बाइडन की धमकियों को नहीं मिला भाव, अब भारत के आगे दुम हिला रहा है अमेरिका

भारत के आगे नतमस्तक हो गया है अमेरिका!

India Russia

Source- TFI

संयुक्त राज्य अमेरिका ने रूस का साथ छोड़ने के लिए भारत को मजबूत करने की कोशिश की। पर, जब अमेरिका को समझ में आया कि भारत जिसके साथ खड़ा होता है चट्टान की तरह अटल रहता है, तब वह हताश हो गया। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान अमेरिका ने कई बार गीदड़भभकी देने की कोशिश की पर, बाइडन प्रशासन को समझ में आ गया कि भारत रूस का साथ नहीं छोड़ेगा। अमेरिका ने यह सोचते हुए पहले भारत को धमकाया की वह रूस का साथ छोड़ देगा, किन्तु अब वह सेल्समैनशिप का सहारा ले रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने अब घोषणा की है कि भारत को रूस से अलग होना चाहिए, रूसी रक्षा उपकरणों पर अपनी निर्भरता समाप्त करनी चाहिए और इसके बजाय वाशिंगटन से अपनी सैन्य जरूरतों को पूरा करना चाहिए।

दरअसल, एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा, “हम भारत सहित अन्य देशों के साथ अपने संबंधो को लेकर बहुत स्पष्ट हैं। हम उन्हें रक्षा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर नहीं देखना चाहते हैं। हम उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं लेकिन रूस पर निर्भरता हतोत्साहित करने के अलावा कुछ नहीं हैं।” हालांकि, पेंटागन ने साथ-साथ यह भी कहा, “हम भारत के साथ रक्षा साझेदारी को भी महत्व देते हैं। और जैसा कि एक सप्ताह पहले प्रमाणित किया गया था, हम इसे आगे बढ़ाने के तरीकों को भी देख रहे हैं। यह जारी रहेगा क्योंकि यह मायने रखता है और यह महत्वपूर्ण है।”

ध्यान देने वाली बात है कि बीते गुरुवार को अमेरिकी विदेश विभाग के काउंसलर डेरेक चॉलेट ने कहा था कि बाइडन प्रशासन भारत के साथ काम करने के लिए बहुत उत्सुक है, क्योंकि यह अपनी रक्षा क्षमताओं और रक्षा आपूर्तिकर्ताओं में विविधता लाता है। वहीं, राज्य के उप सचिव वेंडी शेरमेन ने कहा कि अमेरिका भारत के साथ रूसी हथियारों पर अपनी पारंपरिक निर्भरता को कम करने में मदद करने के लिए काम करेगा।

और पढ़ें: भारत द्वारा चीन और अमेरिका के मुंह से सिक्किम को छीन लाने की अनकही कहानी

क्या अमेरिका रूस की तरह भारत का समर्थन करेगा?

पूरी अमेरिकी मशीनरी, जिसमें विदेश विभाग, व्हाइट हाउस और पेंटागन शामिल हैं, भारत को अपने हथियारों का ग्राहक बनाने और रूस को डंप करने के लिए मनाने का काम कर रही है। संयुक्त राज्य अमेरिका इसे एक अवसर के रूप में देखता है। वह भारत को समझाने के लिए कभी यूक्रेन युद्ध का उपयोग करता है तो कभी चीन के नाम से डराने की नाकान कोशिश करता है, ताकि वह नई दिल्ली का प्राथमिक रक्षा और सुरक्षा भागीदार बन सके। वैसे तो अमेरिकी आयुधों से अपने शस्त्रागार को विविध और सम्पन्न बनाने का अमेरिकी प्रस्ताव वास्तव में आकर्षक है।

अमेरिकी हथियार घातक और उन्नत हैं। वे युद्ध के मैदान में किसी भी लड़ाकू बल के पाले में तराजू झुका सकते हैं। यूक्रेन के रूस से अब तक लड़ने में सक्षम होने का एक प्रमुख कारण उसके शस्त्रागार में अमेरिकी और यूरोपीय हथियारों की उपलब्धता है। भारत पहले से ही संयुक्त राज्य अमेरिका को एक प्राथमिक रक्षा भागीदार मानता है और वाशिंगटन से उच्च हथियार प्रणालियों और लॉन्चरों का आयात करता है। हालांकि, इसकी आड़ में संयुक्त राज्य अमेरिका जो मांग कर रहा है वह है- रूस से पूरी तरह से संबंध विच्छेद। लेकिन अमेरिका को समझना चाहिए कि रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन की ओर बढ़ रहा भारत अपने सदाबहार दोस्त रूस के साथ संबंध विच्छेद करने के बारे में सोचेगा भी नहीं!

