बेशर्मी की भी एक हद होती है लेकिन BBC को कोई फर्क नहीं पड़ता!

दलाली से आगे BBC की पत्रकारिता कभी बढ़ी ही नहीं!

SOURCE- TFIPOST

जब आती सच्चाई साथ, निकल जाते घर के भेदियों के हाथ, आ जाते हैं वो एक साथ क्योंकि नारा है उनका ‘देश बाँट।’ ये नारा उन बुजदिलों के लिए हैं जो कश्मीरी पंडितों के नुमाइंदे बनते हैं और आज की तारिख में असल में उन्हीं के सबसे बड़े शत्रु बन उनकी जड़ें काटने में लगे हैं। ऐसे ही चेहरों की आजतक BBC जैसे कट्टपंथ को परोसने वाले समूह को आवश्यकता रही है। जहाँ बात भारत विघटन से जुडी होगी BBC उसको रिपोर्ट करने वाला सबसे पहला चैनल होगा, और ये रिपोर्ट सकारात्मक नहीं नकारात्मक और हेय दृष्टि से की जाने वाली रिपोर्टिंग का प्रयाय है।

चूंकि, कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर आधारित ‘द कश्मीर फाइल्स’  बिना शोरगुल के 200 करोड़ के बिजनेस को पार करने जा रही है BBC को यह लगा कि अब क्या किया जाए कि इस फिल्म के बारे में रिपोर्ट भी कर दें और हमारा एजेंडा भी पूर्ण हो जाए। तो BBC पहुंचा जम्मू के जगती टाउनशिप में स्थानांतरित किए गए विस्थापित कश्मीरी पंडितों के विचार और राय लेने। यहाँ जो हुआ वो BBC ने प्रमुखता से दिखाया और फिर बारी आई दर्शक की जिसने BBC को आईना दिखा दिया और आज BBC की तथाकथित पत्रकारिता को कुस्मित फूल की वर्षा से लाद दिया गया है।

चूंकि, कश्मीरी पंडितों के पलायन का दर्द और पीड़ा बताने वाली द कश्मीर फाइल्स के रिलीज़ होने के बाद से वो अधिक चर्चा का विषय बन गई है, बीबीसी न्यूज हिंदी ने हाल ही में जम्मू के जगती टाउनशिप में विस्थापित कश्मीरी पंडितों के विचारों को कवर करने के उद्देश्य से एक लेख एक साथ एक वीडियो रिपोर्ट को भी प्रकाशित किया था। इस पूरी रिपोर्ट में चंद कश्मीरी पंडितों के ठेकेदार बने लोगों को अपनी बात रखने का स्थान दिया जिनमें कॉलोनी के दो निवासियों – शादी लाल पंडिता और सुनील पंडिता की आवाज़ को बढ़ाया, जिनके कश्मीर फाइल्स की रिलीज के खिलाफ आलोचनात्मक विचारों को बीबीसी द्वारा जम्मू में बसे पूरे कश्मीरी पंडित समुदाय की आवाज़ के रूप में बताया गया है।

इस पूरे एजेंडे को न जाने कितने स्वघोषित कश्मीर के हिमायती नेताओं, पार्टियों ने अपने ट्विटर हैंडल पर शेयर किया क्योंकि उनका तो धर्म था कि कहीं से भी कैसी भी कोई भी रिकॉर्डिंग मिल जाए जिसको ‘द कश्मीर फाइल्स’ के विरोध में परोक्ष रूप से प्रचारित कर सकें। फिर क्या सीपीआई क्या सपाई, कांग्रेसी सीएम से लेकर चंद प्रवक्ताओं की जमात ने इस वीडियो को जमकर शेयर किया और उसे असल सच्चाई बताया क्योंकि इन सभी की नज़र में तो ‘द कश्मीर फाइल्स’ एक काल्पनिक पटकथा है जिसको मुस्लिम समुदाय के प्रति खिन्नता और दुष्प्रचार के लिए बनाया गया है। BBC तो इनके लिए इस वीडियो को उस संजीवनी बूटी की तरह लाया जिससे इन सभी के पाप धूल गए और गंगा ही नहा लिए समझो।

