जहाँ अमेरिका, ब्रिटेन और चीन ने अपने नागरिकों को यूक्रेन में छोड़ दिया, वहीं भारत ने 60 फीसदी भारतीयों को बाहर निकाला

ऑपरेशन गंगा से अगले 2 दिनों में सारे भारतीय अपने मातृभूमि वापस लाये जाएँगे!

source- tfipost

किसी भी व्यक्ति को उसके अपनों के होने का एहसास दो परिस्थितियों में ही अधिक होता है। एक उसके ख़ुशी और दूसरे उसके कष्ट के समय में। इनमें भी प्रमुखतः कष्ट और दुःख के समय में कितने लोग आपके साथ हैं उसे ही देखा जाता है क्योंकि ख़ुशी में तो पराए भी शामिल हो जाते हैं, अपने वही हैं जो दुःख के समय आपके साथ खड़े हों। यूक्रेन-रूस विवाद में भी कुछ ऐसा ही सबके सामने प्रत्यक्ष रूप से दिखा जहाँ यूक्रेन में फंसे भारतीय कुशलतापूर्वक अपने वतन की ओर रुख कर रहे थे तो वहीं विकसित देशों के बाप बनने वाले अमेरिका, चीन जैसे देश अपने लोगों को वापस बुलाने से परहेज कर रहे थे।

यह उनकी कुंठित मानसिकता को दर्शाता है कि जब उनके मूल का कोई भी व्यक्ति किसी अन्य देश में शिखर पर पहुँचता है तब वो उनके मूल का होता है पर आज जब उसकी जान पर बन आई है तो यह सभी देश “हम आपके हैं कौन?” वाले MODE पर चले गए हैं। भारत इन सब देशों से कई ज़्यादा संवेदनशील और अपने लोगों के प्रति चिंतित दिखा जिसकी कीर्ति आने वाले समय में पूरे विश्व में फहरेगी।

60 प्रतिशत भारतीय सुरक्षित हैं-

भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने मंगलवार को कहा कि सभी भारतीय नागरिक हमले के चलते यूक्रेन की राजधानी कीव से निकल गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कुल भारतीय नागरिकों में से 60 प्रतिशत यूक्रेन से लौटे हैं। विदेश मंत्रालय के अनुसार, अनुमानित 20,000 भारतीय छात्र यूक्रेन में मौजूद थे, जब पहली एडवाइजरी जारी की गई थी और उनमें से 12,000 ने अबतक यूक्रेन छोड़ दिया है। श्रृंगला ने कहा, “हमारे सभी नागरिकों ने कीव छोड़ दिया है। हमारे पास जानकारी है कि कीव में हमारा कोई और नागरिक नहीं बचा है।” विदेश सचिव श्रृंगला ने कहा कि शेष 40 प्रतिशत में से लगभग आधे खार्किव, सूमी में क्षेत्रों में रहते है और अन्य आधे या तो यूक्रेन की पश्चिमी सीमाओं तक पहुंच गए हैं या यूक्रेन के पश्चिमी भाग की ओर बढ़ रहे हैं, जिसे एक सुरक्षित स्थान माना जाता है। श्रृंगला ने कहा, “ज़ापोरिज्जिया में कम से कम 1,400 भारतीय नागरिक पश्चिमी सीमा पर चले गए हैं और 400 छात्र मोल्दोवा चले गए हैं।”

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अमेरिका, ब्रिटेन और चीन की औकात नहीं हो रही है-

रूस-यूक्रेन विवाद में जहाँ सभी को अपनी जान की चिंता सताने लगी है, ऐसी परिस्थिति में भारत ने तो अपने मूल भारतियों को वहाँ से बुलाने का काम किया पर और कई अन्य देश ऐसे हैं जिन्होंने अपने लोगों को धुत्कारने के साथ ही पीठ दिखा दी है। वह देश जिन्होंने इस निंदनीय व्यवहार का रुख किया उनमें चीन भी शामिल है।

यूक्रेन में बीजिंग के शीर्ष दूत ने मंगलवार को कहा कि उसने यूक्रेन से अपने नागरिकों को निकालने की अपनी योजना को रोक दिया है क्योंकि देश छठे दिन भीषण रूसी हमले से जूझ रहा है। चीनी राजदूत फैन जियानरोंग ने दूतावास के आधिकारिक वीचैट अकाउंट पर एक पोस्ट में कहा कि यूक्रेन में हालात चीनी नागरिकों को निकालने के लिए “बहुत असुरक्षित” थे।

