चिकित्सक को धरती का भगवान कहते हैं क्योंकि वे चिकित्सक ही है जो किसी की प्राण बचा सकते हैं। पर आप स्वयं सोचिए कि क्या जीवन और मृत्यु के कालचक्र से स्वयं ईश्वर के अवतार भी नहीं बंधे? राम, कृष्ण से लेकर बुद्ध भी निर्वाण को प्राप्त हुए। तो फिर हम चिकित्सक के जान बचाने के पेशेवर कर्तव्य को एक नैतिक और कानूनी बाध्यता में क्यों परिवर्तित कर देते हैं? एक चिकित्सक का कर्तव्य है कि पूरे तन, मन, धन और समर्पण के साथ अपने रोगी की चिकित्सा करे। अपने मरीज को रोगमुक्त करने में कोई कसर बाकी ना रखें। बाकी जीवन मरण तो रोग की तीव्रता और मरीज की परिस्थिति पर भी निर्भर करता है, पर आमजन और भावनाओं में बंद लोगों को यह बात समझ में नहीं आती। अपने प्रिय जन को खोने के बाद लोग अपना आपा खो देते हैं और उनके कोप का भागी बनते हैं निर्दोष चिकित्सक।
और पढ़ें:- Dear Mamata Banerjee, चुनाव आयोग अब आपको ठीक करने के लिए आ रहा है
राजस्थान के दौसा जिले में इसी तरह का एक मामला प्रकाश में आया है। हुआ कुछ यूं कि लालसोट के कोथून रोड स्थित आनंद हॉस्पिटल की डॉक्टर साहिबा अर्चना शर्मा के पास एक गर्भवती महिला का केस आया। दरअसल, वह महिला प्रसव हेतु डॉक्टर अर्चना शर्मा के पास आई थी। प्रसूता औरत की परिस्थिति को देखते हुए इस केस को एक जटिल चिकित्सीय मामला कहा जा सकता था। डॉक्टर अर्चना शर्मा ने अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए पूरे तन, मन, धन और समर्पण के साथ अपने रोगी का उपचार किया। परंतु, जैसा कि हमने पहले भी कहा कि डॉक्टर जान बचा सकता है, लेकिन डॉक्टर जान बचा ही लेगा, यह परिस्थिति और रोगी के हालात पर भी निर्भर करता है। डॉक्टर अर्चना शर्मा की पूरी कोशिशों के बावजूद वह गर्भवती महिला नहीं बच पाई। इसके बाद शुरू हुआ उधर प्रताड़ित करने का पूरा चक्रव्यूह। अमृत गर्भवती महिला के प्रिय जनों में भावनाओं के आवेग में अपना आपा खो दिया।
पुलिस के मुताबिक प्रसूता की मौत के बाद परिजन व अन्य लोगों ने हॉस्पिटल के गेट पर धरना प्रदर्शन किया था। आनंद हॉस्पिटल में प्रसूता आशादेवी पति लालूराम बैरवा निवासी के खेमायास की मौत के बाद सोमवार देर रात तक हंगामा होता रहा। प्रसूता के पति ने महिला चिकित्सक व हॉस्पिटल संचालक उनके पति के खिलाफ लापरवाही के आरोप लगाते हुए हत्या का मामला दर्ज कराया था।
और पढ़ें:- शर्मनाक! हमारे विपक्षी पीएम उम्मीदवार के विचार ऐसे हैं!
इस तरह के जटिल और अपनी पूरी कोशिशों के बावजूद भी डॉक्टर अर्चना शर्मा को एक आरोपी और अपराधी के चश्मे से देखा जाने लगा। गर्भवती महिला के प्रियजनों ने उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत एफआईआर भी दर्ज करवा दी। कानूनी लिहाज से अगर देखें तो यह भी बड़ी ही विचित्र बात है क्योंकि अगर आप एक डॉक्टर पूर्ण रूप से अपने पेशेवर कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए अपने मरीज को बचाने में असफल हो जाता है तो उस पर 302 के तहत मामला नहीं बनेगा। परंतु, फिर भी लचर जटिल और दुरूह कानूनी व्यवस्था एक कर्तव्य परायण महिला डॉक्टर को प्रताड़ित करने के लिए तो काफी ही है। प्रताड़ना और कानूनी चक्रव्यूह से आजिज आकर डॉक्टर अर्चना शर्मा ने आत्महत्या कर ली। अपने सुसाइड नोट में वह बताना चाहती हैं कि वह निर्दोष है। उन्होंने पूर्ण रूप से अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। परंतु, मामले की जटिलता और मरीज के हालात को देखते हुए उसे बचाना असंभव था। कहने का मतलब है कि उनकी नियत साफ थी, पर उनका लक्ष्य असंभव। कानूनी चक्रव्यूह और मानसिक प्रताड़ना से इतनी आजिज आ चुकी थी उन्होंने अपने सुसाइड नोट में अपने पति और बच्चों को परेशान ना करने की गुहार भी लगाई है।
पुलिस अधीक्षक दौसा अनिल बेनीवाल के मुताबिक महिला चिकित्सा की आत्महत्या मामले में रिपोर्ट दर्ज कर ली गई है। उन्होंने मामले में उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया है। राजस्थान सरकार ने पुलिस अधीक्षक और थाना प्रभारी को निलंबित कर दिया है।
और पढ़ें:- ‘फासीवादी’ भाजपा ने दशकों पुराने संघर्षों को शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से हल कर दिया
डॉक्टर अर्चना सिंह शर्मा की आत्महत्या हमारी लचर स्वास्थ्य व्यवस्था प्रशासनिक अक्षमता और समाज के गिरते नैतिक मूल्यों को प्रदर्शित करती है। हाल के दिनों में आमजन द्वारा भावनाओं के आवेग में आकर चिकित्सकों को प्रताड़ित करने के मामले बड़े हैं। हमने कोरोना लहर में भी देखा की धरती के भगवान कहे जाने वाले चिकित्सकों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए भी कितने सारे लोगों को काल के जबड़े से खींचकर लाएं। उन्होंने दिन रात अथक श्रम कर अपने मरीजों को ऐसे सुरक्षा कवच बना दिया कि यमराज भी इसे नहीं भेद पाए। लेकिन, फिर भी आएगी चिकित्सकों पर हमले की खबर आती रहती है कभी बंगाल कभी बिहार तो कभी राजस्थान तो कभी बंगाल। हमारे समाज को यह रोकना होगा। सरकार को भी डॉक्टर्स को सुरक्षा प्रदान करना पड़ेगा।