16 मार्च को, बीबीसी न्यूज़ हिंदी ने एक लेख प्रकाशित किया, जिसमें जम्मू के जगती टाउनशिप में विस्थापित कश्मीरी पंडितों के विचारों को उजागर करने का दावा किया गया था। ‘द कश्मीर फाइल्स’ के बढ़ते प्रभाव और जनमानस में राष्ट्रभाव के उद्गम की गाथा लिखने वाली इस फिल्म से लिबरलों की नींद उड़ गई। BBC ने इस लेख को ऐसे प्रकाशित किया कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ अर्धसत्य है, वास्तविक सत्य तो BBC खोजकर लाया है। ट्विटर पर इस कैप्शन के साथ वीडियो डाली गई कि, “यह फिल्म 2024 के चुनावों के लिए एक स्टंट है’ और ‘ऐसी फिल्में आगे विभाजन पैदा करेंगी’ जैसे कैप्शन वाले उद्धरण, बीबीसी ट्विटर पर खुला प्रचार कर रहा था।”

BBC के इस झूठ को भी दर्शकों और पाठकों ने ऐसा आईना दिखाया कि शर्म के मारे डूब ही मरे आधे दुष्प्रचारक। ट्विटर के माध्यम से @TheHawkEye ने इस झूठ का पर्दाफाश एक थ्रेड के माध्यम से किया जिसके बाद BBC की लंका में आग लग गई और जनता के रोष का सामना करने के बाद अन्तोत्गत्वा उसने स्पष्ट रूप से नहीं पर गलती मानी और बाद में उस गलती में भी एक पार्टी विशेष की जगह अपने अनुकूल दो पार्टियों का उल्लेख किया ताकि जिस पार्टी और विचार की तरफ BBC का सदा से झुकाव रहा है वो बुरा न मान जाए।

@TheHawkEye ने क्रमानुसार, बिंदुवार ढंग से BBC के झूठ को किस तरह न्यूज़ नहीं एक एजेंडा है कुछ इस प्रकार बताया कि, यह स्थान जिसे BBC ने कश्मीरी पंडित बाहुल्य बताया गया इसमें जिन लोगों की राय BBC ने ली वो मात्र कश्मीरी पंडित नहीं थे,  वो थे राजनीतिक जमीन तलाश रहे चंद तथाकथित कश्मीरी पंडितों के नुमाइंदे जिनका कश्मीरी पंडितों की परेशानियों से कोई सरोकार नहीं बल्कि अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा कैसे पूरी हो उस जुगत में लगे हुए कुछ लोगों में से एक थे ये बकैती विशेषज्ञ। जड़ तक गए तो पता चला एक नहीं दो नहीं ये सभी राजनीतिक रूप से लोभी लोग थे।

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वीडियो की शुरुआत एक ‘निवासी’ शादीलाल पंडिता और साथ में कुछ अन्य लोगों से हुई, जो स्वयं को समाज की इकाई के अध्यक्ष बताते हैं। लेकिन पड़ताल में पता चला कि सच इतना ही नहीं है वर्तमान में, यही शादीलाल पंडिता स्थानीय कांग्रेस द्वारा समर्थित राहत मांग के लिए सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे हैं। वह अपने सार्वजनिक साक्षात्कारों से कट्टर भाजपा विरोधी प्रतीत होते हैं। इसकी झलक @TheHawkEye के ट्वीट में साफ़ प्रदर्शित हो रही थी।

अगले माननीय जो सरकार को घेरते हुए यह कह रहे थे कि इस सरकार ने हमेशा कश्मीरी पंडितों को Political Tissue Paper की भांति उपयोग किया। यह व्यक्ति स्थानीय ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ कार्यकर्ता सुनील पंडिता है। उन्होंने सोशल मीडिया पर फिल्म के बारे में इसी तरह के विचार साझा किए। इनके भी मूल में सरकार के प्रति विरोध और अवसरवाद की लालसा स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है।

वीडियो आगे बढ़ती है तो महिला सशक्तिकरण की प्रयाय बनना चाह रहीं महिला बारूद और न जाने क्या-क्या संज्ञा दे रहीं थीं और जिस शिलापट के सामने जिसको कश्मीरी पंडितों के लिए बनाया गया था कि उनकी एक बसावट हो जाए, उस मुद्दे पर एक शब्द नहीं फूटा कि किस प्रकार इन फ्लैटों जिसका उद्घाटन तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह और उमर अब्दुल्ला ने किया था, जिन फ्लैटों के आवंटन में भ्रष्टाचार और पक्षपात हुआ था इसपर एक शब्द बोलने में ताले जड़ गए मोहतरमा के, पर सच तो पानी की तरह होता है वो प्रवाहित होकर अपना रास्ता निकाल ही ले जाता है।

