उत्तराखंड चुनाव को लेकर राजनीतिक पंडित औंधे मुंह क्यों गिर गए?

राजनीतिक पंडितों ने फायर को फ्लावर समझने की भूल क्यों की?

उत्तराखंड भाजपा

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जब चुनाव सम्पन्न होने पर 7 मार्च को एक्जिट पोल निकले, तो अधिकतम चुनावी विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की थी कि उत्तराखंड और गोवा में कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी, और वहाँ त्रिशंकु विधानसभा हो सकती है। परंतु वर्तमान चुनाव परिणाम तो कुछ और ही चित्र प्रदर्शित कर रहे हैं। अब गोवा में विश्लेषक पूरी तरह गलत नहीं निकले, परंतु वर्तमान रुझान के अनुसार, उत्तराखंड में 70 सीटों में कांग्रेस के लाख प्रचार के बाद भी भाजपा 45 से अधिक सीटों पर आगे चल रही है, और पूर्ण बहुमत के साथ पुनः सरकार बनाने के लिए पूरी तरह उद्यत है। तो आखिर कहाँ गलत पड़ गए ये कथित राजनीतिक विश्लेषक? कहाँ इनसे भूल हो गई?

इसके कुछ प्रमुख कारण है – उत्तराखंड की वास्तविकता से अपरिचित होना, एवं उत्तराखंड के जनता की मूल भावना। चुनावी विश्लेषक ने वही भूल की जो उन्होंने 2017 में की थी और परिणाम आप सभी के सामने हैं।

धर्म एवं संस्कृति- अब उत्तराखंड की जनता अपने धर्म और संस्कृति से काफी गहरा नाता रखती है, जिसके विरुद्ध वह एक शब्द या कदम स्वीकार नहीं रहेगी। जिस प्रकार से भूमि जिहाद के विरुद्ध वह एकजुट हुई, वह अपने आप में उनके जीवटता का परिचायक है।

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अब बात जब भूमि जिहाद की हुई ही है, तो धर्म से संबंधित अन्य सुधारों की भी करते हैं। उत्तराखंड में भले ही कई क्षेत्र खुलेआम भाजपा या कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करें, परंतु धर्म के मामले में सब एकमत हो जाएंगे। जब चार धाम से संबंधित विवादित अधिनियम लागू हुआ था, तो भाजपा के विदाई की तैयारी लगभग तय हो चुकी थी। वह तो भला हो कि उत्तराखंड सरकार को सही समय पर सद्बुद्धि आई और उन्होंने इस विवादित अधिनियम को हटवाने के साथ साथ जनादेश का भी सम्मान करते हुए भूमि जिहाद के विरुद्ध कुछ महत्वपूर्ण कदम भी उठवाये।

आज यदि भाजपा सभी अनुमानों को धता बताकर उत्तराखंड में सत्ता में आ रही है, तो इसका एक ही अर्थ है – भाजपा को जनादेश का सम्मान करना चाहिए, अन्यथा 2027 में उन्हे ये जीवनदान नहीं मिलेगा।

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