ऐसा ही हाल अमेरिका का भी है, जहाँ राष्ट्रपति जो बिडेन ने गुरुवार को एक एनबीसी साक्षात्कार में पुष्टि की कि संयुक्त राज्य अमेरिका यूक्रेन में सैनिकों को नहीं भेजेगा। निश्चित रूप से युद्ध की परिस्थिति से बिलबिला रहा अमेरिका स्वयं असहाय महसूस कर रहा है। अगर रूस ने हमला किया तो अमेरिकियों को अमेरिकी लोगों को निकलना तो दूर एक अमेरिकी सेना की उपस्थिति एक चेतावनी होगी जो “एक विश्व युद्ध” छेड़ सकती है। सत्य यही है कि अमेरिका का अपनी जनता के प्रति ऐसा व्यवहार उसके अवसरवाद वाली थ्योरी को परिभाषित करता है।

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ब्रिटेन का भी वही राग है, जो चीन और अमेरिका का है। ब्रिटेन के जूनियर रक्षा मंत्री जेम्स हेप्पी ने शनिवार को स्काई न्यूज को बताया कि यूक्रेन में रहने का विकल्प चुनने वाले ब्रिटिश नागरिकों को रूस के साथ संघर्ष होने पर सैन्य निकासी की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। “ब्रिटिश नागरिकों को किसी भी तरह से तुरंत यूक्रेन छोड़ देना चाहिए और उन्हें उम्मीद नहीं करनी चाहिए।

ऐसे तिरस्कार करकर यदि भारत अपने लोगों को यूक्रेन-रूस में अपने हाल पर छोड़ देता तो यही देश उसको गरियाते, स्वयं को नहीं देखते। भारत की बात आते ही इनके कान खड़े हो जाते हैं, मानवाधिकार हनन वालों की भी रोटी ले देकर भारत में हो रही बातों पर ही निगाह गढ़ाकर चलती है और सबके सामने तो उसका भी हाल “अँधा कानून है” जैसा हो जाता है।

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ऐसे में जहाँ भारत ने अपने वतन वापसी के लिए न केवल भारत के स्तर पर रूटमैप तैयार किया, बल्कि सरकार ने 4 केंद्रीय मंत्रियों को यूक्रेन से सटी सीमाओं पर शेष भारतीयों को लाने की ज़िम्मेदारी सौंपते हुए उन्हें रवाना किया है। भारत सरकार ने सोमवार को फैसला किया था कि केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, किरन रिजिजू और जनरल (सेवानिवृत्त) वीके सिंह संकटग्रस्त यूक्रेन में फंसे भारतीयों की निकासी के समन्वय के लिए यूक्रेन के पड़ोसी देशों की यात्रा करेंगे। सिंधिया रोमानिया और मोल्दोवा को देखेंगे, रिजिजू स्लोवाकिया जाएंगे, पुरी हंगरी जाएंगे और जनरल (सेवानिवृत्त) सिंह निकासी का प्रबंधन करने के लिए पोलैंड में होंगे।

ऐसे में जमीनी स्तर पर अपने लोगों की चिंता करने वाले भारत ने सभी विकसित देशों पर करारा तमाचा मारा है कि देश और देश के लोगों के प्रति जो जवाबदेही होती है उसे कैसे पूर्ण किया जाता है। भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने कहा, “मैंने रूस और यूक्रेन के राजदूतों को अलग-अलग बुलाया, मैंने उन सभी भारतीय नागरिकों के लिए तत्काल सुरक्षित मार्ग की हमारी मांग को दोहराया, जो अभी भी खार्किव और संघर्ष क्षेत्र के अन्य शहरों में हैं।” MEA के अनुसार, अगले तीन दिनों में नागरिकों को निकालने के लिए 26 उड़ानें निर्धारित की गई हैं। बुखारेस्ट और बुडापेस्ट के अलावा, पोलैंड और स्लोवाक गणराज्य के हवाई अड्डों का भी उपयोग किया जाएगा।

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