की सुनवाई बुधवार को सुबह 10.30 बजे शुरू होगी जहां उसके पाप की सजा का हिसाब होगा।
गौरतलब है कि वर्षों से जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) का नेतृत्व कर रहे कराटे, फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ के बाद फिर से सुर्खियों में आया , जिसमें कई कश्मीरी पंडित मारे गए और लाखों कश्मीर घाटी से भाग गए और अपने देश में हीं शरणार्थी का जीवन व्यतीत करने लगे। ज्ञात हो कि 1991 में नजरबंदी के दौरान उसने एक साक्षात्कार दिया जिसमें उसने कहा कि वह एक आतंकवादी बन गया “क्योंकि मुझे स्थानीय प्रशासन द्वारा परेशान किया गया था”। कराटे ने कहा कि उसने जेकेएलएफ के शीर्ष कमांडर अशफाक मजीद वानी द्वारा दिए गए “ऊपर से आदेश” का पालन किया। वानी वह शख्स था जो बिट्टा कराटे और अन्य को आतंकी प्रशिक्षण के लिए पाकिस्तान ले गया था। बाद में वह एक मुठभेड़ में मारा गया।
हिंदू जान की कोई कीमत नहीं थी
कराटे ने स्वीकार किया कि उसका पहला शिकार सतीश कुमार टिक्कू था और उसे “उसे मारने के लिए ऊपर से आदेश मिला। वह एक हिंदू लड़का था”। कराटे ने गिरफ्तार होने से पहले कथित तौर पर 42 लोगों की हत्या कर दी थी। उन्होंने कहा, ‘मैंने 20 या 30 गज की दूरी से मारने के लिए पिस्तौल का इस्तेमाल किया। कभी-कभी मैं सुरक्षाकर्मियों पर गोली चलाने के लिए एके-47 राइफल का भी इस्तेमाल करता था।
उसकी गिरफ्तारी के सोलह साल बाद, कराटे को 2006 में जमानत पर रिहा कर दिया गया था, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत उनकी नजरबंदी को रद्द कर दिया गया था। उसकी रिहाई पर कश्मीर घाटी में उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया, एक जुलूस के दौरान उन पर फूलों की पंखुड़ियों की वर्षा की गई। उसे पुलवामा हमले के बाद आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत टेरर फंडिंग के आरोप में 2019 में एनआईए द्वारा फिर से गिरफ्तार किया गया था। यह अफ़सोस की बात है की ‘कश्मीरी पंडितों के कसाई’ को कोर्ट में लाने में 31 साल लग गए।
क्योंकि पिछले कई दशकों से वो बचता रहा है क्योंकि राज्य में उसके समर्थन वाली सरकार रही और केंद्र में कांग्रेस ने कभी भी कश्मीरी पंडितों के हत्यारों पर कार्यवाई नहीं की जिसके कारण आज तक कश्मीरी पंडितों को न्याय नहीं मिल पाया। लेकिन जब से केंद्र में मोदी सरकार आई है कश्मीरी पंडितों के मन में न्याय की उम्मीद जगी है और आज के परिदृश्य की बात करें तो मोदी सरकार में घाटी की स्थिति बदल रही है।
पिछले 1-2 सालों में मोदी सरकार अपने प्रयासों से आतंक का कमर तोड़ने में कामयाब हुई है और स्थिति धीरे-धीरे बेहतर हो रही है। आज बिट्टा कराटे की बारी आई है आने वाले समय में कश्मीरी हिन्दुओं पर जुल्म करने वालों का सारा हिसाब मोदी सरकार अपने मन में ठान चुकी है और बिट्टा कराटे जैसे खूंखार अपराधी को सजा दिलाकर अब कश्मीरी पंडितों को न्याय दिलाने का कार्य करेगी।
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