सत्ता में अगर लोभ की पराकाष्ठा देखनी है तो ममता बनर्जी को देखिए। ममता बनर्जी तृणमूल कांग्रेस की सर्वोच्च नेता हैं, परंतु सत्ता प्राप्ति के लिए वो किसी भी निचले स्तर तक जा सकती हैं। वैसे सेवा और सिद्धांत राजनीति के दो स्तंभ हैं, परंतु ममता की सिद्धांत विहीन राजनीति का एकमेव सिद्धांत सत्ता प्राप्ति है, चाहे उसके लिए साम, दाम, दंड, भेद या फिर छल बल और कपट का ही प्रयोग क्यों न करना पड़े? मुस्लिम तुष्टीकरण, हिंदू विभाजन, रोहिंग्या मुसलमानों का समर्थन और राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता से समझौता कर वो बंगाल चुनाव क्या जीत गई स्वयं को एक राष्ट्रीय नेता समझने लगी हैं।
ममता को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि सत्ता सनक पैदा कर देता है। प्रधानमंत्री बनने के सपने संजोए वो बौराई-बौराई सी फिरती हैं! उनसे खुद का घर संभल नहीं रहा, लेकिन भाजपा को हराने के सपने बुनती रहती हैं। अपने अंतर्कलह से जूझती तृणमूल कांग्रेस स्वयं नहीं समझ पा रही है कि आखिर ममता को सर्वोच्च नेता माने या फिर उनके भतीजे अभिषेक को, लेकिन ममता को तो बस यह लगता है कि देश में सिर्फ वही काबिल हैं जो प्रधानमंत्री बन सकती हैं।
इस चक्कर में उन्होंने सेवा और सिद्धांत की राजनीति को त्याग दिया है। राष्ट्र की एकता और अखंडता से भी समझौता करने में उन्हें गुरेज नहीं है। मुस्लिम तुष्टिकरण, अवैध बांग्लादेशी रोहिंग्या और राष्ट्र विरोधी तत्वों के बल पर वो बंगाल चुनाव जीती और अब पूरे देश में अपना पांव पसारने के लिए वो उन नेताओं को शरण दे रही हैं, जिनका राजनीतिक करियर भाजपा पहले ही निपटा चुकी है। कहने का अर्थ यह है कि ममता बनर्जी ने टीएमसी को भाजपा के राजनीतिक डस्टबिन के रूप में परिवर्तित कर दिया है और इस कूड़ेदान में भाजपा की ओर से फेंके गए राजनीतिक कूड़ो को भरपूर रूप से भरा जा रहा है।
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अब टीएमसी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे शत्रुघ्न सिन्हा
खबर है कि बॉलीवुड स्टार और पटना साहिब से पूर्व सांसद शत्रुघ्न सिन्हा टीएमसी पार्टी के टिकट पर आसनसोल लोकसभा उपचुनाव लड़ने जा रहे हैं। आसनसोल सीट पर 12 अप्रैल को मतदान होना है। पश्चिम बंगाल राज्य विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को छोड़कर टीएमसी में शामिल होने से बाबुल सुप्रियो की यह सीट खाली हो गई थी। टीएमसी अध्यक्ष और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने रविवार को एक ट्वीट के जरिए इस फैसले की घोषणा की। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि बालीगंज विधानसभा उपचुनाव के लिए बाबुल सुप्रियो को टिकट दिया जाएगा। बालीगंज सीट पिछले साल टीएमसी विधायक सुब्रत मुखर्जी के निधन के बाद से खाली है।
आसनसोल से ममता बनर्जी द्वारा शत्रुघ्न सिन्हा के चयन ने काफी लोगों की भौंहें चढ़ा दी हैं। 2021 के विधानसभा चुनाव में ममता ने बाहरी लोगों की पार्टी बताकर भाजपा पर बार-बार हमला बोला था, लेकिन अब वो बंगाल में बिहारी नेताओं को टिकट दे रही हैं। बहिरगतों (बाहरी लोगों) को ममता ने बंगाल की संस्कृति को नष्ट करने से लेकर यहां तक कि कोविड स्पाइक तक के लिए भी दोषी ठहराया था। उनका यह अभियान सफल भी रहा, क्योंकि टीएमसी ने इस मुद्दे को उछाल आक्रामक भाजपा के सामने अपनी सत्ता की रक्षा करने में सफलतापूर्वक कामयाबी हासिल की। हालांकि, ऐसा लगता है कि ममता अब बाहरी लोगों के प्रति बहुत अधिक सहिष्णु हो गई हैं, क्योंकि बिहार के शत्रुघ्न सिन्हा आसनसोल से उनके उम्मीदवार बन गए हैं।
