कांग्रेस को न केवल ‘गांधी परिवार’ बल्कि ‘नेहरूवादी राजनीति’ से भी स्वंय को अलग करना होगा

अक्षम कांग्रेस की डूबेगी नैया!

Indian National Congress

Source- TFI

कांग्रेस खत्म होने के कगार पर है और नित-नये दिन समाप्ति की ओर अग्रसर होती जा रही है। हालांकि, हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा परिणामों को देखकर यह लगता है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी अपनी समाप्ति की ओर सिर्फ कदम नहीं बढ़ा रही, बल्कि द्रुत गति से दौड़ भी रही है। सोनिया बुरी तरीके से हारकर राजनीति से निष्क्रिय हुई और इसी राजनीतिक निष्क्रियता तथा संकट के दौर में उन्होंने अक्षम राहुल को कांग्रेस की कमान थमा दी। बदले में राहुल ने कांग्रेस का बेड़ा गर्क कर दिया और उनसे भी ज्यादा बेड़ा गर्क कांग्रेस का उद्धार करने के लिए आई प्रियंका गांधी ने किया! कांग्रेस को हार पर हार मिलती गई और जिस राज्य में कांग्रेस बची भी है, वहां भी छोटे भाई की भूमिका में है।

एक दो राज्य जहां कांग्रेस पूर्ण बहुमत में है, वहां भी अंतर्कलह से जूझ रही है। अब पार्टी का छोटा नेता भी आलाकमान की इज्जत नहीं करता और उनके खिलाफ मुखर हो चुका है। एक परिवार द्वारा शासित होने के बावजूद भी कांग्रेस में 10 गुट बन चुके हैं। कोई गुट प्रियंका की बात मानता है, कोई राहुल की, तो कोई सोनिया की बात मानता है। एक गुट गांधी परिवार की अकर्मण्यता से क्षुब्ध वरिष्ठ नेताओं ने बनाया है, जिन्हें जी-23 के नाम से जाना जाता है। परंतु, कोई भी गुट किसी की बात नहीं सुनता और सभी अपने राजनीतिक निहितार्थ तलाशने में व्यस्त रहते हैं। इसी बीच खबर है कि कांग्रेस पार्टी की सर्वे सर्वा यानी गांधी परिवार भी इस्तीफा देने जा रहा है।

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क्या अक्षम कांग्रेस की डूबेगी नैया?

अगर ऐसा होता है तो इस बात को लेकर सबसे अधिक मंथन होगा कि क्या गांधी परिवार के इस्तीफे से कांग्रेस का पुनरुद्धार हो जाएगा? इसका सरल और सटीक जवाब है- ‘नहीं’। पाठकों को ज्ञात हो कि कोई भी पार्टी तीन आधार पर ही टिकी रहती है। प्रथम आधार पार्टी का चेहरा अर्थात् आलाकमान होता है। द्वितीय स्तंभ पार्टी के विचार और सिद्धांत होते हैं। तृतीय धुरी पार्टी के कार्यकर्ता और कैडर होते हैं। कांग्रेस पार्टी में इन तीनों चीजों का अभाव है! आलाकमान अक्षम साबित हो चुका है, पार्टी के पास कोई सिद्धांत नहीं है और कार्यकर्ताओं का मनोबल इतना टूट चुका है कि वे खुद को कांग्रेस से जोड़ने में भी लज्जा महसूस करने लगे हैं। हालांकि, गांधी परिवार द्वारा दिए जाने वाला इस्तीफा कांग्रेस के द्वारा सुधार की ओर बढ़ाएं गए एक कदम के रूप में देखा जा सकता है परंतु इतना ही काफी नहीं है। इस इस्तीफे के बाद सबसे बड़ा प्रश्न जो उठेगा वह यह कि आखिर कांग्रेस का विचार और सिद्धांत क्या होगा, जिसके आधार पर वह राष्ट्रीय राजनीति करेगी।

आखिर नेहरू आधारित राजनीति है क्या?

ध्यान देने वाली बात है कि कांग्रेस आज़ादी के बाद से नेहरू के सिद्धांत आधारित राजनीति करती रही है। नेहरू खुद की छवि एक सर्वमान्य अंतरराष्ट्रीय नेता के रूप में देखते थे। वो अपनी छवि के आगे भारत के हित और अस्तित्व को भी छोटा समझते थे। नेहरू राष्ट्रहित पर समन्वय को तवज्जो देने वाले नेताओं में से एक थे। वो स्वायत्ता के समर्थक और अति-उदारवाद के पक्षधर थे। कांग्रेस उनके ही सिद्धांतों पर राजनीति करती रही है। हालांकि, कांग्रेस को अब यह समझना होगा कि भारत एक मजबूत राष्ट्र के तौर पर विश्व में उभर रहा है और भारतीय समाज स्वयं को राष्ट्रहित में कठिन फैसले लेने के लिए सशक्त कर रहा है।

भारतीय समाज अकर्मण्यता की स्थिति में नहीं रहना चाहता। वह हर एक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दे पर साफ और स्पष्ट निर्णय चाहता है, चाहे वह राष्ट्रवाद का मुद्दा हो या फिर हिंदुत्व का। भारतीय समाज ने जाति आधारित वोट बैंक, मुस्लिम तुष्टिकरण, विरोधाभाषी, अवसरवादी और मौकापरस्त राजनीति को पूर्ण रूप से नकार दिया है। ऐसे में धर्मनिरपेक्षता के आड़ में किए जाने वाले ढकोसले को बंद किए जाने की जरूरत है। राष्ट्र अपने अस्तित्व, परंपरा और संस्कृति को लेकर अत्यंत संवेदनशील हो चुका है। अगर उसके प्रतिष्ठा, धर्म और राष्ट्रवाद के साथ कोई भी खिलवाड़ की गई तो उसका खामियाजा राजनीतिक पार्टियों को भुगतना पड़ सकता है।

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कांग्रेस को सेवक की भूमिका में आना होगा

ऐसे में अब कांग्रेस को शासक नहीं सेवक और चौकीदार के भूमिका में आने की जरूरत होगी। भारतीय समाज नेहरू की मानसिकता वाले एक राजनेता नहीं, बल्कि  राष्ट्र को सर्वोपरि मानने वाले जनता के सेवक को एक प्रधान सेवक के रूप में देखने के लिए आतुर है, क्योंकि अब मुस्लिम तुष्टीकरण के हथियार को करीब-करीब सारी क्षेत्रीय पार्टियों ने अपना लिया है। अतः अगर कांग्रेस ऐसा सोचती है कि मुस्लिम वोटों पर उसका एकछत्र राज है, तो वह भ्रम में है। आने वाला चुनाव 80:20 का ही होगा और इस 20 पर सभी पार्टियों ने अपना आधिपत्य जमा लिया है। अब कांग्रेस को यह समझते हुए नेहरू आधारित राजनीति तथा सिद्धांत से भी आगे बढ़ना होगा, अन्यथा सिर्फ गांधी परिवार को हटाने से ही सब कुछ नहीं हो जाएगा!

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