भारत में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की फीस देश की सबसे बड़ी बुनियादी समस्याओं में से एक है। निजी कॉलेजों की फीस इतनी ज्यादा होती है कि एक आम आदमी इसे अफॉर्ड नहीं कर सकता। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच जब बवाल मचा तो यह आंकड़ा सामने आया कि यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करने गए भारतीय छात्रों की संख्या 18 हजार के करीब थी। इसके पीछे का मुख्य कारण देश के प्राइवेट कॉलेजों की फीस ही है। इसी बीच नेशनल मेडिकल आयोग (NMC) ने निजी कॉलेजों को दिशानिर्देश देने का फैसला किया है, जहां वे फीस की ऊपरी सीमा को कम कर सकते हैं। बताया जा रहा है कि निजी मेडिकल कॉलेजों की फीस कम से कम 50 फीसदी सीटों के लिए सरकारी कॉलेजों के बराबर हो जाएगी। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) के दिशानिर्देश में कहा गया है कि निजी मेडिकल कॉलेजों में 50 प्रतिशत सीटों और विश्वविद्यालयों के लिए शुल्क एक विशेष राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों के बराबर होना चाहिए। अब NMC के दिशानिर्देशों को प्रत्येक राज्य की फीस फिक्सेशन कमेटी द्वारा अनिवार्य रूप से लागू किया जाएगा।
NMC ने जारी किया ज्ञापन
सरकारी मूल्य पर निजी कॉलेजों में चिकित्सा सीटों को लेकर NMC ने 3 फरवरी को एक कार्यालय ज्ञापन जारी किया। उस ज्ञापन में कहा गया, यह निर्णय लिया गया है कि निजी मेडिकल कॉलेजों और मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों में 50 प्रतिशत सीटों की फीस किसी विशेष राज्य या संघ शासित प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों के बराबर होनी चाहिए। कार्यालय ज्ञापन के मुताबिक, इस शुल्क संरचना का लाभ उन उम्मीदवारों को उपलब्ध कराया जाएगा, जिन्होंने सरकारी कोटा सीटों का लाभ उठाया है, लेकिन संस्थान की कुल स्वीकृत शक्ति के 50 प्रतिशत की सीमा तक सीमित है। हालांकि, अगर सरकारी कोटा सीट कुल स्वीकृत सीटों में से 50 प्रतिशत से कम है, तो शेष उम्मीदवार सरकारी मेडिकल कॉलेजों में उस समकक्ष शुल्क का भुगतान करने का लाभ उठाएंगे, जो पूरी तरह से योग्यता पर आधारित है।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) अधिनियम, 2019 की धारा 10 (1) (i) के प्रावधानों के तहत एक पैनल निजी चिकित्सा संस्थानों में 50 प्रतिशत सीटों के लिए शुल्क और अन्य सभी शुल्कों के लिए दिशानिर्देश फ्रेम करेगा। केंद्र ने पूर्व MCI के बहिष्कार में पूर्ववर्ती बोर्ड ऑफ गवर्नर से ड्राफ्ट फीस-फिक्सेशन दिशानिर्देश तैयार करने के लिए एक विशेषज्ञों की समिति का गठन करने का अनुरोध किया था। ध्यान देने वाली बात है कि 23 नवंबर, 2019 को बीओजी-एमसीआई द्वारा और बाद में एनएमसी द्वारा एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था। विशेषज्ञ पैनल ने एमबीबीएस, स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों और निजी मेडिकल कॉलेजों के शुल्क के निर्धारण के लिए 26 व्यापक दिशानिर्देशों की सिफारिश की और निजी मेडिकल कॉलेजों के लिए अन्य शुल्कों की सिफारिश की थी।
वर्ष 2021 में ही मांगा गया था सुझाव
आपको बता दें कि पिछले साल 25 मई को एनएमसी वेबसाइट पर दिशानिर्देश अपलोड किए गए थे और उसमें सुझाव मांगा गया था, इस पर लगभग 1,800 प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई थी। एनएमसी द्वारा 21 अक्टूबर, 2021 को गठित एक और विशेषज्ञ पैनल ने प्रतिक्रियाओं की जांच की और संशोधित दिशानिर्देश प्रस्तुत किए। पिछले साल 29 दिसंबर को अपनी बैठक में इस पैनल की सिफारिशों को एनएमसी द्वारा स्वीकार किया गया था। अब निजी मेडिकल कॉलेजों और मानित विश्वविद्यालयों में फीस और अन्य शुल्कों को ठीक करने हेतु उन सिफारिशों का पालन किया जाएगा। दिशानिर्देशों के अनुसार, अत्यधिक खर्च और अत्यधिक लाभ घटकों को शुल्क में जोड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी। आपको बता दें कि यह कदम भविष्य में यूक्रेन जैसी घटना से बचने के लिए मोदी सरकार का बड़ा कदम माना जा रहा है। दरअसल, यूक्रेन में देश के बहुत सारे छात्र मेडिकल की पढाई करने जाते हैं और इस समय जो यूक्रेन की हालात है, उसे देखते हुए मोदी सरकार देश में मेडिकल की पढाई सुगम करने की ओर अपना कदम बढ़ा चुकी है।