जिसकी हैसियत नदियों में तैरने की नहीं वो बात समंदर की करने लगे तो वह हंसी का पात्र होता है ,कुछ ऐसा ही हाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भी है। पश्चिम बंगाल की राजनीति के बाहर ममता बनर्जी का कोई जनाधार नहीं है और पिछले साल हुए विधान सभा चुनाव में भाजपा ने उनकी राजनितिक ढांचे को डगमगा दिया था। अब कहें तो पश्चिम बंगाल की राजनीति में ममता पहले जैसी नेत्री नहीं रह गयी हैं लेकिन ममता की अकड़ इतनी है की मानो उनसे बड़ा कोई दूसरा नेता ही नहीं है।
बस सुर्ख़ियों में रहने के लिए ऐसे बयान देती हैं ममता बनर्जी
दरअसल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल इसी साल जुलाई में खत्म होने जा रहा है। ऐसे में एक नए राष्ट्रपति का चुनाव करने की जरूरत है और ममता बनर्जी की राय है कि राष्ट्रपति के चुनाव में वह निर्णायक भूमिका निभाने जा रही हैं। ऐसी बातों से उन पर दया आती है कि जो खुद अपना विधानसभा चुनाव नहीं जीत सकीं वो इस तरह की बात कर रही हैं। सपने सबको देखने का हक़ है पर ममता अपने छोटे जनाधार को अच्छे से जानती हैं बस सुर्ख़ियों में रहने के लिए ऐसे बयान’ देती रहती हैं। ममता बनर्जी का अहंकार इतना अधिक बढ़ गया है कि वह सोचती है कि वह भारतीय राजनीति का आधार हैं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री भ्रम में जी रही हैं।
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ममता बनर्जी पूरे भारत में भारतीय जनता पार्टी के बढ़ते जनाधार को नहीं समझ पाई हैं या यूं कहें की वो सत्य नहीं पचा पा रही हैं । हाल ही में राज्यों में विधानसभा चुनाव की जीत के बाद भाजपा के चुनावी रथ को पुनर्जीवित कर दिया गया है। TMC सुप्रीमो अब भी सोंचती हैं कि भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर कमज़ोर किया जा सकता है लेकिन त्रिपुरा और गोवा में लगातार हार के बाद भी टीएमसी को सबक नहीं मिला है। अगर इतने हार के बाद भी कोई ऐसा सोंचता है तो यह समझा जा सकता है की वो मानसिक दिवालियापन का शिकार हो चूका हैं।
इसी साल जून-जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों को लेकर ममता बनर्जी का मानना है कि वह विशाल एनडीए गठबंधन को मात दे सकती हैं और चमत्कारिक रूप से राष्ट्रपति भवन में विपक्षी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को जीता सकती हैं हालांकि उनकीये सोच और ऐसे कथन हास्यास्पद हैं।
ममता बनर्जी की बीजेपी को धमकी
बुधवार को, ममता बनर्जी ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस के समर्थन के बिना, केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आगामी राष्ट्रपति चुनाव अकेले नहीं जीत पाएगी। उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति चुनाव जल्द ही होंगे। हमारे समर्थन के बिना आप यानी भाजपा आगे नहीं बढ़ेंगे। आपको यह नहीं भूलना चाहिए।”
बनर्जी ने दावा किया कि भगवा पार्टी के पास देश के कुल विधायकों में से आधे विधायक नहीं हैं और पार्टी के लिए राष्ट्रपति चुनाव जीतना आसान नहीं होगा। दिलचस्प बात यह है कि बंगाल के मुख्यमंत्री ने ‘अखिलेश यादव’ कार्ड से बीजेपी को धमकाया।
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उन्होंने भाजपा को यह याद दिलाने की कोशिश की कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सीट का हिस्सा बढ़ गया है और यह भाजपा की राष्ट्रपति चुनाव में पानी फेर देगा। राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे की भविष्यवाणी करने के लिए अपना पैमाना तय करते हुए ममता ने बीजेपी को ‘बड़ी बात’ नहीं करने की चेतावनी दी।
ममता बनर्जी अपना राजनीतिक ढिंढोरा पीटने में लगी रहती हैं पर राजनीतिक जानकार और जनता उन्हें भाजपा के लिए एक चुनौती के रूप में नहीं देखते हैं। इसलिए, अगर ममता बनर्जी सोचती हैं कि वह विपक्ष को अपनी पसंद का राष्ट्रपति चुनने के लिए एक साथ ला सकती हैं, तो वह हास्यास्पद रूप से गलत हैं।
राज्यसभा और कई राज्यों पर अपने नियंत्रण के माध्यम से, भाजपा अपनी पसंद का राष्ट्रपति चुन सकती है। राष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं के विधायकों द्वारा किया जाता है। संसद के दो सदनों पर नियंत्रण के अलावा, भाजपा भारत के 17 राज्यों में सरकार चला रही है।
एनडीए ऊपरी सदन में बहुमत हासिल करने के लिए है तैयार
विधानसभा चुनावों में हालिया जीत के दम पर एनडीए संसद के ऊपरी सदन में बहुमत हासिल करने के लिए तैयार है। भगवा पार्टी को यूपी में राज्यसभा की तीन और सीटें मिलेंगी। इसके अतिरिक्त, यह असम, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में कांग्रेस से चार सीटें छीनने के लिए तैयार है। राज्यसभा में राष्ट्रवादी पार्टी की सीट का हिस्सा 97 से बढ़कर 104 होने की उम्मीद है।
दूसरी ओर, राज्यसभा चुनाव के अंत तक, भाजपा के एनडीए गठबंधन के सदस्यों के पास आराम से 19 सीटें होंगी, जिससे ऊपरी सदन में एनडीए की कुल संख्या 123 हो जाएगी। बहुमत के लिए, 243 सीटों में से एक पार्टी या गठबंधन को 122 सीटों की आवश्यकता होती है।
इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि विपक्ष सर्वसम्मति से राष्ट्रपति पद के लिए भाजपा के उम्मीदवार का समर्थन करेगा। अगर ऐसा नहीं भी होता है, तो विपक्ष कभी भी भाजपा के उम्मीदवार के खिलाफ वोट करने के लिए एक साथ नहीं आ पाएगा। राष्ट्रपति चुनाव को लेकर तय हो गया है कि एनडीए के उम्मीदवार की जीत होगी।
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इसलिए ममता बनर्जी के लिए भाजपा को धमकी देना हास्यास्पद है। भारत के नए ‘महामहिम’ के चुनाव में उनकी कोई भूमिका नहीं है। जितनी जल्दी उन्हें इस बात का एहसास होगा, उतना ही उनके और टीएमसी के लिए बेहतर होगा नहीं तो ममता बनर्जी को राजनीती में फिर से मुंह की खानी पड़ेगी जिससे बचा बचाया जनधार भी साफ़ हो जाएगा।