अर्श से फर्श तक, यह बात अपने ना जाने कितनी बार सुनी होंगी लेकिन आपके नजर में इसका सबके बढ़िया उदाहरण क्या है? अगर तुरंत दिमाग में नहीं आ रहा है तो हम बता दे रहे हैं। कांग्रेस! जी हाँ, कांग्रेस से बढ़िया उदाहरण इस समय पूरे देश में कोई नहीं है। एक समय में भारतीय राजनीति का पर्यायवाची रह चुकी कांग्रेस आज इस स्थिति में आ गई है कि उसे प्रासंगिक बने रहने के लिए अपने नेताओं से वादा करवाना पड़ रहा है।
हम तो डूबेंगे सनम, साथ सभी को ले डूबेंगे। कांग्रेस पार्टी की यही स्थिति आज उसके राजनीतिक पतन को सुनिश्चित कर रही है और इसके परिणामस्वरूप अब गाँधी परिवार की टूट और कांग्रेस पर उसके प्रभुत्व का प्रभाव छिटकता दिख रहा है। वर्तमान शीर्ष नेतृत्व ने एक भी सकारात्मक कार्य नहीं किया है, इससे पार्टी के अन्य शीर्ष नेताओं में असंतोष है।
अब ऐसे में स्वयं गाँधी परिवार के तीनों मुख्य सदस्यों (सनिया गाँधी, राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी वाड्रा) के समक्ष आगामी 10 मार्च को 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम से पहले अपने अस्तित्व का खतरा पैदा हो गया है। कांग्रेस आलाकमान के लिए यह बड़ी चुनौती है कि वो किसी भी तरह अपने लोगों को तो संभाले ही और पार्टी की नेतृत्व करने वाली कड़ी को भी बिखरने से रोक सके।
एग्जिट पोल से असंतोष उभर आया है-
यह सत्य है कि पांच राज्यों में हुए चुनावों में कांग्रेस उत्तरप्रदेश में तो कहीं मुकाबले में दिख ही नहीं रही थी, पर यह उत्तराखंड, गोवा और पंजाब जैसे राज्य में वो टक्कर देते हुए अपनी स्थिति को भुना सकती थी। पंजाब में सरकार होने के बावजूद एग्जिट पोल से परिभषित हो रहे नतीजों ने यह साफ़ कर दिया है कि कैसे कांग्रेस अपनी रही बची साख भी खोती दिख रही है। गोवा में भी स्थिति त्रिशंखू विधानसभा नतीजों की भांति बनती दिख रही थी, पर कांग्रेस की स्थिति व्यक्तिगत रूप से लचर और हाशिए पर पहुँच चुकी है। ऐसे में नतीजों से पूर्व ही उसे अपने Damage Control MODE को क्रियान्वित करना पड़ रहा है।
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आपको बता दें, हताश और आत्मविश्वास से विमुख हो चुकी कांग्रेस ने इस बार अपने चयनित उम्मीदवारों से AFFIDAVIT साइन कराए हैं जिसका मूल मंत्र था की चुनाव जीतने के उपरांत उनमें से कोई भी कांग्रेसी विधायक पाला नहीं बदलेगा, अर्थात दल-बदल नहीं करेगा। जब भरोसे की नींव शंकाओं से भरी हो तो आगामी भविष्य की सुंदर परिकल्पना कैसे की जा सकती है? इतने साम-दाम-दंड-भेद वाली योजना के बाद भी कांग्रेस के भीतर आपसी मनमुटाव और टूट की शंकाओं ने आलाकमान की सांस रोक दी है और रही बची कसर एग्जिट पोल ने पूरी कर दी है।
अब तो जिन्दा रहने के लिए गठबंधन ही एक विकल्प दिख रहा है-
निश्चित रूप से कांग्रेस को यह तो स्पष्ट दिख रहा है कि वो न पंजाब में अपनी सरकार बचा पा रही और न ही अन्य राज्यों में सरकार क्या प्रमुख विपक्षी पार्टी बनने के लिए जद्दोजेहद की स्थिति में स्वयं को पा रही है। यही कारण है जो अब तक सभी चुनावी राज्यों में वीर लड़ाका बन अकेले चुनावी समर में उतरने वाली कांग्रेस के तेवर नरम पड़ रहे हैं। अब वो चुनाव बाद गठबंधन करने वाले विषयों पर भी विचार करने में जुट गई है।
