Exit Polls ने स्पष्ट कर दिया कि पंजाब में कांग्रेस द्वारा खेला गया दलित कार्ड एक बड़ा दिखावा था

कांग्रेस के दिल के अरमा आंसुओं में बह गए!

Channi

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कांग्रेस पार्टी यदि इतनी ही नीतिगत तौर पर सशक्त होती तो आज उसका हाल दोयम दर्ज़े का नहीं होता। पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में से चार के नतीजे कांग्रेस के लिए इतने प्रभावशाली नहीं होंगे, जितना एक राज्य पंजाब में होगा। लेकिन पंजाब में भी सबसे बड़ा झटका कांग्रेस को ही लगने वाला है, क्योंकि पांच राज्यों में हुए चुनावों में अकेले पंजाब में ही कांग्रेस की सरकार थी, अन्य जगहों पर पार्टी अपने नंबर बढ़ाने के लिए चुनावी दंगल में थी। अब चुनाव के बाद एग्जिट पोल राज्य के माहौल के मुताबिक पंजाब में आम आदमी पार्टी को बहुमत मिलते दिखा रहे हैं। लेकिन इसके साथ ही कांग्रेस के उन दावों की पोल खुल गई है जिसमें उसने खुद को दलित हितैषी बताकर अमरिंदर सिंह को पद से हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया था। राजनीतिक हलकों में चर्चा थी कि कांग्रेस अपने दलित कार्ड के जरिए चुनाव में बढ़त बना लेगी, पर एग्जिट पोल ने सभी आशंकाओं का गला घोंट दिया है।

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ध्वस्त हो गए कांग्रेस के हवा हवाई किले

दरअसल, ‘दलित सिख’ के नाम पर वोट लेने की जुगत में पंजाब के नए मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा के बाद सभी हैरान हो गए थे कि कांग्रेस ने ये कैसा पासा खेल दिया? अमरिंदर सिंह जैसे पुराने राजनीतिज्ञ को पीछे करते हुए चरणजीत सिंह चन्नी जैसे गुमनाम व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने दलित कार्ड खेल दिया था। तब तमाम मीडिया हाउस की ओर से कहा गया कि पंजाब के नए सीएम चन्नी दलित सिख हैं। वहीं, कांग्रेस को चन्नी के रूप में राज्य में सरकार की पुनः वापसी की आस जगती दिखाई तो दी, पर एग्जिट पोल ने उसके सपनों को ध्वस्त करने के अतिरिक्त कुछ नहीं किया।

ध्यान देने वाली बात है कि काम के बदले अबकी बार कांग्रेस जाति पर वोट मांगने का परोक्ष रूप से काम कर रही थी। दलितों के रविदासिया समुदाय से आने वाले चरणजीत सिंह चन्नी को राज्य की जनता के समक्ष कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बना पेश तो किया ही, साथ ही यह भी प्रदर्शित करना चाहा कि कांग्रेस के मन में दलित वर्ग के लिए इतना सम्मान है कि वो सीएम की कुर्सी अगड़े नहीं पिछड़ों को देना बेहतर समझती है। इसके पीछे कांग्रेस का तर्क था कि उनके उत्थान के लिए कांग्रेस ही प्रतिबद्ध है और सभी दल तो दलित वर्ग का शोषण करते हैं।

इन समुदायों को किया था सााधने का प्रयास

दरअसल, दलित सिखों को दो समुदायों में विभाजित किया गया है, जिनका पहला नाम मजहबी और रंगरेटा है। ये मैला ढोने वाले या सफाईकर्मी समुदाय थे, जो अपनी ‘जाति’ से छुटकारा पाने के लिए सिख धर्म में परिवर्तित हो गए। मजहबी और रंगरेटा का सैनिकों के रूप में एक गौरवशाली इतिहास रहा है, लेकिन दुर्भाग्य से, उन्हें सिखों में उच्च जातियों के बराबर कभी जगह नहीं मिली। कई अध्ययनों ने सुझाव दिया है कि जाट सिख और अन्य उच्च जातियां अक्सर धार्मिक समारोहों के दौरान उनके साथ जुड़ने से इनकार करती हैं। दलित सिखों में दूसरे समुदाय में रामदसिया और रविदास हैं। ये पहले मोची और बुनकर समुदायों से थे, जो बाद में सिख धर्म में परिवर्तित हो गए थे। रामदासियां अभी भी बुनाई के कारोबार में लिप्त हैं, जबकि रविदासिया ज्यादातर चमड़े के काम से जुड़े व्यवसायों में लगे हुए हैं।

कांग्रेस आलाकमान द्वारा इन सभी वर्गों को चरणजीत सिंह चन्नी के नाम के आगे साधने का अथक प्रयास तो हुआ, पर दलित कार्ड के नाम पर पार्टी को ठन-ठन गोपाल ही हाथ लगा। चन्नी की स्वीकार्यता पर ताला जड़ जाने के बाद कांग्रेस आलाकमान के भीतर अब असली असमंजस की स्थिति पैदा होगी कि अमरिंदर को कांग्रेस पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना क्या उसकी सबसे बड़ी भूल थी?

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