कर्नाटक में भाजपा को मिलने वाली बेहतरीन जीत से बदल जाएगी दक्षिण भारत की राजनीति

असंभव को भी संभव बना सकती है भाजपा!

कर्नाटक भाजपा

Source- TFI

दशकों तक भाजपा को ‘हिंदी हार्टलैंड’ की पार्टी कहा जाता था लेकिन जब से मोदी-शाह की जोड़ी ने पार्टी की कमान संभाली, इस पार्टी का प्रभाव देश के पूर्वी, पूर्वोत्तर और दक्षिणी हिस्सों में भी फैल गया। अब जेपी नड्डा के नेतृत्व में पार्टी अपनी उसी विरासत को आगे बढ़ाने के प्रयासों में लगी हुई है। दक्षिण भारत में कर्नाटक राज्य को भूल जाए, तो अन्य राज्यों में पार्टी की मामूली उपस्थिति भी नहीं थी, लेकिन आज यह लगभग हर दक्षिणी राज्य में एक महत्वपूर्ण ताकत है। कर्नाटक में, यह एक सत्तारूढ़ पार्टी है। कर्नाटक एक ऐसा राज्य है जिसे भारतीय जनता पार्टी ने अपनी दक्षिण भारत की राजनीति के केंद्र के रूप में स्थापित किया है। अगले साल कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसे लेकर राजनीतिक पार्टियां अपनी रणनीतियों को तैयार करने में लग चुकी है। कर्नाटक का चुनाव भाजपा के लिए काफी अहम साबित होने वाला है, क्योंकि दक्षिण भारत में भाजपा की स्थिति को संदर्भित करने वाला राज्य कर्नाटक ही है।

और पढ़ें: भाजपा आज वही है जिसका अटल जी ने सपना देखा था

कर्नाटक में इतिहास रचेगी भाजपा

करीब चार दशकों से कर्नाटक के मतदाताओं ने कभी भी राज्य विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ दल को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया है। कुछ लोग 2004 और 2018 के चुनावों के परिणामों की ओर इशारा करके इस दावे को चुनौती दे सकते हैं। दरअसल, वर्ष 2004 में कांग्रेस-जेडीएस ने गठबंधन सरकार बनाई। कांग्रेस पार्टी जो कि कर्नाटक में 1999-2004 तक सत्ता में थी, उसने कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2004 में अपना बहुमत खो दिया और यहां तक ​​कि सबसे बड़ी पार्टी के रूप में भी नहीं उभरी, लेकिन चुनाव के बाद जेडीएस के साथ गठबंधन के कारण कांग्रेस पार्टी सत्ता में वापस आ गई। वर्ष 2018 में भी इसी तरह की स्थिति सामने आई थी। वर्ष 2013 से 2018 तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस पार्टी कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 में भी बहुमत प्राप्त नहीं हुआ था, तब भाजपा राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। भाजपा की ओर से शपथ ग्रहण भी पूरा हो गया था लेकिन बहुमत नहीं होने के कारण सरकार को इस्तीफा देना पड़ा, जिसके बाद कांग्रेस और जेडीएस ने गठबंधन में सरकार बना ली।

कर्नाटक में भाजपा और कांग्रेस स्पष्ट रूप से प्रमुख प्रतिद्वंद्वी हैं, जबकि जनता दल-सेक्युलर (जेडीएस) तीसरी पार्टी है। आगामी चुनाव में भाजपा एक ऐसे मुख्यमंत्री के साथ चुनावी अभियान में जा रही है, जिन्हें मुख्यमंत्री का पद संभाले अभी एक साल भी नहीं हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा का साया भी स्पष्ट नजर आ रहा है। सीएम पद छोड़ते हुए उन्होंने जोर देकर कहा था कि उनका राजनीतिक मिशन 2023 में स्पष्ट बहुमत के साथ भाजपा को वापस सत्ता में लाना है। ऐसे में मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को अभी भी पार्टी और सरकार पर अपनी राजनीतिक उपस्थिति एवं प्रत्यक्ष नियंत्रण दोनों को मजबूती से स्थापित करना जरूरी हो जाता है। एक सत्तारूढ़ दल अक्सर सरकार द्वारा किए गए अच्छे कार्यों के आधार पर चुनावी जनादेश हासिल करता है।

