आपस में ही सिर फुटव्वल कर रहे हैं कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री,अब पार्टी का टूटना तय है!

अपने ही प्यादों को क्यों लड़वा रही है कांग्रेस?

आपका सबसे बड़ा शत्रु आपका कोई निकटतम व्यक्ति ही होता है, कांग्रेस पार्टी के संदर्भ में ये कथन एक एकदम सटीक बैठता है। प्रमुख रूप से पहली निर्णायक भूमिका में पार्टी के पास अभी मात्र 3 राज्य ऐसे हैं जहां कांग्रेस की सरकार है। राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ जिसमें पंजाब के चुनाव हाल ही में संपन्न हुए हैं और 10 मार्च को परिणाम घोषित होने हैं। आँकड़ों की स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहती है या नहीं वो तो समय बताएगा। ऐसे में ले देकर किन्हीं राज्यों में सरकार बना अपनी साख बचा पाने वाली कांग्रेस राजनीतिक रूप से इतनी कच्ची खिलाड़ी हो गई है कि उसके मुख्यमंत्री अपने ही साथी मुख्यमंत्री से रुष्ट हुए बैठे हैं।

नहीं खत्म हो रही कांग्रेस पार्टी अंधरूनी कलह

कांग्रेस पार्टी अंधरूनी कलह से ही बाहर नहीं निकल पा रही है और उसी की पार्टी के दो मुख्यमंत्री एक दूसरे के काम में रोड़े अटकाने पर उतारू है। ऐसे में बीच-बचाव के लिए कांग्रेस पार्टी के आलाकमान को आना पड़ रहा है।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जो कि सोनिया गांधी के करीबी माने जाते हैं और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जो कि राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं। हालांकि ये सब एक ही पार्टी के नेता है लेकिन इन दोनों ही मुख्यमंत्रियों के मध्य गजब का द्वंद्व छिड़ा हुआ जिसे शांत कराने का प्रयास राहुल गांधी को करना पड़ रहा है।

दरअसल, सीएम गहलोत और छत्तीसगढ़ सरकार के बीच बिजली परियोजनाओं को आवंटित ब्लॉकों से कोयला उत्पादन (Coal blocks allottment) के लिए मंजूरी में तेजी लाने के लिए चल रही खींचतान बड़े मुद्दे का रूप ले चुकी है। अशोक गहलोत ने इस संदर्भ में पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को इस बाबत दिसंबर माह में लिखे पत्र में कहा था कि छत्तीसगढ़ सरकार से बार-बार अनुरोध करने के बावजूद, राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राजस्थान सरकार को आवंटित कोयला ब्लॉकों में खनन के लिए मंजूरी नहीं दी है। सीएम गहलोत ने यह भी कहा था कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को लगातार पत्र लिखने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। ज्ञात हो कि परसा कोयला ब्लॉक में प्रति दिन 2.7 रैक कोयले की आपूर्ति क्षमता और सालाना पांच मिलियन टन कोयले की उत्पादन क्षमता होने का अनुमान है।

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यह सिर फुटव्वल तब है जब दोनों राज्यों में कांग्रेस की ही सरकार हैं, वैसे भी बीते 8 सालों में कांग्रेस के पतन की कहानी इस बात का प्रमाण है कि पार्टी के भीतर कितने अंतर्विरोध स्थापित हैं। बता दें कि इस गतिरोध ने राजस्थान को अत्यधिक कोयले की कमी के लिए मजबूर कर दिया है, जिससे राज्य में बिजली उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

इस पूरे विवाद को लग चुकी हवा के कारण कांग्रेस आलाकमान को आंतरिक समिति का गठन करने की स्थिति आ गई। 27 फ़रवरी को राहुल गांधी ने सीएम गहलोत और सीएम बघेल के साथ बैठक की थी। इसके बाद राहुल गांधी ने दोनों मुख्यमंत्रियों को आश्वासन दिया था कि कांग्रेस पार्टी जल्द ही इस मुद्दे पर एक आंतरिक समिति बनाएगी, जो छत्तीसगढ़ में राजस्थान सरकार को आवंटित कोयला खदान का जायजा लेगी। इस मुद्दे पर कोई फैसला उक्त समिति द्वारा पार्टी को अपनी रिपोर्ट दाखिल करने के बाद ही लिया जाएगा।

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पूरे प्रकरण में पिस रही है जनता 

इस पूरे प्रकरण में पिस जनता रही है, गहलोत सरकार के अनुसार इस खदान के चालू नहीं होने से राज्य के बिजली घरों में कोयले का संकट पैदा हो गया है। राज्य की कुल 7,580 मेगावाट की ताप विद्युत क्षमता में से लगभग 4,000 मेगावाट बिजली उत्पादन प्रभावित हो रहा है क्योंकि अधिकांश बिजली संयंत्र कम क्षमता पर चल रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों और कस्बों और शहरों में अघोषित बिजली कटौती का सहारा लिया है। सिंचाई के लिए पर्याप्त बिजली नहीं मिलने से किसान भी चिंतित हैं।

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इन नेताओं ने राज्य की जनता को मज़ाक़ का पात्र समझ लिया है और कांग्रेस आलाकमान तो अपने नेताओं और 10 जनपथ की रिक्तता को भरने में असहाय महसूस कर रहा है तो वहीं यह सिद्ध हो गया है कि कांग्रेस अब सही हाथों में है ही नहीं। कांग्रेस पार्टी के नेताओं और गिने चुने मुख्यमंत्रियों को जनता से सरोकार होता तो यह मामला इतना खींचता ही नहीं।

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