टोपी पहन, टोपी पहनाना, टोपीबाज और न जाने कितने टोपीजीवी इस उत्तर प्रदेश चुनाव में अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने के लिए टोपी-टोपी करते रह गए। जहाँ अब चुनाव के परिणामों में हफ्ते भर से भी कम का समय शेष रह गया है समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव को अंतोत्गत्वा सफ़ेद टोपी की याद आ ही गई क्योंकि 6वें चरण के मतदान होने के बाद अखिलेश को अपनी और अपनी पार्टी की राजनीतिक डगर अधर में लटकी दिख रही है। यही कारण है जो अब ओवैसी की उपस्थिति से अपने मुस्लिम वोट में सेंध लगने का भय खाए अखिलेश को उन्हीं की भांति मुस्लिम वोट का राग अलापना पड़ रहा है जबकि पूरे चुनाव में अखिलेश इससे किनारा करते नज़र आए थे।
दरअसल, आजमगढ़, जौनपुर और मिर्जापुर के दौरे पर, चुनाव प्रचार के अंतिम दिन आठ चुनावी रैलियों को संबोधित करते हुए, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए ‘रेड कैप का मतलब रेड अलर्ट’ वाला मजाक उड़ाया। उन्होंने कहा कि जो लोग टोपी की आलोचना कर रहे थे, उन्होंने खुद इसे पहनना शुरू कर दिया है। अखिलेश का तंज यूँ तो अपने खोते दिख रहे मुस्लिम जनाधार के लिए था परंतु सीधे-सीधे तुष्टिकरण करने से अब भी अखिलेश यादव को डर लग रहा है इसलिए बात घुमाकर पीएम मोदी को घेरते हुए बोली।
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डर के मारे मुंह से आवाज नहीं निकल रही है
योगी-मोदी सरकार में मुस्लिम समुदाय पर हो रहे अत्याचार की बीन बजाने से पीछे न हटने वाले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने पाले में रही बची सीटें डालने की जुगत में कहा कि “जो लाल टोपी की बुराई करते हैं, उन लोगों ने भी टोपी पहन ली। लाल, सफ़ेद पीली टोपी को अपमानित करने वाले भी अब टोपी में दिख रहे हैं… रंग दूसरा है…. रंग बदलने वालों को जनता सबक सिखाएगी।
ज्ञात हो, अखिलेश स्पष्ट रूप से शुक्रवार को वाराणसी में अपने रोड शो के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी के भगवा टोपी पहनने का जिक्र कर रहे थे। इसी को हथियार बना अखिलेश ने सफ़ेद टोपी का जिक्र कर दिया कि भाजपा शासन में सबसे अधिक प्रताड़ना यदि हुई है तो सफ़ेद टोपी(मुस्लिम समुदाय) और पीली टोपी(दलित वर्ग) वालों पर हुई है।
यह अखिलेश यादव के उसी टीपू वाले व्यवहार पर पुष्टि करता है जो यादव वोट पाने के लिए अखिलेश यादव बन जाता है और मुस्लिम वोट पाने के लिए टीपू। बता दें, अखिलेश यादव को बचपन में टीपू नाम से पुकारा जाता था। यह नाम उनके पिता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के करीबी दोस्त दर्शन सिंह ने उन्हें दिया था।
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यह अखिलेश यादव की घबराहट ही है जो चुनाव के समाप्ति पर देर सवेर ही सही उन्हें अपने तुष्टिकरण की बीन बजाना याद आ गया। क्योंकि इस बार मुकाबले में कट्टरपंथी सोच से उपजी लोकसभा सांसद असादुदीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) भी चुनावी रण में है। यूँ तो ओवैसी की पार्टी भाजपा के लिए नुकसानदेह न बनकर अखिलेश के M-Y समीकरण की धनिया बो रही है जिससे अखिलेश व्यथित हैं। ऐसे में अपने उस वोट को सही सलामत रखने के लिए अखिलेश ने अपने पुराने मुस्लिम कार्ड को खेलना समझदारी समझा।
वहीं ऐन टाइम पर मुस्लिम मतदाताओं की याद आने पर अखिलेश की जमकर फजीहत हो रही है क्योंकि उन्होंने इस चुनाव में अपनी पार्टी के पुराने नेता आज़म खान की सुध भी नहीं ली। यह प्रश्न सपा का हर वो पुराना मुस्लिम मतदाता कर रहा है जो सपा के M-Y फॉर्मूले पर विश्वास कर अबतक उसे वोट डालता आया था। इस बार स्वयं को किनारे पा, सपा का वो परंपरागत मुस्लिम वोट उससे छिटकता दिख रहा है और ओवैसी की उपस्थिति अखिलेश के लिए साइरन बन चुकी है क्योंकि वो मुस्लिम मतदाता जहाँ-जहाँ भी AIMIM समर्थित प्रत्याशी चुनाव लड़ रहा है, सपा के बदले उसका विकल्प AIMIM ही बन रही है।
अब अखिलेश यादव का हाल खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे जैसा हो गया है, एक ओर प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता ने सपा के राजनीतिक वर्चस्व को टुकड़ों में विभाजित कर दिया और रही बची कसर असादुदीन ओवैसी जैसे मुस्लिम समुदाय की राजनीति करने वाले नेता ने पूरी कर दी। अब अखिलेश यादव जैसे-तैसे अपने जनाधार को किसी भी तरह याचना करके, गिड़गिड़ाकर, तुष्टिकरण करके और शेष सभी हथियारों का उपयोग कर बचाने में जुट गए हैं पर कहीं से भी सार्थक परिणाम आते नहीं दिख रहे हैं। समाजवादी पार्टी की हालत तो उसी कहावत जैसी हो गई है “धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का”, अपना परंपरागत वोट भी खोया और मुस्लिम वर्ग के भी सगे नहीं रह पाए।” बस टोपी का रंग परिभाषित करते-करते अखिलेश ने खुद को और अपनी पार्टी को ही टोपी पहना डाली।
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