सुवेंदु अधिकारी के नेतृत्व में बंगाल भाजपा ने ममता बनर्जी की रातों की नींद उड़ा दी है!

पश्चिम बंगाल में शुरू हो गई है ममता की उल्टी गिनती!

बंगाल भाजपा

Source- TFIPOST

आपको क्या लगता है कि भारतीय जनता पार्टी पिछले साल तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ विधानसभा उपचुनाव क्यों हार गई? वैसे तो कई कारण हैं जैसे मुस्लिम तुष्टिकरण, ममता का नैतिक पतन, हिंसा, जबरदस्ती, धन-बल का प्रयोग, हिंदुओं का कत्लेआम, संवैधानिक संस्थानों पर प्रहार आदि। पर, राजनीतिक हत्याओं और पार्टी से कई नेताओं के पलायन ने पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा दिया। लेकिन बंगाल में भाजपा के तारणहार बने सुवेंदु अधिकारी न ही इससे निराश हुए और न ही अपनी राह से विचलित हुए। वो टीएमसी के खिलाफ डटे रहे और आज भी डटे हुए हैं।

बंगाल बीजेपी TMC के खिलाफ क्यों नहीं जीत पाई?

पश्चिम बंगाल में भाजपा में मचे आंतरिक उथल-पुथल के कारण पार्टी की विफलता हुई, इसने भाजपा जैसी कठोर पदानुक्रमित पार्टी की संगठनात्मक संरचना की कमी को भी दर्शाया। राज्य विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले, कई नेताओं ने टीएमसी में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ दी। भाजपा से टीएमसी में बड़े पैमाने पर दलबदल देखा गया और दोनों घटनाक्रमों ने पश्चिम बंगाल के राज्य भाजपा में पर्याप्त अराजकता पैदा कर दी थी। लेकिन इससे इतर और भी कई कारण थे। बंगाल ममता का गृह क्षेत्र होने के कारण भगवा पार्टी के लिए एक ऐसा चेहरा पेश करना जरूरी था, जो बंगाल में समान रूप से लोकप्रिय हो। इसके अलावा पार्टी के लिए ममता बनर्जी के खेल को समझना भी महत्वपूर्ण था। पर, पार्टी में दोनों की कमी थी।

और पढ़ें: ममता बनर्जी के राज्य में हिंदुओं को न्याय मिलना मुश्किल नहीं, नामुमकिन है!

सुवेंदु के तहत बंगाल भाजपा का उदय

हालांकि, पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद सुवेंदु अधिकारी का नाम पश्चिम बंगाल में एक बड़े नेता के रूप में सामने आया। उन्होंने नंदीग्राम में ममता बनर्जी को हराया, जिसके बाद उन्हें राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में नियुक्त किया गया। वो बंगाल में भाजपा की सबसे बड़ी संपत्ति हैं। वर्ष 2026 में जब समय आएगा सुवेंदु अधिकारी को भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया जाना चाहिए। अधिकारी के पास एक विशाल जन संपर्क और सराहनीय संगठनात्मक कौशल है। वह टीएमसी के उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे, जिन्हें चुनाव जीतने के लिए ममता की लोकप्रियता और करिश्मे पर निर्भर नहीं रहना पड़ा। अधिकारी भी एक सिद्ध विजेता हैं, क्योंकि उन्होंने कई मौकों पर लोकसभा और विधानसभा चुनाव जीते हैं, जिसमें नंदीग्राम की जीत सबसे बड़ी रही है।

सुवेंदु, ममता के सबसे करीबी विश्वासपात्र के रूप में टीएमसी में महत्वपूर्ण स्थान रखते थे। उन्होंने वर्ष 2007 में नंदीग्राम आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने अंततः वामपंथियों के तीन दशक के शासन को समाप्त कर उन्हें ममता की आंखों का तारा बना दिया। पर सुवेंदु अधिकारी वंशवाद की राजनीति के कारण टीएमसी में तेजी से दरकिनार हो गए, उन्होंने अपनी बुलंद राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भाजपा में छलांग लगा दी। अधिकारी कभी ममता के करीबी और टीएमसी के एक प्रमुख सदस्य थे, वो टीएमसी सुप्रीमो के ग्राउंड गेम से भी अच्छी तरह वाकिफ हैं। यही वजह है कि बंगाल में भाजपा का विकास हो रहा है। उनके पास टीएमसी का मुकाबला करने और ममता की शैली में जवाबी कार्रवाई करने की क्षमता है।

बंगाल विधानसभा में हाल ही में बवाल

बंगाल में भाजपा निश्चित रूप से सत्ता में नहीं है, पर अधिकारी का कद तेजी से बढ़ रहा है। इसे पश्चिम बंगाल विधानसभा में हाल ही में हुए हंगामे से समझा जा सकता है। जब विपक्ष ने बीरभूम हिंसा के मद्देनजर कानून-व्यवस्था की स्थिति पर चर्चा के लिए कहा, तो सरकार ने इससे परहेज किया। इसके चलते कोलकाता में असेंबली फ्लोर पर बवाल मच गया। भाजपा विधायक मनोज तिग्गा के साथ कथित तौर पर मारपीट की गई। हंगामे के कुछ घंटे बाद भारतीय जनता पार्टी के पांच विधायक – सुवेंदु अधिकारी, मनोज तिग्गा, नरहरि महतो, शंकर घोष, दीपक बर्मन को निलंबित कर दिया गया। सुवेंदु अधिकारी ने कहा, “मैं अपनी शिकायत अध्यक्ष को लिखूंगा, नियमों के अनुसार कार्रवाई की मांग करूंगा।” बंगाल भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता से टीएमसी डरी हुई है। यही कारण है कि उसने हिंसा से विपक्ष को चुप कराने का सहारा लिया है, लेकिन यह केवल टीएमसी की अक्षमता और कायरता को दर्शाता है!

और पढ़ें: राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की वेदी पर ममता बनर्जी ने दी कोलकाता के आगामी हवाई अड्डे की बलि

Exit mobile version