‘शेरा दी कौम पंजाबी’ बस कहने की बात है, बेअदबी का बहाना कर महिला को सरेआम पीट दिया

बेअदबी के बहाने ये हो क्या रहा है?

बीड़ी गुरुद्वारा

‘शेरा दी कौम पंजाबी…’ कहने में जितना प्रभावशाली है उससे ज़्यादा उसके अस्तित्व को बरक़रार रख पाना सिख संगत के लिए सबसे बड़ा धर्म है। ऐसे में बीते कुछ समय से सिख कौम की छवि को उसी के भीतर छिपे भेदियों ने इस कदर धूमिल कर दिया है कि आज लोगों को सबसे सुरक्षित लोगों में से एक माने जाने वाले सरदारों से डर लगने लगा है। यह भाव पलभर में नहीं बल्कि काफी समय से समाज में फैली वैमन्सयता के कारण आया है जिसका कारक और कोई नहीं पग पहने कुछ चंद बर्बाद सोच से पोषित सरदार ही हैं।

कथित तौर पर बीड़ी पीने का आरोप

अब हाल ही की एक घटना को ले लीजिए, इंटरनेट पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें पंजाब के स्वर्ण मंदिर परिसर में एक महिला को हाथ जोड़कर बैठे देखा जा सकता है, जबकि गुरुद्वारा परिसर में कथित तौर पर बीड़ी पीने के आरोप में उसकी पिटाई की जा रही है।

दरअसल, वायरल वीडियो में एक महिला अपनी बेटी के साथ परिसर में बैठी दिख रही है, जबकि एक आदमी पूछता है कि क्या उसके कपड़ों में बीड़ी छिपी है। महिला हाथ जोड़कर जवाब देती है कि उसके पास सिर्फ एक बीड़ी है। तब उस आदमी ने खुद को सेवादार होने का दावा करते हुए पूछा, वह स्वर्ण मंदिर के परिसर में धूम्रपान क्यों कर रही थी, जहां महिला की बेटी ने जवाब दिया कि उसकी मां पुराने जमाने की है और इसलिए बीड़ी पीती है, और स्वीकार करती है कि उसकी मां ने गलती की थी। वह आदमी पूछने लगा कि वे गुरुद्वारा क्यों आए हैं, लड़कियों का कहना है कि क्योंकि उन्हें वाहे गुरु में विश्वास था। इसके बाद एक पुरुष महिला के गाल पर थप्पड़ मार देता है। एक सेवादार के कहने पर महिला फूट-फूट कर रोने लगती है, “तुम अपने मंदिरों में बीड़ी नहीं पीते, लेकिन हमारे गुरुद्वारा में कर रहे हो।”

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इसके बाद तो मारने का क्रम बढ़ता ही चला गया, वहीं महिला और उसकी बेटी माफी की गुहार लगाती रही।  जिसके बाद दोनों महिलाओं को यह कहते हुए उठने के लिए कहा गया कि उन्हें ‘रूम नंबर 50’ पर भेज दिया जाए।

पुलिस भी चुप्पी साधे हुए है

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, दोनों महिलाओं के साथ एक छोटा लड़का भी था। TOI की रिपोर्ट में कहा गया है कि सेवादार शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) टास्क फोर्स के सदस्य थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि घटना का समय 14 और 15 मार्च की रात है, स्वर्ण मंदिर के अधिकारियों को गुप्त रखा गया है और यहां तक ​​कि पुलिस भी इस पर चुप्पी साधे हुए है। जबकि हिंदुस्तान टाइम्स ने बताया कि महिला बिहार से थी और महिला को छोड़ दिया गया था क्योंकि जो लोग महिला को पुलिस के पास लाए थे वे सिगरेट होने का कोई भी सबूत नहीं दिखा पाए थे और यहां तक ​​कि गुरुद्वारा परिसर के सीसीटीवी वीडियो में भी उसके बीड़ी पीने का कोई सबूत नहीं मिला।

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बेशर्मी की पराकाष्ठा देखिये कि महिला पर हुई हिंसा की कोई निंदा नहीं की बल्कि एसजीपीसी के महासचिव जत्थेदार करनैल सिंह पंचोली ने इस कृत्य को बेअदबी करार दिया। यह नई रीत चली है कि कुछ भी हो जाए, फिर चाहे वो भूलवश ही क्यों न हो उसे बेअदबी करार देना कुछ तुच्छ और अपनी गलती न मानने वालों का हथियार बन गया है। बेअदबी का ठप्पा लगा नृशंस हत्या भी करना जायज समझ लिया है और उनमें चाहे फिर पुरुष हो, महिला हो या बच्चा हो कोई भी हो उसे बक्शा नहीं जाएगा। इस ढर्रे पर आज नया एजेंडा चल रहा है जिसको सारी सिख कौम ने तो नहीं पर उन्हीं के बीच विद्यमान लोगों ने इसका ठेका ले लिया है।

कम से कम सात लोग मारे गए हैं

यह सत्य है कि सिखों में तंबाकू का सेवन वर्जित माना जाता है क्योंकि उनके दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने उन्हें ऐसा करने से मना किया था। इसके अलावा, गुरुद्वारों के अंदर धूम्रपान करने पर अन्य दंड प्रावधानों के अलावा आईपीसी की धारा 295 ए के तहत धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप लगते हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि 2016 में, 91 वर्षीय सिख गुरुद्वारा अधिनियम 1925 में संशोधन किया गया था ताकि उन सभी सिखों को सिख धार्मिक निकायों के चुनाव में मतदान करने से रोका जा सके जो तंबाकू धूम्रपान करते हैं या शराब का सेवन करते हैं। दाढ़ी और बाल काटने वालों को भी प्रतिबंधित सूची में शामिल किया गया था।

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इसके अलावा, हाल के दिनों में गुरुद्वारों में बे-अदाबी यानी बेअदबी की कई घटनाएं हुई हैं और उनमें से लगभग सभी की  हिंसक प्रतिक्रियाएं ही प्रदर्शित हुई हैं । रिपोर्ट बताती है कि 2016 से सिखों के पवित्र ग्रंथों और प्रतीकों की ‘अपवित्रता’ के आरोपों में कम से कम सात लोग मारे गए हैं। इनमें दिसंबर 2021 में स्वर्ण मंदिर में एक व्यक्ति की लिंचिंग शामिल है, जब उसने भक्तों को ग्रंथियों से अलग करने के लिए ग्रिल से छलांग लगाई और मौके से हीरे से लदी तलवार उठा ली।

शर्म से अपना सिर झुका लेना

कुछ भी हो, कानून के दायरे में बने रहना बस एक ही धर्म की नहीं अपितु हर पंथ की ज़िम्मेदारी हैं। किसान आंदोलन में सिख कौम को उसी के अंदरूनी लोगों ने बर्बाद करने का कुकृत्य किया था। अबतक फिल्मों में  दर्शाया जाता था कि यदि आप ,किसी सिख के साथ हैं तो आप निश्चिंत रहें क्योंकि आप सुरक्षित हैं। आज वह आंकलन धराशाई हो चुका है।  “शेरा दी कौम” कथित तौर पर बीड़ी पीने के लिए एक महिला की पिटाई करने का दोषी है और उन्हें इसके लिए शर्म से अपना सिर झुका लेना चाहिए क्योंकि एक महिला को मार उन्होंने न ही अपने पंथ का मान बढ़ाया है और न ही पग की शान ऊंची की है।

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