भारत विरोधी नारेबाजी करने के आरोप में शर्जील इमाम पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाएगा। दिल्ली की एक अदालत ने उस पर आरोप तय कर दिए हैं। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) के पूर्व छात्र शारजील इमाम के खिलाफ दिसंबर 2019 में दिल्ली के जामिया इलाके में और जनवरी 2020 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान उसके द्वारा दिए गए भड़काऊ भाषणों के लिए देशद्रोह और अन्य आरोप तय किए हैं।
शरजील इमाम के खिलाफ कई धाराओं में हैं आरोप दर्ज
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने शरजील इमाम के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में देशद्रोह की धारा 124 ए के साथ ही 153 ए, 153 बी, 505 और 13 गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोप तय किए। कोर्ट के समक्ष दायर चार्जशीट में दिल्ली पुलिस ने कहा था, ”उस पर देशद्रोही भाषण देने और समुदाय के एक खास वर्ग को गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होने के लिए उकसाने का आरोप है, जो देश की संप्रभुता और अखंडता के लिए हानिकारक है.”
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शर्जील मूल रूप से आतंकी प्रवृत्ति का व्यक्ति है। आरोप है कि इसके भड़काऊ भाषण के कारण ही जामिया विश्वविद्यालय के पास दिसंबर 2019 में दंगे शुरू हुए थे। जांच के दौरान यह भी पता चला कि यह व्यक्ति भारत में इस्लामिक शासन की स्थापना के सपने देख रहा था। जनवरी 2020 में ही अपनी जांच में दिल्ली पुलिस ने पाया कि “शर्जील इमाम ने यह स्वीकार किया कि जो भी वीडियो में बोला गया है, वो शत प्रतिशत सत्य है और वीडियो के साथ किसी भी प्रकार की छेड़खानी नहीं की गयी है। शर्जील को अपने किए का कोई अफसोस नहीं है। जांच में पता चला है कि शर्जील काफी उग्र स्वभाव का है और उसकी मंशा है कि भारत एक इस्लामिक मुल्क हो।”
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पुलिस के पास पर्याप्त सबूत हैं
शर्जील की कट्टरपंथी सोच को लेकर पुलिस के पास पर्याप्त सबूत हैं। उसने आतंकी याकूब मेमन की फांसी पोस्ट किया था कि याक़ूब मेमन की फांसी से भारतीय मुसलमानों का भरोसा देश की कानून व्यवस्था में नहीं टूटना चाहिए, क्योंकि उसे तो भारतीय समाज को संतुष्ट करने के लिए अफजल गुरु को फांसी पर लटकाकर बहुत पहले ही तोड़ दिया गया था। अर्थात यह व्यक्ति देश पर हमला करने वाले आतंकवादियों का समर्थक है।
देखने वाली बात ये है कि हिंदू बहुल देश में जहां अधिकांश जनता राष्ट्रवादी है वहां ऐसे तत्व खुलेआम देश विरोधी बयान बाजी इसलिए कर पाते हैं क्योंकि इन्हें वामपंथी उदारवादी लोगों की ओर से वैचारिक सुरक्षा कवच प्राप्त होता है। जब देश विरोधी बयानबाजी जैसे कश्मीर की आजादी के नारे हो या नक्सलियों द्वारा भारतीय सेना पर होने वाले हमले या आतंकियों की मौत पर इंटेलेक्चुअल चर्चा की उनकी मौत सही थी या गलत, इन सभी देश विरोधी बातों को बुद्धिजीविता का प्रमाण बनाकर फैशन का हिस्सा बना दिया गया है। भारत विरोधी बयान बाजी इतनी आम है कि अब लोगों को उनकी गंभीरता का अंदाजा नहीं मिलता है। यदि शर्जील इमाम जैसे लोगों पर तभी कार्रवाई की गई होती जब वह याकूब मेनन के समर्थन में पोस्ट आ गए थे तो शायद दिल्ली दंगे ना हुए होते, न हिन्दू मारे जाते, न मुस्लिम। ऐसी विषाक्त मानसिकता को पैदा होते ही कुचल देने में देश के सभी नागरिकों की भलाई है।