‘संविधान फिर से पढ़ें’ – दिल्ली को लेकर बकलोली करने वाले केजरीवाल को अमित शाह ने पढ़ाया पाठ !

राजनीति ने अरविंद केजरीवाल को अज्ञानी बना दिया है!

दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक

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दिल्ली के मुख्यमंत्री जो की हंसी का पात्र ही बनते आए हैं इस बार भी उसी रीत को निभाते आए हैं और गृह मंत्री अमित शाह कोई हिसाब बकाया नहीं रखते, यह तो सब जानते ही हैं। तो इस बार संसद में दिल्ली के स्वघोषित मालिक अरविन्द केजरीवाल की बिना नाम लिए ऐसी फजीहत हुई जिसका अनुमान सभी को था क्योंकि केंद्र कोई नीति लाए और केजरीवाल सरकार उसका विरोध न करे ऐसा होना तो असंभव है तो दिल्ली नगर निगम एकीकरण को लेकर केंद्र सरकार जैसे ही सदन में दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक 2022 लाई, केजरीवाल सरकार की हालत खस्ता हो गई। न जाने क्या क्या आरोप नहीं मढ़े गए पर अमित शाह आए और अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार के आरोपों पर उन्हें बुधवार को दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक पारित होने से पूर्व धोते चले गए।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को लोकसभा में विधेयक से जुड़े प्रश्नों का एक साथ उत्तर देने के पश्चात कहा कि दिल्ली के तीन नगर निगमों के विलय का प्रस्ताव करने वाला विधेयक संवैधानिक रूप से कानूनी है और इसका विरोध करने वालों को संविधान को फिर से पढ़ना चाहिए। दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक 2022 पर चर्चा के दौरान लोकसभा में बोलते हुए, शाह ने कहा कि चूंकि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है, “अनुच्छेद 239-एए -3 बी संसद को कानून बनाने और केंद्र शासित प्रदेश या उसके किसी भी हिस्से के कानून से जुड़े मुद्दों पर फैसले लेने का अधिकार देता है।

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केजरीवाल को बस चिल्लाना आता है 

दरअसल, अरविंद केजरीवाल को जैसी ही पता चला कि केंद्र सरकार दिल्ली की तीनों नगर निगमों- पूर्वी-उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम को एक करने की योजना बना रही है, उस दिन से राज्यभर में विवाद उत्पन्न करने की प्रवृत्ति वाले आम आदमी पार्टी के नेताओं ने केंद्र पर निशाना साधना शुरू कर दिया था। कभी दिल्ली नगर निगम को केंद्र अपने अधीन ले लेगा यह बात तो कभी दिल्ली में एक प्रशासक की नियुक्ति कर दी जाएगी वो बात या केंद्र, राज्य सरकार की शक्तियां छीन लेगी यह बात, इन सभी बातों का शिगूफा लिए पूरी आम आदमी पार्टी सड़क पर ऐसे रोती दिख रही है जैसे न जाने मोटा भाई ने दिल्ली विधानसभा ही भंग करा दी हो।

पहली बात तो यह है कि मुख्यमंत्री केजरीवाल जितना तथ्यपरक और बुद्धिमत्ता से भरपूर स्वयं को या अपनी सरकार को प्रदर्शित करते हैं उनमें 50% भी उसका अंश होता तो केजरीवाल और उनकी पार्टी जनता को बरगला नहीं रही होती। यह सभी आरोप जो आम आदमी पार्टी या कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने लगाने के प्रयास किए सभी आधारहीन थे। गृह मंत्री अमित शाह ने एक शब्द पर जोर देकर कहा कि “दिल्ली एक संघ राज्य है,  राज्य और संघ राज्य का भेद यदि नेताओं को नहीं पता है तो उन्हें निश्चित रूप से पुनः संविधान पढ़ने की आवश्यकता है।”

अमित शाह ने दिल्ली को एक प्रशासक देने वाली बात पर कहा कि यह नियुक्तियां तो पहले से चली आ रही हैं, झारखण्ड में जहाँ कांग्रेस के विचार वाली सरकार है वहां भी 1 वर्ष से अधिक समय से प्रशासक की नियुक्ति हुई पड़ी है और वो काम देख रहे हैं, चूँकि वहां कांग्रेस के विचार की सरकार है कांग्रेस ने वहां आपत्ति नहीं जताई। वहीं जब बात शक्तियां कम करने और छीनने की आई तो उसपर शाह ने लताड़ लगाते हुए कहा कि यह सब पिछली सरकारों द्वारा बनाई गई नीतियों और संसोधनों के अंतर्गत किया जा रहा है।

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संविधान की दुहाई देना और पढ़ना अलग है!

बुधवार को लोकसभा ने दिल्ली के तीन नगर निगमों को एक इकाई में विलय करने के लिए एक विधेयक पारित किया। शाह ने कहा कि दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक तीन नगर निगमों को एक एकीकृत और अच्छी तरह से सुसज्जित इकाई में एकीकृत करने का प्रयास करता है ताकि समन्वित और रणनीतिक योजना और संसाधनों के इष्टतम उपयोग के लिए एक मजबूत तंत्र सुनिश्चित किया जा सके। दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक को ध्वनि मत से पारित कर दिया गया और विपक्षी सदस्यों द्वारा पेश किए गए विभिन्न संशोधनों को खारिज कर दिया गया।

गृह मंत्री ने कहा कि चूंकि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है, इसलिए भारत सरकार को इससे संबंधित कोई भी कानून लाने का अधिकार है। शाह ने दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा, “यह विधेयक संविधान की धारा 239 एए के तहत संसद में निहित शक्तियों के भीतर है।” केंद्र द्वारा राज्यों के अधिकारों का हनन करने के आरोप पर प्रतिक्रिया देते हुए शाह ने कहा, “लोग राज्यों के अधिकारों के बारे में बात कर रहे हैं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी यही बात कहते हैं। मैं महाराष्ट्र, गुजरात या बंगाल के लिए ऐसा बिल नहीं ला सकता। राज्यों में न तो मैं और न ही केंद्र ऐसा कर सकता है। लेकिन अगर आप एक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के बीच का अंतर नहीं जानते हैं, तो मुझे लगता है कि संविधान का फिर से अध्ययन करने की जरूरत है।“

अरविंद केजरीवाल इसके बाद भी न समझें तो उनको वास्तव में अपने कार्यकर्ताओं के साथ मंथन करने की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा वाली सोच से सरकारें नहीं चला करती। अपने सम्मान को बीच बाजार नीलाम कर देने से किसी की शोभा नहीं बढ़ती है, विरोध होना आवश्यक है पर उसके मानदंड भूलकर गलिच्छ वव्यवहार पर उतर जाना शर्मनाक है।

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