क्या संयुक्त राज्य अमेरिका प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण की अनुमति देगा?

बताते चलें कि वर्ष 2011-15 और 2016-20 के बीच भारत का हथियारों का आयात 33% गिर गया है। दिलचस्प बात यह है कि भारत की आत्मनिर्भरता से रूस सबसे अधिक प्रभावित आपूर्तिकर्ता है, जिसने भारत को अपने निर्यात में 22% की गिरावट देखी। वर्ष 2016-20 के दौरान भारत के शीर्ष तीन हथियार आपूर्तिकर्ता रूस (49%), फ्रांस (18%) और इज़राइल (13%) थे। भारत के तीन प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ताओं को भारत से हथियार व्यापार करने के लिए बाध्य करने वाला एक सामान्य कारक है। वे सभी भारत के साथ अपनी तकनीक साझा करते हैं या ऐसा करने के लिए उत्सुक हैं। जब रक्षा निर्माताओं और भारत के बीच संयुक्त उद्यम की बात आती है, तब रूस और इज़राइल इस मामले में सबसे आगे नज़र आते हैं। भारत रक्षा क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भर’ बनने के लिए अथक प्रयास कर रहा है और रूस-इजरायल जैसे देश इसका समर्थन करते हैं।

इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए, प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण चर्चा का विषय है। भारतीय रक्षा जरूरतों के प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं को अपनी रक्षा प्रौद्योगिकियों को हमारे साथ साझा करने के लिए तैयार रहना चाहिए। और रूस ऐसा करने के लिए हमेशा तैयार रहता है। सवाल यह है कि क्या अमेरिका भारत के साथ अपनी रक्षा प्रौद्योगिकियों को साझा करने को तैयार होगा? तो इसका जवाब न है।

और पढ़ें: एस जयशंकर ने अमेरिका की CAATSA धमकी का बताशा बना दिया

यहां एक और महत्वपूर्ण बात है। जब तक अमेरिका अपनी रक्षा तकनीकों को भारत के साथ साझा नहीं करता, तब तक वह नई दिल्ली से रूस पर अपनी निर्भरता में कटौती की उम्मीद कैसे कर सकता है? कल्पना कीजिए कि भारत संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए रूस से संबंध विच्छेद कर रहा है। इसके साथ-साथ आत्मनिर्भरता की नीति को छोड़ते हुए अमेरिकी हथियारों पर निर्भर हो जाता है। ऐसी स्थिति में क्या हो अगर पाक के साथ युद्ध के समय अमेरिका हथियारों या उसके कलपुर्जों की आपूर्ति बंद कर दे। उदाहरण के लिए लड़ाकू विमान खरीदते समय भारत ने यूरोपियन संघ के विमान “SAAB GRIPEN” को इसीलिए खारिज कर दिया, क्योंकि उसको बनाने में यूरोपियन संघ के बहुत सारे राष्ट्रों का हाथ था। भारत ने यही सोचते हुए उसे खारिज कर दिया की क्या हो अगर कोई देश अपने विदेश नीति का पालन करते हुए युद्ध के समय में इनकी आपूर्ति या फिर तकनीक हस्तानांतरण को रोक दे। तब, यह भारत के लिए विनाशकारी होगा। इसलिए, संयुक्त राज्य अमेरिका जब तक भारत को एक समान भागीदार के रूप में मानने के लिए सहमत नहीं है, नई दिल्ली के लिए शर्तों को निर्धारित नहीं कर सकता है। भारत उससे हथियार खरीदेगा जो उसे सबसे अच्छी डील देगा।

Exit mobile version