राहुल गाँधी को अब राजनीति करने के लिए बदनाम संगठनों का सहारा लेना पड़ रहा है

क्या दिन आ गए हैं? हाय रे कांग्रेस!

source- google

सर्वे के नाम पर भारत को पोषित और कुपोषित बताना और आंकलन करना पश्चिमी देशों की पुरानी आदत रही है। किसी भी तरह भारत का लूप होल मिल जाए इस जुगत में यूरोपिय गैर-सरकारी संस्था ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ आए दिन अपने आंकड़े प्रस्तुत करता है। हर बार उसके आंकड़े भारत को नीचा दिखाने के  उद्देश्य से जारी किए जाते हैं पर दुःख की बात यह है कि ऐसे गैर सरकारी संस्थानों के प्रति जब अपने ही देश के नेता अंधविश्वास में तल्लीन हो जाएं तो क्या ही मतलब देश और देशवासी होने का। फ़र्ज़ी प्रोपेगंडा फ़ैलाने के आदी कई नेता इस ग्लोबल हंगर इंडेक्स को इतनी तरजीह देने लगते हैं जिससे वो अपनी तो जगहसाई कराते ही हैं साथ ही देश की भी अवहेलना करने का दुस्साहस कर देते हैं। कांग्रेस पार्टी के चश्मोचिराग राहुल गाँधी उन्हीं चंद नेताओं में से एक हैं जिनका एक ही उद्देश्य होता है मोदी विरोध, ऐसे में पीएम मोदी के विरोध में जाने वाली हर उस बात का राहुल गाँधी समर्थन करते हैं जिससे वो विपक्षी होने का टैग बरकरार रख पाएं।

हंगर इंडेक्स, फ्रीडम रैंक, हैप्पीनेस रैंक जैसे शिगूफे मात्र इसलिए प्रभाव में हैं क्योंकि उन्हीं आवश्यकता से अधिक गैर-सरकारी संस्थाओं की शह मिलती है। इसी बीच यह भी जान लें कि यह तीनों इंडेक्स न केवल गैर सरकारी है बल्कि इनका उदय जिन देशों में हुआ यह संस्थाएं उसी की तर्ज़ पर अन्य देशों का आंकलन करती हैं। जिस प्रकार हंगर इंडेक्स न केवल एक ऐसा उपकरण है जो विश्व स्तर पर और साथ ही क्षेत्र और देश के अनुसार भूख को मापता है और ट्रैक करता है, जिसे यूरोपीय गैर सरकारी संगठनों द्वारा तैयार किया गया जाता है।

GHI की गणना सालाना की जाती है, और इसके परिणाम हर साल अक्टूबर में जारी एक रिपोर्ट में दिखाई देते हैं। इसके सबसे बड़े अनुयायी और शिष्य भारतीय राजनीति के वो पुरोधा हैं जिनके आने के बाद से भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का सत्ता से पतन होता चला गया। राहुल गाँधी ने शुक्रवार को इसी हंगर इंडेक्स और अन्य इंडेक्सों के आंकड़े निकाल भारत सरकार पर तंज कसने का प्रयास किया। वो शायद यह नहीं जानते थे कि इन इंडेक्सों की जितनी विश्वसनीयता नहीं है उससे कई ज़्यादा चुनाव राहुल बाबा कांग्रेस को हरवा चुके हैं। राहुल ने ट्वीट में लिखा कि, “भारत जल्द ही ‘नफरत और गुस्से के चार्ट’ में शीर्ष पर पहुंच सकता है।” राहुल गांधी ने एक ट्वीट में हंगर, फ्रीडम और हैपीनेस इंडेक्स में भारत की रैंकिंग शेयर की और अप्रत्यक्ष रूप से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार पर हमला किया था।

और पढ़ें- International Hunger Index कभी भारत की “भूख की समस्या” का सही आंकलन कर ही नहीं पाएगा, कारण यहाँ हैं

