अरविंद केजरीवाल के चरित्र को लेकर भारतीय राजनीति में कोई संशय नहीं है। वह बिल्कुल खुली किताब की तरह हैं। समस्या सिर्फ यह समझने में है कि वह मूर्ख हैं या फिर दुष्ट? अगर मूर्ख हैं तो फिर वह सहानुभूति के पात्र हैं लेकिन ऐसा है नहीं, क्योंकि वह एक बिल्कुल ही चालाक, धूर्त और दुष्ट राजनीतिक बहरूपिया हैं, जो सिर्फ झूठ और प्रोपेगेंडा के आधार पर अपनी पार्टी का संचालन करते हैं! उनके द्वारा फैलाए गए झूठे प्रोपेगेंडा का कुछ मानद उदाहरण देखिए। सिद्धांतों पर चलने वाली पार्टी का दंभ भरने वाले केजरीवाल ने सत्ता के लिए सिद्धांत तो क्या कांग्रेस को अपना स्वाभिमान तक भी बेच दिया। लोकपाल अभी तक लटका है और अन्ना के ‘लटकने’ का समय आ गया! उन्होंने AAP के संस्थापक सदस्यों को धोखा दिया। स्वतंत्र पंजाब के प्रधानमंत्री बनने के स्वप्न देखे। दिल्ली के 1027 स्कूल में से 824 में प्रधानाचार्य नहीं हैं, पर उसे एक आदर्श शिक्षा प्रारूप के रूप में प्रचारित किया। 800 करोड़ सिर्फ प्रचार पर खर्च किए। केजरीवाल के छलावे की सूची अंतहीन है और इसी में से एक विषय है महिलाओं के प्रति आम आदमी पार्टी और उसके सदस्यों का दृष्टिकोण!
यह पार्टी और इसके सर्वोच्च नेता केजरीवाल जनता का मत प्राप्त करने में माहिर हैं। मत प्राप्ति में सफलता सिद्धि के लिए वो जो बोलते है, वो तो बिलकुल नहीं करते और जो नहीं करते उसके बारे में झूठा प्रचार बहुत करते हैं। इसी प्रचार और ‘Victim Card’ के बल पर वो जनता को दिग्भ्रमित करते हैं। विकास और सशक्तिकरण का भ्रमजाल रचते है और फिर जनता को छलते हैं। इस लेख में हम आपको केजरीवाल के महिलाओं के प्रति दिष्टिकोण से अवगत कराएंगे और ये बताएंगे कि कैसे वो और उनकी पार्टी महिला सशक्तिकरण का भ्रमजाल बुनकर उनका मत प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन वास्तव में वो उनका शोषण और दुरुपयोग कर रहे हैं!
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आम आदमी पार्टी में महिलाओं का प्रतिनिधित्व
आप सभी को याद होगा कि जब जीवनजोत कौर ने अमृतसर पूर्व से नवजोत सिंह सिद्धू और विक्रम सिंह मजीठीया को पराजित किया, तब केजरीवाल ने कैसे उसे प्रचारित कर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश की। आम आदमी पार्टी के पास दिल्ली विधानसभा में 70 में से 62 विधायक है। पर, आपको जानकर आश्चर्य होगा कि दिल्ली सरकार की कैबिनेट में एक भी महिला विधायक मंत्री नहीं है। पंजाब विधानसभा चुनाव में भी कुल 117 सीटों पर आम आदमी पार्टी ने मात्र 12 सीटों पर ही महिला उम्मीदवार को उतारा। ऊपर से 10 विजयी महिला उम्मीदवारों मे से सिर्फ एक महिला उम्मीदवार को भगवंत मन के कैबिनेट में जगह मिली और वो भी परिवारवाद के कारण। कौर के पिता प्रोफेसर साधु सिंह वर्ष 2014 से 2019 के बीच फरीदकोट से आप सांसद थे। गोवा में भी यही हाल रहा।
आप ने गोवा की 40 सीटों पर चुनौती पेश की लेकिन महिला उम्मीदवारों के खाते में पुनः मात्र दो सीटें आई। उत्तराखंड की 70 में से 68 सीटों पर आप की जमानत जब्त हो गयी लेकिन वहां भी जीत के समीकरण के नाम पर महिलाओं के खाते में मात्र 7 सीटें ही आई। अगर इन सभी तथ्यों को संदर्भित करते हुए आप परिस्थितियों का अवलोकन करें, तो पाएंगे कि AAP में महिला नेताओं का कोई स्थान नहीं है। क्या आपने कभी AAP की राष्ट्रीय संयोजक का कार्यभार किसी नेत्री को संभालते हुए देखा है? भाजपा के जब लोकसभा में 2 सीटें थी तब भी उमा भारती, सुषमा स्वराज आदि नेत्रियाँ भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से मानी जाती थी लेकिन वहीं AAP के संस्थापक सदस्यों में से कोई भी महत्वपूर्ण महिला का नाम नहीं आता। उप मुख्यमंत्री पद पर किसी महिला की नियुक्ति की संभावना भी AAP में नहीं उठती। मुख्यमंत्री पद की बात तो खैर छोड़ ही दीजिये।