उत्तर प्रदेश का चुनाव संभल रहीं राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा ने यूपी में चुनाव परिणाम के बाद सरकार के गठन में समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ गठबंधन की संभावनाओं से इन्कार नहीं किया है। उन्होंने कहा कि जो भी परिस्थिति बनेगी, उसके आधार पर निर्णय लिया जाएगा।”
वहीं गोवा में भी कांग्रेस इकाई का ह्रदयपरिवर्तन हो चला है, नतीजे आने में महज दो दिन बाकी हैं और एआईसीसी गोवा डेस्क प्रभारी दिनेश गुंडू राव ने कह दिया है कि कांग्रेस पार्टी आप और टीएमसी सहित “भाजपा विरोधी दलों” के साथ गठबंधन में शामिल होने के लिए तैयार है।” अभी चुनावी एग्जिट पोल आए हैं तब यह स्थिति है, नतीजों वाले दिन तो बवाल ही मच लेगा। गठबंधन को अंतिम लक्ष्य बना अब कांग्रेस सभी भाजपा विरोधी दलों के साथ जाने के लिए अपने कपाट खोल रही है क्योंकि सत्ता आनी चाहिए, भले ही स्वाभिमान घट जाए।
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पार्टी की अपने उम्मीदवारों और उम्मीदवारों की अपनी पार्टी के प्रति विश्वसनीयता इतनी कम है कि नतीजे आने से पहले ही कांग्रेस आलाकमान अपने जीतने वाले विधायकों के बोरिया-बिस्तर पैक करा उन्हें कांग्रेस शासित राज्य में शिफ्ट करने की तैयारी में जुट गया है। इस बार यह ज़िम्मा राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को दिया गया है। चूंकि विधायक जोड़-तोड़ के मामले में कांग्रेस का इतिहास बेहद गन्दा रहा है ऐसे में वो अपने सभी जिताऊ नेताओं को एक-एक कर सेफहाउस में पहुंचाकर अपने किले की घेरेबंदी करने में जुट गए हैं। कोई भी विधायक टूटकर जाने का मतलब कांग्रेस के गिने-चुने नंबरों में भी सेंध लगना, जिससे इस बार कांग्रेस परहेज कर रही है।
सबसे बड़ी बात है कि कांग्रेस को अब कांग्रेस आलाकमान ही तबाही की ओर ले जा रहा है। यह और किसी अन्य पार्टी का नहीं स्वयं पार्टी के धुरंधर नेताओं का मानना है। G-23 गुट के वीरप्पा मोइली, गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी सरीखे नेता तो इस बात को हज़ार बार दोहरा चुके हैं की अब नेतृत्व परिवर्तन की बेला आ जानी चाहिए पर सोनिया-राहुल-प्रियंका के पाले से बॉल बाहर जा ही नहीं रही। ऐसे में पांच राज्यों में करारी हार मिलती है तो कांग्रेस पार्टी के G-23 नेताओं के विद्रोही स्वर केवल G-23 तक सीमित नहीं रहेंगे बल्कि अबकी बार आग गाँधी परिवार तक आएगी और सबकुछ स्वाहा कर जाएगी।
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ऐसे में कांग्रेस के हाथ कुछ भी नहीं बचता दिख रहा है, माया मिली न राम के सिध्दांत पर चल पड़ी कांग्रेस की अंतिम बेला उस दो राहे पर आ खड़ी हुई है कि उसका बंटाधार उसकी नीतियों ने सुनिश्चित कर दिया है और पार्टी की रार पारिवारिक विस्फोट में तब्दील होते समय नहीं लगा रही है। अब कांग्रेस के नेतृत्व का जो होगा वो तो समय बताएगा पर आगामी 10 मार्च के चुनावी परिणाम कांग्रेस के ताबूत में अंतिम कील अवश्य ठोक रहे हैं।