‘फेक न्यूज का बेताज बादशाह’ न्यू यॉर्क टाइम्स अब व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी बनने की ओर बढ़ चला है

भारत के विरुद्ध न्यूयॉर्क टाइम्स की सारी चाल होगी धराशाई

न्यूयॉर्क टाइम्स हड़ताल

सौजन्य से गगूल

परिवर्तन संसार का नियम है, यह बात अमेरिकी पोर्टल The New York Times ने इतनी संजीदा ले ली कि अब वो फेक न्यूज़ के प्रयाय बन चुके Whatsapp और Whatsapp University के प्रभाव को मिटा फ़र्ज़ी तथ्यों और ख़बरों के प्रसार में अपना अर्थात The New York Times का आधिपत्य स्थापित करने की जुगत में है।

अनगिनत बार भारत के विरुद्ध खबरें प्लांट की गयीं

यूं तो भारत के प्रति नाराज फूफा न्यू यॉर्क टाइम्स ने अनगिनत बार भारत के विरुद्ध खबरें प्लांट की हैं, जो नहीं होता था वो दिखाया है, ऐसे में उसी प्रवृत्ति को आगे बढ़ाने के क्रम में उसने पुनः भारत के प्रति नस्लवादी रवैये को प्रदर्शित करने के साथ ही, द न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें दावा किया गया कि भारत में हुई दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल ने देशभर में सेवाओं को बाधित कर दिया जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के कर्मचारी शामिल थे।

इस खबर को प्रकाशित करने के लिए जिस फोटो का उपयोग द न्यूयॉर्क टाइम्स ने  रिपोर्ट के साथ किया न जाने किस संदूख से निकाली थी क्योंकि वह हाल फ़िलहाल की तो कोई भी फोटो नहीं थी। खैर द न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस रिपोर्ट में दावा किया कि, “भारत में दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल, जिसमें सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्र के कर्मचारी शामिल हैं, ने पूरे देश में परिवहन और अन्य सेवाओं को बाधित कर दिया है। यह पूरा बंद इस वजह से किया गया क्योंकि श्रमिक निजीकरण योजना सहित सरकार की कई आर्थिक नीतियों के विरुद्ध हैं।”

The New York Times इस खबर को Whatsapp University के प्राध्यापक की तरह लिखकर प्रकाशित कर रहा था, असल सच्चाई उसी को उसके द्वारा पोस्ट किए गए लेख पर ट्विटर पर जवाबी तौर पर भारतीय समुदाय ने दिखा दी। ऐसे झूठ की जगह केवल कूड़ेदान या Whatsapp University में ही हो सकती है, यह भारतीय उपयोगकर्ताओं ने यह प्रदर्शित कर दिया।

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असल खबर क्या थी ये जान लीजिए

दरअसल, असल खबर यह थी कि सोमवार से निजीकरण के विरोध में राष्ट्रव्यापी हड़ताल केंद्रीय ट्रेड यूनियन व कर्मचारी संगठनों के आह्वान पर बुलाई गई जिसमें कई संगठन तो शामिल नहीं हुए। इस कारण हड़ताल का मिला जुला असर रहा। विभिन्न विभागों के अन्य कर्मचारी जहां एक ओर बंद का समर्थन करने लिए दफ्तर नहीं गए तो एक तबका वो था जिसने काम में बाधा पहुंचाने वालों की नियत पर चोट करने के लिए पूरा समय काम किया।

यूं तो जब एक राज्य में बंद घोषित किया जाता है तो उसकी खबर ही राष्ट्रीय हो जाती है, पर यह तो देश में बुलाया गया ऐसा राष्ट्रव्यापी बंद था जिसकी न चर्चा इतनी दिखी न प्रभाव। देश में बंद घोषित होना मतलब आम जन का काम अस्त व्यस्त होना, The New York Times की रिपोर्ट पर तंज कसते हुए भारतीय उपयोगकर्ताओं ने उसकी जमकर किरकिरी कर दी। निश्चित रूप से यह काफी हद तक सही था क्योंकि हड़ताल के बावजूद, अधिकांश भारतीय किसी भी अन्य दिन की तरह अपने जीवन को दिनभर व्यतीत करते रहे। इसलिए, जब भारतीय नेटिज़न्स ने द न्यूयॉर्क टाइम्स को हड़ताल को इस तरह से बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते देखा तो उनकी प्रतिक्रियाओं ने The New York Times को सख्ते में ला दिया।

भारत को नीचा दिखाने की कोशिश में रहा है The New York Times

कोरोना काल में पलायन की बात हो या भारत की अपनी वैक्सीन निर्माण की यह The New York Times ही था जो हमेशा भारत को नीचा दिखाने की कोशिश में था। उसका एजेंडा ही भारत विरोधी और वित्तपोषित ख़बरों से चलता है फिर चाहे उसे खबर पैदा ही क्यों न करनी पड़े जिसमें अब तो The New York Times को महारथ हासिल हो गई है।  लेकिन जितनी महारथ Whatsapp University बनी The New York Times को अब खबरें प्लांट करने में हासिल हुई है उससे अधिक तो फ़र्ज़ी ख़बरों को खंगालने में भारतीय पाठक आगे हैं और ट्विटर पर मिल रही प्रतिक्रियाएं इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। ऐसे में अब The New York Times भी सोच समझकर ही पड़ी लकड़ी लेगा क्योंकि अब उसके मुंह से यही निकल रहा है कि- “अरे, मुंह ते निकल गई, मेरी जबान कट गई, मैं मरी जाऊं!”

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