भारत को वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण केंद्र बनाने की तैयारियों में लगी रिलायंस कंपनी

आत्मनिर्भर और स्वावलंबी हो रहा है भारत!

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Source- TFIPOST

भारत अब विनिर्माण क्षेत्र में विदेशी निवेश का एक आकर्षक केंद्र बन चुका है। मेक इन इंडिया अभियान की मदद से भारत हाई-टेक विनिर्माण का केंद्र बनने की राह पर है। क्योंकि वैश्विक दिग्गज या तो भारत में विनिर्माण संयंत्र लगा रहे हैं या लगाने की प्रक्रिया में हैं, जो भारत के एक अरब से अधिक उपभोक्ताओं के बाजार और उनकी बढ़ती क्रय शक्ति से आकर्षित है। इसी बीच भारत की दिग्गज कंपनी रिलायंस अपने इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण का वैश्विक स्तर पर विस्तार करने की तैयारियों में लग गई हैं और इसके लिए हाल ही में कंपनी ने एक अमेरिकी कंपनी के साथ गठजोड़ किया है। जो भारत को इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण केंद्र बनाने में मदद करेगा।

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विश्वस्तरीय इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण केंद्र बनेगा भारत

रिलायंस इंडस्ट्रीज ने संयुक्त उद्यम स्थापित करने के लिए अमेरिकी इलेक्ट्रॉनिक्स फर्म सनमीना (Sanmina) में 221 मिलियन डॉलर के निवेश की योजना बनाई है। इस संयुक्त उद्यम में 50.1 फीसदी हिस्सेदारी रिलायंस की, जबकि 49.9 फीसदी हिस्सेदारी सनमीना की होगी। इस संयुक्त उद्यम का लक्ष्य भारत को एक “विश्व स्तरीय” इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण केंद्र बनाना है। यह संयुक्त उद्यम बाजारों और संचार नेटवर्किंग (5G, क्लाउड इन्फ्रास्ट्रक्चर, हाइपरस्केल डेटा सेंटर) के साथ-साथ चिकित्सा, स्वास्थ्य प्रणाली, रक्षा और एयरोस्पेस जैसे उद्योगों के लिए उच्च तकनीक और प्रौद्योगिकी संरचना हार्डवेयर तैयार करेगा।

आरंभ में सभी निर्माण सनमीना के चेन्नई स्थित 100 एकड़ के परिसर में होंगे, जिसमें भविष्य के विकास अवसरों के साथ-साथ व्यापार की जरूरतों के आधार पर विनिर्माण स्थलों के विस्तार करने की क्षमता भी होगी। यह संयुक्त उद्यम भारत में उत्पाद विकास और हार्डवेयर स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) का समर्थन करने के लिए “उत्कृष्टता का विनिर्माण प्रौद्योगिकी केंद्र” (Manufacturing Technology Center of Excellence) भी बनाएगा।

रिलायंस जियो के निदेशक आकाश अंबानी ने एक बयान में कहा, “भारत में हाई-टेक मैन्युफैक्चरिंग सनमीना के साथ हम काम करके खुश हैं।” उन्होंने कहा, हम डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। ऐसे में भारत की वृद्धि और सुरक्षा की खातिर यह आवश्यक है कि दूरसंचार (Telecom), आईटी (IT), डेटा सेंटर (Data Centers), क्लाउड (Cloud), 5जी (5G), न्यू एनर्जी (New Energy) और अन्य उद्योगों में इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण के मामले में हम और आत्मनिर्भर हों।“ ध्यान देने वाली बात है कि नरेंद्र मोदी की सरकार घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए व्यापक प्रयास कर रही है। भारत सरकार इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए लगभग $7 बिलियन का प्रोत्साहन भी दे रही है।

आत्मनिर्भर और स्वावलंबी हो रहा है भारत

हालांकि, रिलायंस-सनमीना के गठजोड़ की घोषणा के तुरंत बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज के शेयरों में तेजी दर्ज की गई। गौरतलब है कि मुकेश अंबानी ने वर्ष 2016 में रिलायंस जियो की शुरुआत की थी। उसके बाद से अब तक देश के टेलीकॉम सेक्‍टर पूरा नक्‍शा ही बदल गया है। देश में अब कुछ ही टेलीकॉम कंपनियां रह गई है। रिलायंस देश के टेलीकॉम सेक्‍टर में गेम चेंजर साबित हुआ है। ऊपर से अब मुकेश अंबानी ने ग्रीन एनर्जी की ओर भी कदम बढ़ा दिया है। एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति, मुकेश अंबानी की भारत में जीरो-कार्बन हार्डवेयर को बढ़ाने के लिए 10 बिलियन डॉलर की योजना है। रिलायंस इंडस्ट्रीज फोटोवोल्टिक मॉड्यूल, बैटरी, फ्यूल सेल और महत्वपूर्ण रूप से हाइड्रोजन का प्रोडक्‍शन करने हेतु इलेक्ट्रो लाइज़र बनाने के लिए चार बड़े “गीगा फैक्‍ट्री” को विकसित करने की योजना पर काम कर रही है।

रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने कहा कि रिलायंस ‘मेड इन इंडिया’, ‘मेड फॉर इंडिया’ और ‘मेड बाई इंडियंस’ वाली कंपनी है। उनका यह बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनने के आह्वान के अनुरूप था। यह कंपनी अब भारत को आत्मनिर्भर, मजबूत और समृद्ध बनाने के लिए अपने व्यवसायों को राष्ट्रीय लक्ष्यों और प्राथमिकताओं के साथ जोड़ रही है। आरआईएल, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को अत्याधुनिक, प्लग-एंड-प्ले, प्रौद्योगिकी-सक्षम उपकरणों से लैस करने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में है। रिलायंस सबसे बड़े प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के रूप में भारत पैट्रोलियम के साथ अपने ईंधन खुदरा व्यापार और सऊदी अरामको के तेल से रसायन व्यवसाय के लिए सौदे भी तलाश रहा है।

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ध्यान देने वाली बात है कि जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद का सूरज अपने चरम पर था, तब एक कंपनी ही उसकी संवाहक बनी थी। अमेरिका के उदय के पीछे उसके अंतरराष्ट्रीय कंपनियों का ही हाथ था। भारत भी जब अपने स्वर्ण युग में था, तब अपने व्यापार की वजह से ही था। पर, पिछले कुछ सालों में भारत की कंपनियों को तो गरीबों का शोषक और विदेशी कंपनियों को विकास स्तम्भ के रूप में प्रचारित किया गया। इसका परिणाम यह हुआ की हमारे ही संसाधनों का इस्तेमाल कर विदेशी कंपनियां हमें ही बेचने लगी। हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में चीज़ें अब बदल रही हैं। भारत आत्मनिर्भर और स्वावलंबी हो रहा है तथा रिलायंस जैसी कंपनियां इसकी संवाहक बन रही है। यह भारत की राष्ट्रीय संपतत्ति और आर्थिक हथियार के रूप में काम कर रही हैं।

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