पुष्कर सिंह धामी की वापसी से कैसे बदल जाएगी उत्तराखंड की राजनीति की अवधारणा

धामी के धमाल का दिख रहा है असर!

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री

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उत्तराखंड में सीएम पर सस्पेंस खत्म हो गया है. भारतीय जनता पार्टी के विधायक दल की बैठक में पुष्कर सिंह धामी को नेता चुन लिया गया है. पुष्कर सिंह धामी इस बार के विधानसभा चुनाव में खटीमा से हार गए थे, जिसके बाद भाजपा में मुख्यमंत्री के नाम को लेकर माथापच्ची शुरू हो गई थी. इस माथापच्ची में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और मीनाक्षी लेखी बतौर पर्यवेक्षक मौजूद रहे. पर 11 दिन बाद यह तय हुआ कि पुष्कर सिंह धामी लगातार दूसरी बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनेंगे. विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद धामी ने राज्यपाल गुरमीत सिंह से मुलाकात की और सरकार बनाने का दावा पेश किया. वो 23 मार्च को सीएम पद की शपथ लेंगे.

उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी को दोबारा मुख्यमंत्री चुनकर भाजपा ने साफ कर दिया है कि नेतृत्व क्षमता के पैमाने पर कोई खरा साबित होता है, तो उसे फिर से अवसर दिया ही जाना चाहिए. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर अंततः पुष्कर सिंह धामी को ही विधायक दल का नेता क्यों चुना गया और अगर उनका ही चुना जाना तय था, तो क्या यह फैसला इतना कठिन था कि इसमें 11 दिन लग जाए? क्या पुष्कर सिंह धामी को चुनने का भाजपा आलाकमान पर कोई दबाव था या फिर भाजपा और संघ के संगठनों के बीच समीकरण साधने की कोशिश की गई है? क्या यह 2024 के चुनाव के लिए पुष्कर सिंह धामी पर भाजपा का एक बड़ा दांव है या फिर इसमें जातियों और वरिष्ठता के समीकरणों को साधने की भी कोशिश की गई हैं?

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दोतिहाई बहुमत के साथ लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी

दरअसल, पुष्कर सिंह धामी पार्टी का चुनावी चेहरा थे और उन्हीं को आगे कर भाजपा महासमर में उतरी. लेकिन वो भाजपा नेतृत्व के विश्वास को बनाए रखने में सफल रहे और कई तरह के मिथक तोड़ते हुए उन्होंने भाजपा की दो-तिहाई बहुमत के साथ लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी सुनिश्चित की. यद्यपि, वो स्वयं अपनी सीट गंवा बैठे, लेकिन पार्टी ने इसके बावजूद उन्हीं पर अगले पांच साल के लिए भरोसा किया. विशेष रूप से पार्टी के इस निर्णय को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि धामी पर वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में शत-प्रतिशत सफलता के पिछले दो चुनाव के रिकार्ड को बनाए रखने की जिम्मेदारी होगी.

सीएम बनते ही बड़ी योजनाओं का एलान किया : ध्यान देने वाली बात है कि 4 जुलाई 2021 को पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली थी. इसके एक महीने बाद यानी 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर धामी ने कई योजनाओं का ऐलान कर दिया. 10वीं-12वीं पास छात्रों को मुफ्त टैबलेट, खिलाड़ियों के लिए खेल नीति, जनसंख्या नियंत्रण पर कानून, पौड़ी और अल्मोड़ा को रेल लाइन से जोड़ने जैसी योजनाओं का ऐलान इसमें शामिल था. उनकी इन योजनाओं ने आम लोगों के बीच धामी की लोकप्रियता को बढ़ाने का काम किया.

सत्ताविरोधी लहर को खत्म किया: अब धामी के नेतृत्व में ही उत्तराखंड में भाजपा ने चुनाव लड़ा और दोबारा 47 सीटें जीतकर सत्ता हासिल कर ली. छह महीने के अंदर दो बार मुख्यमंत्री बदलने से जनता में काफी रोष था, लेकिन धामी ने उसे अपने अंदाज में संभाल लिया. युवा नेता के तौर पर धामी ने सात महीने के अंदर खूब मेहनत की और एंटी इनकंबेंसी को दूर किया. जिसकी बदौलत भाजपा ने राज्य में हर चुनाव में सत्ता बदलने के मिथक को तोड़ दिया.

युवा चेहरा और जनता के बीच लोकप्रिय: पुष्कर सिंह धामी की मौजूदा उम्र 46 साल है. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने पूरे उत्तराखंड में अपनी अलग पहचान बना ली. देवभूमि के युवाओं के बीच उनकी काफी लोकप्रियता बढ़ गई. वो काफी विनम्र स्वभाव के हैं और जमीनी स्तर से जुड़े नेता हैं. पार्टी का हर कार्यकर्ता उन्हें अपने करीब पाता है. उनकी छवि काफी ईमानदार वाली भी है. अभी तक उनके दामन पर भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं लगा है और न ही उन पर कोई आरोप लगे हैं. यही कारण है कि भाजपा हाईकमान ने उन्हें राज्य की सत्ता सौंपी है.

पुष्कर सिंह धामी के नाम दर्ज है ये उपलब्धि

बताते चलें कि पुष्कर सिंह धामी जुलाई 2021 में तीरथ सिंह रावत के इस्तीफा देने के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने थे. उन्होंने 45 साल की उम्र में सत्ता संभाली और राज्य के सबसे कम उम्र के सीएम बने. धामी को महाराष्ट्र के राज्यपाल और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के शिष्य के रूप में जाना जाता है. वो उनके विशेष कर्तव्य अधिकारी (ओएसडी) और सलाहकार के रूप में कार्य कर चुके हैं. धामी ने 1990 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की और दो बार भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे. उन्होंने स्थानीय युवाओं के लिए उद्योगों में नौकरियों के आरक्षण के लिए अभियान चलाया. मुख्यमंत्री के रूप में और अब जिन परिस्थितियों में उन्हें फिर अवसर मिला है, यह बताने के लिए काफी है कि धामी पार्टी के दिग्गजों के बीच सामंजस्य बिठाकर आगे बढऩे की कला में भी निपुण हो चुके हैं. यही कारण रहा कि चुनाव में पराजित होने के बाद भी पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक, त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत ने उनकी नेतृत्व क्षमता का लोहा माना. केंद्रीय नेतृत्व द्वारा धामी को फिर सरकार का नेतृत्व सौंपे जाने का रास्ता साफ करने में भाजपा के दिग्गजों की महत्वपूर्ण भूमिका रही.

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