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AAP की महिला विरोधी नीतियां
जिस तरह ये पार्टी महिलाओं को राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्रदान करने में असमर्थ है, उसी तरह की स्थिति महिला कल्याण और सशक्तिकरण को लेकर भी है। किन्तु, असमर्थता के बावजूद लज्जित होने के बजाय AAP दंभ भरने में दक्ष है। चाहे गोवा का चुनाव हो या फिर पंजाब और उत्तराखंड, AAP ने हर जगह महिलाओं को लुभाने के लिए 1000 रुपये का मासिक वेतन देने का वादा किया था। AAP ने जनता के सामने इसे महिला सशक्तिकरण के रूप में पेश किया लेकिन वास्तव में ये महिलाओं और लोकतन्त्र के साथ एक भद्दा मज़ाक है। शायद, राष्ट्रीय राजनीति में AAP एकलौती ऐसी पार्टी है जो जनता के हर वर्ग को आधिकारिक रूप से रिश्वत दे रही है। 1000 रुपये का मासिक भत्ता देना उनके सशक्तिकरण नहीं, बल्कि उनके अशक्तिकरण के मार्ग को प्रशस्त करने जैसा है। सशक्तिकरण का मार्ग सुरक्षा, रोजगार, व्यापार और अधिकार के मार्ग से गुजरता है न कि 1000 के मासिक रिश्वत से। अब आप एक और विरोधाभास देखिये, वही AAP जो दूसरे राज्य के महिलाओं को 1000 का मासिक भत्ता देने का वचन दे रही है उसी पार्टी के सुप्रीमो के आवास के आगे अंगनबाड़ी की कर्मठ महिलाएं वेतन भत्ते के लिए संघर्षरत हैं और उनके कान पर जूं तक नहीं रेंग रही। अब इसे चुनावी स्टंट न कहें तो क्या कहें? ऊपर से नशा और शराब सेवन के कारण घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के घावों पर मिर्च रगड़ते हुए जगह-जगह दारू के ठेके खोल दिये।
‘AAP‘ है ‘खाप‘
आपको बताते चलें कि दिल्ली पुलिस पहले भी आम आदमी पार्टी के तीन विधायकों पर छेड़छाड़ और मारपीट के आरोप में मामला दर्ज कर चुकी है। 28 जून 2017 को पुलिस ने बताया था कि एक महिला ने अपनी शिकायत में ओखला के विधायक अमानतुल्ला खान, मालवीय नगर के विधायक सोमनाथ भारती और तिलक नगर के विधायक जरनैल सिंह पर गाली-गलौज और मारपीट करने का आरोप लगाया। उसने आरोप लगाया कि उसे घसीटकर एक कमरे में बंद कर दिया गया, जहां दो पुरुषों के साथ उसकी भी पिटाई की गयी। ये वही सोमनाथ भारती हैं, जिनपर यौन वेबसाइट का संचालन करने के अलावा अपने बीवी को प्रताड़ित करने का आरोप भी लगा था।
दिल्ली पुलिस ने पिछले दो साल में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के 13 विधायकों को बलात्कार, रंगदारी, धोखाधड़ी, जालसाजी से लेकर दंगा करने तक के आरोप में गिरफ्तार किया है। क्या आप जानते हैं कि कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार पर जोर-जोर से हंसने वाली AAP विधायक राखी बिड़ला के पिता पर रेप का आरोप तथा भाई पर घरेलू हिंसा का आरोप है? इतना ही नहीं अरविंद केजरीवाल अपने प्रतिद्वंद्वियों का चरित्र हनन करने के लिए भी महिला कार्यकर्ताओं का इस्तेमाल करते आयें है। शायद, इसीलिए कुमार विश्वास, आशीष खेतान, प्रशांत सरीखे नेता तथा अल्का लंबा, शजीया इल्मी और उत्तराखंड महिला मोर्चा अध्यक्ष ममता ठाकुर सरीखे नेत्रियों ने AAP को छोड़ने का निर्णय लिया। अरविंद केजरीवाल को समझना होगा कि आम आदमी की परिधि तब तक पूर्णता को प्रपट नहीं कर सकती, जब तक उसमे स्त्री की संपूर्णता समाहित न हो। लेकिन, इस दल के प्रवृति को देखकर तो ऐसा लगता है जैसे AAP खाप में परिवर्तित हो चुकी है।
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