रूस पर यूक्रेन के हमले के बाद नाटो देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंध के कारण रूस को अपने कच्चे तेल के निर्यात में कठिनाई हो रही है। जैसे ही रूस के कच्चे तेल और नेचुरल गैस निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया और यूरोपीय बाजार रूस के लिए बंद हुए, रूस ने भारत के साथ निर्यात की संभावनाओं को तलाशना शुरू कर दिया।
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने राज्यसभा को बताया कि रूस के साथ कम कीमत पर कच्चे तेल के आयात के लिए बातचीत चल रही है। TFI ने अपनी एक रिपोर्ट में पहले ही बताया था कि रूस कच्चे तेल सहित अन्य वस्तुओं को भारत को कम दाम में उपलब्ध कराने के लिए तैयार है। आर्थिक प्रतिबंध के कारण लेन-देन डॉलर में नहीं हो सकता अतः रुपए और रूबल के माध्यम से व्यापार करने के लिए वैकल्पिक मार्ग पर विचार हो रहा है। भारत के साथ जो बातचीत चल रही है उसके अंतर्गत रूस भारत तक कच्चे तेल के सुरक्षित निर्यात की जिम्मेदारी भी लेगा।
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भारत ने सबको दिखाया ठेंगा
अमेरिका की ओर से बयान देते हुए व्हाइट हाउस प्रेस सेक्रेट्री ने इस संदर्भ में बयान देते हुए कहा है कि भारत का यह कदम अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं है किंतु यह समझौता भारत को ‛इतिहास के गलत पक्ष’ में खड़ा कर रहा है। अर्थात अमेरिका इस समझौते के बाद भारत पर किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं करेगा किंतु वह भारत को नैतिकता के आधार पर रूस के साथ न खड़े होने की सलाह जरूर दे रहा है।
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भले ही अमेरिका ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध न लगाने की बात कही है किंतु भारत सरकार इस समझौते को लेकर पूरी सतर्कता के साथ आगे बढ़ रही है। इसीलिए लेनदेन हेतु रुपए और रूबल का प्रयोग हो रहा है। साथ ही भारत सरकार एक ऐसे बैंक के माध्यम से इस समझौते को करने वाली है जो अमेरिका के साथ होने वाले व्यापार में संलिप्त नहीं है।
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हमारे लिए जो फायदेमंद होगा, हम करेंगे
वर्तमान में भारत अपनी आवश्यकता का 80% तेल आयात करता है। इसमें से दो तीन प्रतिशत तेल ही रूस से आयात किया जाता है। यूक्रेन संकट के कारण अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में दाम 40% तक बढ़ गए हैं। ऐसे में भारत के आयात बिल पर इसका प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा। अतः यह आवश्यक है कि भारत सस्ते दाम पर कच्चे तेल का आयात करे।
तेल के अतिरिक्त फ़र्टिलाइज़र सहित अन्य सामग्रियों को भी रूस और सहयोगी बेलारूस भारत को कम दाम पर उपलब्ध करवाने को तैयार हैं। इसका लाभ भी आयात बिल पर सकारात्मक रूप से दिखाई देगा। वर्ष 2022-23 में भारत सरकार ने फ़र्टिलाइज़र पर 1.2 लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी दी थी, यदि भारत को कम दाम पर फर्टिलाइजर उपलब्ध होगा तो बजट में कटौती होगी जिसका प्रयोग अन्य जगहों पर किया जा सकेगा।
भारत के पास रूस से सस्ता तेल खरीदने के अतिरिक्त कोई विकल्प वैसे भी नहीं बचा है। वुहान वायरस के कारण पहले ही आर्थिक रफ्तार धीमी पड़ चुकी थी। वैक्सीनेशन और महामारी के कुशल प्रबंधन के बाद अर्थव्यवस्था पटरी पर आना शुरू की थी तभी यूक्रेन संकट शुरू हो गया है। तेल के दाम बढ़ने से यातायात खर्च में वृद्धि होगी जिससे अन्य सामग्रियों के दाम भी बढ़ेंगे। भारत सहित पूरा विश्व पहले ही मुद्रास्फीति का सामना कर रहा है जिससे महंगाई बढ़ी हुई है। तेल के बढ़ते दाम इस मुसीबत को और बड़ा कर देंगे। भारत रूस के प्रस्ताव को अस्वीकार करने की मूर्खता नहीं कर सकता था।
यदि अमेरिका को भारत को अपने साथ रखना है तो पहले अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की आपूर्ति बढ़ानी होगी। ईरान और वेनेजुएला जैसे देशों से प्रतिबंध हटा कर तेल आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी। उसके बाद भारत पर यह दबाव बनाया जाए कि वह रूस के साथ ना जाए तो यह तार्किक रूप से थोड़ा उचित भी लगेगा। रही बात नैतिकता की तो अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में यह शब्द दूसरे देशों को ज्ञान देने के लिए प्रयोग होता है।