सबसे पहली बात आंकलन करना भी हो तो उसके मापदंड तय हो जाने चाहिए। GHI ने यूरोप आधारित मापदंडो तय किए हुए हैं, ऐसे में भारत में वो उस हिसाब से कैसे लागू हो पायेगा। यूरोप में एवरेज हाइट 5’11 है ऐसे में  भारत जहाँ के पुरुषों की एवरेज हाइट 5’7 है तो यह कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है कि यूरोप आधारित नतीजे भारत में भी मिलेंगे। ऐसे में यदि 5’6 वाले कद के व्यक्ति पर 5’11 कदकाठी के व्यक्ति का बॉडी मास इंडेक्स लगा दिया तो यह सब एक ढकोसला है यह सिद्ध हो जाएगा क्योंकि यदि ऐसे तुलना की जाती है तो भारत पीछे क्यों नहीं दिखेगा? ऐसे में 5’11 वाले व्यक्ति का वजन जहाँ एक ओर 75-80 किलो का है तो यह तुलना करना कि 5’7 वाले व्यक्ति के जिसका वजन मात्र 40-50 किलो का हो, यह तो सबसे बड़ी धोखाधड़ी कहलाई जाएगी।

यह यूरोपीय और विशेषकर पश्चिमी मानकों को भारत पर थोप देते हैं और बाद में उसी के बल पर अपनी ये इंडेक्स वो इंडेक्स की दूकान चल रहे हैं। वही हाल हैप्पीनेस इंडेक्स और फ्रीडम इंडेक्स का है जो न जाने कहाँ से कौनसे अलादीन के चिराग से इस बात का अनुमान लगते हैं कि कौन सा देश कितना खुश है। सत्य तो यह है कि ऐसे मानक कहाँ से आ सकते हैं जो किसी की ख़ुशी का अनुमान और गणना कर सके। कैसे कोई किसी की ख़ूबसूरती कितनी है, ख़ुशी कितनी है, कोई हताश कितना है इन सब का अनुमान लगा सकता है और वो भी एक व्यक्ति के हिसाब से नहीं पूरे देश का अनुमान लगाने की बात करने वाले यह सभी शिगूफे हैं।

और पढ़ें- भारत को भुखमरा देश बताने वाले फेक न्यूज़ का हो गया पर्दाफाश

पिछले कुछ दिनों से ग्लोबल हंगर इंडेक्स खूब चर्चा में है। कई लोग इस इंडेक्स में भारत की स्थिति को लेकर सरकार की आलोचना कर रहे हैं। जारी किए गए अधिकांश डाटा में भारत को हमेशा निचला ही प्रदर्शित किया गया है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स भारत में की स्थिति को हमेशा गलत तरीके से बताता है। वास्तव में यह इंडेक्स भारतीय जनसंख्या पर पश्चिमी मानकों को लागू कर यहाँ की वास्तविक तस्वीर को और अधिक बिगाड़ देता जिससे भारत रैंक में पिछड़ जाता और स्थिति भयावह दिखाई देती है।

सौ बात की एक बात यह भी है कि यह सभी व्यक्तिपरक मापदंड हैं जिनका अनुमान लगाना किसी भी व्यक्ति विशेष, संस्था या संस्थान के लिए उतना ही कठिन है जितना सूर्य में कितनी उष्मित ऊर्जा है इसका अनुमान लगाना। यह राहुल गाँधी जैसे नेताओं की कुंठा है जो कहीं न कहीं किसी भी विषय पर निकलकर फूट पड़ती है। लोकतंत्र के त्यौहार में हमेशा हारने का कीर्तिमान स्थापित कर चुके राहुल बाबा इसी ताक में रहते हैं कि कब भारत से जुड़ा कोई पश्चिमी सर्वे आए और कब वो भारत सरकार की आलोचना कर सकें।

और पढ़ें- कांग्रेस के हाथ से निकल चुका है यूपी, राहुल को याद आया है कि उन्हें चुनाव प्रचार भी करना है

Exit mobile version