देश के विश्वास पर इस तरह खरे उतर रहे हैं एस. जयशंकर

एस. जयशंकर बन गए तारणहार

देखन में छोटे लगैं घाव करैं गम्भीर, यह कथन आज के परिप्रेक्ष्य में भारत पर एकदम सटीक बैठता है। जहां बीते सात दशक से भारत हर बार अमेरिका और अन्य किसी देश के प्रतिक्रिया देने के बाद अपनी ओर से कदम आगे बढ़ाता था, आज वो अक्षम से सक्षम राष्ट्र बनने तक का सफर तय कर चुका है। उसे अब किसी भी देश के इशारे या आदेश की आवश्यकता नहीं कि वो कूटनीतिक तौर पर किस तरह का व्यवहार सभी के साथ करे।

एस. जयशंकर ने दृढ़निश्चयता का दिया है अप्रतिम परिचय

रूस-यूक्रेन विवाद जारी है और ऐसी स्थिति में देश के विदेश सचिव से देश के विदेश मंत्री बने एस. जयशंकर ने अपने दृढ़निश्चयता का अप्रतिम परिचय देते हुए दर्शा दिया कि “बंदे में है दम।” यह मोदी सरकार की कूटनीतिक विजय ही है जो उसके एक बार कहने पर यूक्रेन और रूस विवाद में फंसे मूल भारतीयों को झट से निर्वासित करने का कठिन लगने वाला काम आसानी से पूर्ण हो गया।

और पढ़े:- “दिमाग खुला रखो, फिर बात करो”, भारत विरोधी तत्वों से निपटने के लिए जयशंकर का तगड़ा फॉर्मूला

स्वयं एस.जयशंकर इस बात के उदाहरण हैं कि अपनी राजनयिक वाली सोच के परिणामस्वरूप उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जो सलाह दी उसके चलते ही यह सब विगतवार सकारात्मक होता दिखने लगा। भारत अब तक यूपीए शासन में इजराइल के सन्दर्भ में जब भी बात आती थी तो उसके विरुद्ध UN में जाकर वोट कर दिया करता था इसलिए क्योंकि भारत के मुसलमानों के वोट में सेंध न लगे। पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार आते ही अब भारत उससे परहेज करता नज़र आता है अर्थात स्वयं को तटस्थ बना कर अपना रुख स्पष्ट रखता है। ऐसे में इस बार अमेरिका ने तीन बार भारत से रूस के विरुद्ध अपना पक्ष रखने को कहा और दबाव डालना चाहा पर यह पीएम मोदी को दी गई एस.जयशंकर की सलाह ही होगी कि विश्व भले ही आज भारत के तटस्थ रहने पर सवाल उठाए पर शीघ्र ही सब भूल भी जाएंगे।

भारत को स्वीकार नहीं अमेरिका के दबाव में आ जाना  

ऐसे में रूस से भारत के रिश्तों को बिगाड़ अमेरिका के दबाव में आ जाना भारत को स्वीकार नहीं था। इसी के परिणामस्वरूप भारत ने एक बार नहीं, दो बार नहीं बल्कि पूरे तीन बार रूस-यूक्रेन विवाद पर अपना रुख तटस्थ रखा। इस व्यवहार ने एक ओर भारत का आगामी भविष्य में होने वाला रुख स्पष्ट कर दिया कि उसका निर्णय आगे भी क्या रहने वाला है, क्योंकि अब यह आम ही हो जाएगा कि रोज़ किसी मुद्दे पर उठकर UN में वोटिंग हो रही है और सब काम तो बाद में होते रहेंगे।

और पढ़ें- आप किसी भी देश के हैं फर्क नहीं पड़ता, यूक्रेन में सिर्फ तिरंगा ही आपको बचा सकता है

इसके अतिरिक्त भारत ने अपनी ओर से भेजे गए विमानों को उस रेखा पर भी उड़ाया जहां मिसाइलों के अतिरिक्त और कुछ नहीं था। नो फ्लाइंग जोन होने के बावजूद भारतीय प्लेन न केवल वहां संचालित हुए बल्कि अपने भारतवंशियों को सकुशल उसी रस्ते से लाया गया जहां अन्य कोई विमान प्रवेश करने से पहले हज़ार बार सोचता है। इसका सबसे बड़ा कारण रूस से भारत की लगातार हो रही बातचीत ही थी, वरना भारत का कोई भी विमान ऐसे प्रवेश करना तो दूर उड़ान भी नहीं भरता। निस्संदेह, यह मोदी सरकार की ही कीर्ति और साहसिक कदम का एक विलक्षण उदारहण था।

ग्राउंड ज़ीरो पर मोदी सरकार कर रही है काम

इस विवाद में सबसे बड़ा प्रश्न था कि, मूलतः भारत के कई लोग यूक्रेन और उससे सटी सीमाओं में फंसे हुए थे। बिना किसी देरी के मोदी सरकार ने अपने छात्रों को निर्वासित करने के लिए Operation Ganga  को अमल में लाने के साथ-साथ ग्राउंड ज़ीरो पर अपने चार केंद्रीय मंत्रियों को यूक्रेन के पास के सभी देशों में भेजा क्योंकि यूक्रेन अपने बचाव के लिए भारत के लोगों का सहारा लेने का प्रयास कर रहा था। ऐसे में जब भारत सरकार ने अपने तीन मंत्रियों केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, किरन रिजिजू और जनरल (सेवानिवृत्त) वीके सिंह को संकटग्रस्त यूक्रेन में फंसे भारतीयों की निकासी के समन्वय के लिए यूक्रेन के पड़ोसी देशों में भेजा इस तरह से यूक्रेन भी समझ गया होगा कि भारत इस बात के लिए बहुत संवेदनशील है। यदि भारतीय छात्रों के साथ ज़रा भी ऊंच-नीच होती तो वो केन्द्रीय मंत्री सैर करने के लिए उन देशों में नहीं गए हैं।

और पढ़ें:- ‘राष्ट्रहित जरुरी, PR नहीं’, एस. जयशंकर आखिर क्यों छोटे द्वीपीय देशों को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं

इस डर से भयभीत होकर यूक्रेन को भी घुटने टेकने पर मजबूर कर देने वाले रणनीतिक सूझ-भूझ का परिचय एस. जयशंकर ने दिया जोकि किसी भी देश के विदेश मंत्री के लिए कर पाना बेहद जटिल जान पड़ता है। अमेरिका-चीन-ब्रिटेन इसके सटीक उदारहण है जो अपने देश को लाने में अक्षम हैं और भारत सक्षम बन अपने अधिकांश भारतीयों को सकुशल वापस ले आया है।

अहम भूमिका में रहा है भारत का तटस्थ रुख

यह सर्वविदित है कि इतना आसान लगने वाले इस प्रयास में भारत की तटस्थ नीति ने सबसे बड़ी अहम भूमिका निभाई है। आलोचक तो आलोचना करते हैं, करते थे और करते रहेंगे उनका काम ही यही करना है। शास्वत सत्य यही है कि यदि भारत तटस्थ रुख न अपनाता तो अवश्यंभावी उसको बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती जिसकी कल्पना करने मात्र से ही आमजन की रूह कांप उठती। और तो और जिस प्रकार प्रधानमंत्री मोदी के निर्देशन में देश के विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने औचक निर्णय लेते हुए सभी पक्षों को सुनियोजित कर अमल मं  लाने का काम किया, शायद ही कोई और कर पाता। निश्चित रूप से अब भारत असल में अपने “आत्मनिर्भर” होने की बात को चरितार्थ कर चुका है।

Exit mobile version