और पढ़ें: दक्षिण भारत में हिंदू धर्म के पुनरुद्धार हेतु एक बेंचमार्क स्थापित करने जा रहा है कर्नाटक

तेलंगाना में KCR की लंका लगाने की तैयारी में है भाजपा

हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन ने पार्टी को उन राज्यों में कड़ी मेहनत करने का मौका दिया है, जहां अगले दो वर्षों में चुनाव होने जा रहे हैं। भाजपा एक ऐसी पार्टी है जो अगले चुनाव के लिए लगातार काम करती है और यह कोई रहस्य नहीं है। तेलंगाना में विधानसभा चुनाव 2023 के लिए निर्धारित है, लेकिन सीएम केसीआर द्वारा एक आश्चर्यजनक प्रारंभिक चुनाव की संभावना, जैसा कि उन्होंने 2018 में किया था, भाजपा को परेशान कर सकती है। हालांकि, भाजपा को उम्मीद है कि वह केसीआर को सत्ता से हटा देगी और उन्हें राज्य में हैट्रिक नहीं बनाने देगी। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा की जीत के बाद, कई लोगों को लगता है कि पार्टी तेलंगाना में प्रभावशाली प्रदर्शन सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।

ध्यान देने वाली बात है कि भाजपा की नजर एससी, एसटी आरक्षित सीटों पर है। पार्टी राज्य में एससी, एसटी आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए गंभीर प्रयास कर रही है। तेलंगाना में अनुसूचित जाति के लिए 19 आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र और अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए 12 निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित हैं। भाजपा ने आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी की पहल को ले जाने के लिए जमीन तैयार करने हेतु ‘मिशन 19’ और ‘मिशन 12’ नामक विशेष टीमों का गठन किया है।

भाजपा का मिशन कोई आसान काम नहीं है, क्योंकि 2018 के विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ टीआरएस ने खम्मम को छोड़कर आरक्षित विधानसभा क्षेत्रों में क्लीन स्वीप किया था और भाजपा को एक भी आरक्षित सीट नहीं मिली थी। मौजूदा समय में टीआरएस जहां एसटी को वितरण के लिए पोडू भूमि के पट्टे और एससी के लिए दलित बंधु जैसी योजनाएं शुरू करने की तैयारी में है, वहीं भाजपा भी इन निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने तरीके से कमर कस रही है। पूर्व सांसद एपी जितेंद्र रेड्डी को मिशन 19 का अध्यक्ष बनाया गया है और पूर्व सांसद गरिकापति मोहन राव एसटी मोर्चा मिशन 12 के समन्वय सदस्यों में से एक हैं।

भाजपा के निशाने पर तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु

आपको बता दें कि तेलंगाना में अगले विधान सभा चुनाव की तैयारियों में लगी भाजपा ने चंद्रशेखर राव के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। भाजपा की अगली नज़र तेलंगाना और तमिलनाडु राज्य में जीत हासिल करना है। तमिलनाडु के भाजपा अध्यक्ष कुप्पुसामी अन्नामलाई पहले से ही द्रविड़ राजनीति में हैं। अन्नामलाई सत्तारूढ़ द्रमुक के कड़े आलोचक हैं। IPS अधिकारी से राजनेता बने अन्नामलाई ने तमिलनाडु के लिए अपनी पार्टी के दृष्टिकोण और 2026 के विधानसभा चुनाव तक भाजपा को जीताने का पूरा मन बना लिया है। स्टालिन की पार्टी पहले से हीं हिन्दू विरोध के लिए जानी जाती है और भाजपा यहां तमिल ब्राह्मण को जोड़कर स्टालिन की पार्टी को डेंट पहुंचाएगी। आने वाले समय में कर्नाटक सहित तेलंगाना और तमिलनाडु की राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करने के उद्देश्य से भाजपा ने अभी से कमर कस ली है और अब वह दिन दूर नहीं, जब हिंदी हार्टलैंड पार्टी कही जाने वाली भाजपा अब दक्षिण भारत की राजनीति में भी अपना परचम लहराएगी।

और पढ़ें: के अन्नामलाई: इस पूर्व IPS और युवा भाजपा नेता ने तमिलनाडु में तूफान ला दिया है

Exit mobile version