भारत और रूस की मित्रता किसी से छुपी नहीं है। रूस के साथ द्विपक्षीय संबंध भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख स्तंभ हैं। रूस अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का सबसे अच्छा दोस्त है। अगर कोई ऐसा देश है जिस पर जरूरत पड़ने पर भारत उसका समर्थन करने के लिए भरोसा कर सकता है तो वह रूस है। पिछले कई दशकों में विशेष रूप से 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद,मास्को और नई दिल्ली के बीच संबंध और मजबूत हुए हैं। पिछले कुछ दशकों में,संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत के संबंधों में उतार-चढ़ाव आया है। भारत-अमेरिका संबंधों के अच्छे समय और बेहद बुरे वर्ष भी रहे हैं लेकिन रूस नई दिल्ली के लिए स्थिर रहा है। भारत को जब भी मदद की जरूरत पड़ी रूस हमेशा भारत की मदद के लिए आगे आया है।
मास्को विरोधी प्रचार करने में लगा है पश्चिमी मीडिया
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पूर्वी यूरोप में तनाव बढ़ गया है। रूस ने यूक्रेन की सीमा पर लाखों सैनिकों को युद्ध के लिए उतार दिया है। पश्चिमी मीडिया इस मुद्दे पर मास्को विरोधी प्रचार कर रहा है। वे कहते हैं कि पुतिन यूक्रेन पर कब्ज़ा करना चाहते हैं। लेकिन कहानी में पूरी तरह से हेरफेर किया गया है। पुतिन यूक्रेन पर आक्रमण नहीं करना चाहते हैं। वह बस इतना चाहते हैं कि पूर्वी यूरोप में रूसी प्रभाव बरकरार रहे। रूस नहीं चाहता कि नाटो पूर्व की ओर बढ़े और जॉर्जिया और यूक्रेन जैसे देशों में पहुंचे। अगर अमेरिका इन देशों से खुद को दूर रखता है तो पुतिन तनाव नहीं बढ़ाएंगे पर अमेरिका और उसके सहयोगी इस बात का अनुपालन करने को तैयार नहीं हैं और न ही रूस पीछे हट रहा है।
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गौरतलब है कि भारत ने यूक्रेन से संबंधित तनाव को तत्काल कम करने का आह्वान किया, दीर्घकालिक शांति और स्थिरता के लिए मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के लिए अपना समर्थन दोहराया और शांत और रचनात्मक कूटनीति की अपील की। रूस-यूक्रेन विवाद जहां एक ओर दिन-प्रतिदिन रौद्र स्वरूप लेता जा रहा है तो वहीं अधिकांश पश्चिमी देश रूस को घेरते हुए उसे दुनियाभर का सबसे बड़ा मानवाधिकार उल्लंघनकर्ता के रूप में दिखाना चाह रहे हैं।
ऐसे में अब तक संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपना रुख तटस्थ रखते आ रहे भारत ने लगातार चौथी बार अपने रुख को स्पष्ट रखा और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में हुई वोटिंग में भाग न लेकर विश्व को अपना संदेश दे दिया है। इस समर्थन के लिए और अमेरिकी दबाव में न झुकने के लिए रूस ने भारत को धन्यवाद भी दिया। हालांकि, रूस के प्रति भारत का रूख क्या होगा यह पहले ही स्पष्ट हो चुका था और साथ ही संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के वोटिंग के दौरान अपनी अनुपस्थिति से भी भारत ने सबकुछ पहले ही तय कर दिया है।
रूस हमेशा भारत के साथ खड़ा रहा है
भारत को जब भी मदद की जरूरत पड़ी, रूस हमेशा कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हुआ। नई दिल्ली और मॉस्को के बीच विशेष और रणनीतिक साझेदारी का सबसे हालिया उदाहरण यह तथ्य है कि जब भारत को चीन के साथ 2020 के गलवान विवाद के दौरान हथियारों और गोला-बारूद की जरूरत थी, रूस ने बिना किसी हिचकिचाहट के मदद के लिए कदम बढ़ाया। यह रूस की सैन्य सहायता है जिसने भारत को पूर्वी लद्दाख में चीन को चुनौती देने में मदद की। रूस ने भारत को S-400 वायु रक्षा प्रणालियों की डिलीवरी भी शुरू कर दी है।
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रूस ने 1971 भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध में भी भारत का साथ दिया था। वहीं कारगिल युद्ध के दौरान भी रूस ने भारत का समर्थन किया था। अब, नई दिल्ली ने यूएनएससी में रूस विरोधी प्रस्ताव का समर्थन न करके अपनी भूमिका और मित्रता निभाई और भारत ने पश्चिम के रूस विरोधी और पुतिन विरोधी प्रचार को खारिज कर दिया है। पूर्वी यूरोप की स्थिति कहीं अधिक बारीक है और भारत यह जानता है, यही कारण है कि उसने रूस के हितों के खिलाफ काम नहीं किया। भारत और रूस के बीच मित्रता का एक और उदहारण तब सामने आया जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के खार्किव शहर में फंसे भारतीय छात्रों को तत्काल निकालने पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत की।
वहीं यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील करते हुए उनसे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से “बातचीत ” और “उन्हें समझाने का आग्रह किया कि यह युद्ध सभी के हित के खिलाफ है”। उन्होंने “साधारण भारतीयों” को भी एक संदेश दिया और उनका समर्थन मांगा। पिछले सप्ताह रूस द्वारा पूर्ण पैमाने पर आक्रमण शुरू करने के बाद ग्यारहवें दिन कीव ने अपनी लड़ाई जारी रखी है।
दुनिया भर के देशों के समर्थन पर एक सवाल के जवाब में, कुलेबा ने कहा कि “प्रधानमंत्री मोदी, हम उनसे राष्ट्रपति पुतिन तक पहुंचने और उन्हें समझाने के लिए कहते हैं कि यह युद्ध सभी के हित के खिलाफ है। कुलेबा ने कहा, इस युद्ध में स्वयं राष्ट्रपति पुतिन रुचि रखते हैं।
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उन्होंने कहा, भारत “यूक्रेनी कृषि उत्पादों के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है और अगर यह युद्ध जारी रहता है, तो हमारे लिए नई फसल बोना मुश्किल होगा। “इसलिए, वैश्विक और भारतीय खाद्य सुरक्षा के मामले में भी, इस युद्ध को रोकना सबसे अच्छा हित है।
युद्ध रोकने का माद्दा रखते हैं मोदी!
वहीं इस युद्ध को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की और रूस के पुतिन से भारतीयों की सुरक्षा को लेकर बात की है. वह स्थिति की समीक्षा के लिए उच्च स्तरीय बैठकें भी कर रहे हैं। भारत ने अमेरिका और पश्चिम देशों को भी यह बता दिया है कि वो अपने फैसले अपने हिसाब से लेता है और पश्चिम देशों की कोई भी प्रतिबंध वाली गीदड़भभकी से नहीं डरता। भारत विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार है अगर कोई भी देश भारत से पंगा लेगा तो भारत भी जवाबी फैसले लेने के लिए तैयार है।
वहीं यूक्रेन के तरफ से बार-बार भारत को युद्ध रोकने के लिए आह्वाहन करना यह साबित करता है कि भारत और भारत के प्रधानमंत्री मोदी ही विश्व के एक मात्र ऐसे नेता हैं जो रूस-यूक्रेन के युद्ध को रोक सकते हैं।