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चोर-चोर मौसेरे भाई
ध्यान देने वाली बात है कि शत्रुघ्न सिन्हा इसे अपने राजनीतिक करियर को पुनर्जीवित करने के अवसर के रूप में देखेंगे। सिन्हा ने वर्ष 2019 में पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा वर्षों तक नजरअंदाज किए जाने के बाद भाजपा छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए। हालांकि, कांग्रेस की डूबती नैया देख अनुभवी अभिनेता ने टीएमसी का दामन थामने का फैसला किया है।
आपने वह कहावत तो सुनी ही होगी चोर-चोर मौसेरे भाई। बाबुल सुप्रियो और शत्रुघ्न सिन्हा को उम्मीदवार बनाए जाने के परिप्रेक्ष्य में यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है। ममता बनर्जी भी एक सिद्धांत विहीन राजनेता निकली, जिन्होंने अपने बहिरगतो के सिद्धांत से समझौता कर शत्रुघ्न सिन्हा को अपना उम्मीदवार बनाया। साथ ही शत्रुघ्न सिन्हा तथा बाबुल सुप्रियो भी एक सिद्धांत विहीन राजनेता निकले, जिन्होंने पहले कमल का दामन थाम जिसके खिलाफ संघर्ष किया, अब सत्ता के लालच में पुनः ममता की गोद में जा बैठे हैं।
राजनीतिक प्रतिशोध का भय दिखाकर ममता अब तक 13 भाजपा विधायकों को टीएमसी में मिला चुकी है। अपनी जान पर खतरा देख मुकुल रॉय भी अंततः टीएमसी मे मिल चुके हैं। जहां तक बात है शत्रुघ्न सिन्हा की, तो न तो उनकी कोई हैसियत है और न ही जनाधार। सिर्फ बड़े नेताओं से परिचय के आधार पर कर्मठ कार्यकर्ताओं से पटना साहिब की टिकट छीनने वाले शॉट गन को जब भाजपा ने समझाया, तब से वो भाजपा के खिलाफ ही मुखर हो गए। पर उनके टीएमसी में मिलने से न तो भाजपा पर कोई मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ेगा और न ही राजनीतिक, क्योंकि उनका कोई जमीन से जुड़ाव है ही नहीं।
मृत हो चुकी है ममता की नैतिकता!
खैर, नेता अच्छे होते है, बुरे होते हैं, अलग-अलग विचारधाराओं के होते हैं, सत्तालोभी और महत्वाकांक्षी भी होते हैं। परन्तु, सत्ता की सनक में राष्ट्र की एकता और सिद्धान्त से समझौता करने में कथित तौर पर ममता बनर्जी का नाम सबसे अग्रणी है। एक लोभी और स्वार्थी नेता राष्ट्र के लिए सबसे ख़तरनाक होते हैं, क्योंकि वो लोकतंत्र को व्यापार बनाकर शाश्वत सत्ता सुख के लिए देश की तिलांजलि देने लगते हैं, राजनीति को व्यापार और देश को विक्रय की वस्तु समझने लगते हैं। ममता बनर्जी जैसे नेताओं को देखकर मुख से यही निकलता है कि गिरिए, गिरना स्वाभाविक है! परन्तु, इतना मत गिरिए कि रसातल में पहुंच जाए। ज़मीन पर गिरा इंसान उठ सकता है, जबकि ज़मीन में पड़ा इंसान सिर्फ मुर्दा होता है। राजनीतिक स्वार्थ के वशीभूत हमने कई नेताओं की नैतिकता को गिरते हुए देखा, परंतु नैतिकता के मृत होने का प्रथम उदाहरण पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी में देखने को मिला है।
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