मयंक जोशी – अवसरवादी मां के वंशवादी पुत्र प्रासंगिक बने रहने के लिए अब जाति कार्ड खेल रहे हैं

जातिवादी अखिलेश से मिलते ही मयंक के भीतर का 'ब्राह्मण' जाग गया!

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नांच न जाने आँगन टेढ़ा ,कुछ ऐसा ही हाल भाजपा सांसद रीता बहुगुणा जोशी के बेटे मयंक जोशी का है। मौकापरास्त, बरसाती मेंढक, आया राम-गया राम, दलबदलू…..ऐसे अनेकों नाम हैं जिनकी संज्ञा भारतीय राजनीति में आम तौर पर उन लोगों को दी जाती है जो एक दल से दूसरे दल की परिक्रमा मात्र इसलिए करते हैं, क्योंकि उनका अंतिम लक्ष्य सत्ता प्राप्ति होता है, न कि जनता की सेवा। ऐसे ही एक मौकापरस्त परिवार से निकले मयंक जोशी हैं, जिन्होंने अब पूर्णतः समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली है पर अभी भी उनकी माताश्री और मामा श्री भाजपा में डटे हुए हैं।

दरअसल 5 मार्च को समाजवादी पार्टी में शामिल होने के कुछ घंटों बाद, भाजपा सांसद रीता बहुगुणा जोशी के बेटे मयंक जोशी ने वंशवाद की राजनीति पर भगवा पार्टी के चयनात्मक रुख की आलोचना की। मीडिया से बात करते हुए, मयंक जोशी ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सहित कई उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा कि भाजपा एक समान तरीके से ‘एक परिवार, एक टिकट’ की नीति लागू नहीं कर रही है। जेपी नड्डा के नेतृत्व वाली पार्टी पर मयंक ने ब्राह्मणों के खिलाफ “पक्षपातपूर्ण” होने का आरोप लगाया।

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मयंक जोशी ने कहा, “मेरी जानकारी के अनुसार, 4 ब्राह्मण नेताओं ने अपने बेटे और बेटियों के लिए टिकट की मांग की क्योंकि उन्हें लगा कि उनकी उम्र 73-74 है और बीजेपी 75 वर्ष की आयु के किसी को भी टिकट नहीं देगी।इन नेताओं में रीता बहुगुणा जोशी, कलराज मिश्र, सत्यदेव पचौरी और हृदय दीक्षित शामिल थे। उन्होंने इनमें से किसी को टिकट नहीं दिया। शायद उन्होंने सोचा कि हमें उन्हें कुछ नहीं देना चाहिए क्योंकि ब्राह्मण हमें वोट देते हैं आप देखेंगे कि दूसरी जाति के लोगों को टिकट मिलता है।”

लखनऊ छावनी सीट के लिए दांव पर लगी लड़ाई

इस सीट पर बीजेपी के ब्रजेश पाठक और सपा के सुरेंद्र सिंह गांधी के बीच सीधा मुकाबला है। वर्तमान में, पाठक योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में कानून, न्याय और ग्रामीण इंजीनियरिंग सेवा मंत्री के रूप में कार्यरत हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां से बीजेपी की रीता बहुगुणा जोशी ने सपा प्रत्याशी अपर्णा यादव को 33,796 मतों के अंतर से हराकर यहां से जीत हासिल की थी और उन्हें मंत्री बनाया गया था। हालांकि, 2019 के आम चुनाव में इलाहाबाद से लोकसभा के लिए निर्वाचित होने के बाद उन्हें विधानसभा से इस्तीफा देना पड़ा था।

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हालांकि उपचुनाव में यह सीट सुरेश चंद्र तिवारी ने जीती थी लेकिन अटकलें लगाई जा रही थीं कि हाल ही में बीजेपी में शामिल हुईं अपर्णा यादव और रीता बहुगुणा जोशी के बेटे मयंक भी पार्टी से टिकट पाने की दौड़ में हैं। आखिरकार पाठक, जो लखनऊ सेंट्रल से मौजूदा विधायक थे, उनको लखनऊ छावनी से नामांकित किया गया।

वहां से कांग्रेस के दिलप्रीत सिंह विर्क और बसपा के अनिल पांडे अन्य प्रमुख दावेदार हैं ।मयंक जोशी और परिवार सत्ता के लोभ में आकर कभी भी कुछ भी कर सकता है। उदाहरण सबके सामने है, इतना सब मिलने के बाद भी उनकी महत्वाकांक्षाएं खत्म होने का नाम नहीं ले रही है, इसलिए यह जोशी परिवार मौकापरस्ती का पर्याय बन चुका है। आने वाले दिनों में मयंक जोशी को पता चल जाएगा की जिस समाजवादी पार्टी में वो गए हैं वहां अपने परिवार के लोगों तक की इज्जत नहीं होती वहां मयंक जोशी जैसे मतलबी नेता का क्या हश्र जोगा ये किसी से छुपा नहीं है।

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