यहां बात व्यक्तिगत राजनीतिक विचारों की नहीं है, जिसके लिए ये सभी वक्ता स्वतंत्र हैं। लेकिन क्या वे वास्तव में बीबीसी द्वारा अनुमानित पूरे कश्मीर पंडित समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं? वास्तव में, समुदाय तो दूर की बात है ये लोग अपने साथी जगती निवासियों के विचारों तक का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। इन्हीं के साथी, जगती वासियों ने  ‘द कश्मीर फाइल्स’ के मुफ्त टिकट बांटकर फिल्म का प्रचार किया! यदि यह पर्याप्त नहीं है, तो 20-मार्च को जगती निवासियों द्वारा फिल्म के समर्थन में एक बाइक रैली की असंख्य पोस्ट सोशल मीडिया पर मिल जाएंगी उससे अनुमान लगाया जाए कि कौन सही और कौन एजेंडधारी।

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लजाकर माफी मांगने की नौबत पड़ गई

सौ बात की एक बात यह है कि कश्मीरी पंडितों के Genocide पर आधारित इस  ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने जहाँ एक ओर देश और देश के बाहर के लोगों की आँखें खोल दीं तो दूसरी ओर BBC जैसे समूहों की नींदें उड़ा दीं क्योंकि इनका कुनबा ही भारत विरोधी स्टोरियों और विघटन से चलता था।  ‘द कश्मीर फाइल्स’ आने की बाद से इस धंधे में भारी गिरावट दर्ज़ की गई तो इन्होंने हमेशा की तरह सोचा की, “क्यों न एक स्टोरी प्लांट की जाए।” पर बीबीसी यहाँ भी मात खा गया और बाद में जितने भी नेताओं कांग्रेसी हो या सीपीआई का हो या सपाई हो इन सभी ने जितने धड़ल्ले से इस वीडियो को शेयर किया इसकी सत्यता सामने आने के बाद से एक दूसरे की बगले झांक रहे हैं कि अब क्या करें?

इतने विरोध के बाद सोमवार (21 मार्च) को BBC स्पष्टीकरण देना ही बेहतर समझ और एक स्पष्टीकरण जारी किया जो पुनः राजनीति से प्रेरित था। बीबीसी न्यूज़ हिंदी द्वारा पोस्ट किए गए एक ट्वीट में कहा, “बीबीसी हिंदी ने जम्मू में जगती शरणार्थी शिविर में कुछ लोगों से फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ के बारे में बात की। हमने घाटी के विस्थापित कश्मीरी पंडितों तक पहुंचने की अपनी पहल के तहत उनसे बात की। बीबीसी ने आगे कहा, “वीडियो वायरल होने के बाद, यह हमारे संज्ञान में लाया गया है कि ये लोग भी दो प्रमुख राजनीतिक दलों, कांग्रेस और भाजपा से हैं। बीबीसी ने उनसे अपनी-अपनी पार्टियों के प्रतिनिधि के तौर पर बात नहीं की. वे सभी कश्मीरी पंडितों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।”

यदि कांग्रेसी ही लिखते तो 10 जनपथ से फोन आ जाता इसी कारण भाजपा को निशाना बनाना तो एक खली स्थान भरने की औपचारिकता थी। जबकि वीडियो के किसी भी अंश में भाजपा समर्थित किसी के बोल नहीं थे, सबका सरकार को घेरने का मूल मकसद ही था। ऐसे में BBC की विश्वसनीयता पर अपने आप सवाल खड़े होते हैं क्योंकि पत्रकारिता में पहले RESEARCH को महत्व दिया जाता है जो इस रिपोर्ट में निल बटे सन्नाटा की गई थी। इस पूरी रिपोर्ट को एक षड्यंत्र के अतिरिक्त और  ‘द कश्मीर फाइल्स’ के प्रति कुंठा जाहिर करने के लिए प्लांट किया गया था जो बहुत बुरी तरह से पिट गई।

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