भारतीय अर्थव्यवस्था को मिलेगी उड़ान, वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने वाला भारत का पहला प्राइवेट बैंक होगा HDFC

बैंकिंग सेक्टर का कायाकल्प बदलने को तैयार है HDFC

HDFC बैंक विलय

Source- TFIPOST

पिछला दशक भारतीय बैंकिंग के लिए अच्छा नहीं रहा था। NPA बढ़ने, ऋणदेने में कमी, पूंजी की अपर्याप्तता आदि कईसमस्याओं का सामना बैंकों को करना पड़ा। किंतु मोदी सरकार में लागू हुए ‛Insolvency & Bankruptcy Code’ के कारण बैंकों की स्थिति में काफी सुधार आया। इस सरकार का यह मानना है कि भारत को बुलेट, बुक और बैंक तीनों से सशक्त होना पड़ेगा तभी वह आगे जाकर वैश्विक महाशक्ति में खुद को परिवर्तित कर सकता है जिसे चुनौती देने का सामर्थ्य किसी में भी नहीं है। इसी को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने बैकों की बेहतरी के लिए कई बेहतर फैसले लिए हैं। बैंकिंग सेक्टर में हुए सुधारों के बाद इस क्षेत्र का विकास तेजी से हो रहा है और इसी बीच खबर है कि अब इसे और अधिक गति से आगे बढ़ाने के लिए HDFC के दो भागों का एक साथ विलय हो रहा है। HDFC लिमिटेड के HDFC बैंक में प्रस्तावित विलय से दोनों वित्तीय संस्थानों के साथ ग्राहकों को भी फायदा होगा। विलय के बाद बनने वाली संयुक्त इकाई के ग्राहकों को सभी प्रकार की बैंकिंग सेवाएं एक ही मंच पर मिलने लगेंगी। HDFC और HDFC बैंक के विलय का समाचार मिलते ही कंपनी के शेयर सोमवार को 13% तक ऊपर उठे हैं।

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विलय के बाद बन जाएगी बैंकिंग सेक्टर की सबसे बड़ी कंपनी

HDFC Ltd के HDFC बैंक में विलय से एचडीएफसी बैंकिंग सेक्टर में कार्यरत दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बन जाएगी। बाजार पूंजीकरण अर्थात् मार्केट कैपिटलाइजेशन के हिसाब से देखें तो इस एकीकरण के बाद एचडीएफसी, रिलायंस इंडस्ट्रीज (₹17.93 लाख करोड़) और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (₹13.77 लाख करोड़) के बाद, तीसरी सबसे बड़ी भारतीय कंपनी (₹12.79 लाख करोड़) बन जाएगी।

Piper Serica के संस्थापक और फंड मैनेजर अभय अग्रवाल ने इस विलय के प्रभाव पर चर्चा करते हुए कहा है कि “विशेष रूप से एचडीएफसी की उच्च-मार्जिन बिल्डर-लेंडिंग बुक के एनपीए मान्यता मानदंडों के संबंध में रेगुलेटरी वातावरण के सख्त होने और पब्लिक सेक्टर बैंक के साथ बढ़ती प्रतिस्पर्धा तथा नए समय की फिनटेक कंपनियों के कारण, यह एकीकरण केवल वैकल्पिक चुनाव नहीं था। यह एकीकरण एचडीएफसी लिमिटेड के लिए अधिक लाभकारी होने वाला है। एचडीएफसी बैंक की अपेक्षा उनका व्यापार कम लाभदायक है, इसलिए अब वह HDFC बैंक के साथ मिलकर अपने उत्पाद की पैठ बढ़ा सकते हैं।” अभय अग्रवाल के वक्तव्य से स्पष्ट है कि एचडीएफसी लिमिटेड के लिए एकीकरण बाजार में बने रहने के लिए आवश्यक हो गया था।

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अन्य बैंकों को भी लेनी चाहिए सीख!

आपको बताते चलें कि बैंकिंग सेक्टर का सुदृढ़ीकरण और निजीकरण भारतीय अर्थव्यवस्था के उत्थान के लिए अति आवश्यक है। कल्पना करें कि यदि UPI सिस्टम जैसी तकनीक न आई होती तो आज भारत के बैंकिंग सिस्टम की जो हालत है, क्या वह भारतीय अर्थव्यवस्था का दबाव झेल पाते। मूलतः बैंकिंग सेक्टर के पिछड़ेपन ने भारत की अर्थव्यवस्था की गति को धीमा ही किया है। ऋण उपलब्ध कराने में भारतीय बैंक विश्व में सबसे पीछे गिने जाने वाले बैंकों में है। पिछले आर्थिक सर्वेक्षण में यह बात कही गई थी कि भारत के कम से कम छह बैंकों को विश्व के 100 बड़े बैंक की श्रेणी में होना चाहिए, किंतु अभी केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया इस स्थिति में है। SBI भी वैश्विक स्तर पर बैंकों की श्रेणी में 43वें स्थान पर आता है। वर्ष 2019 में SBI का स्थान 55 वां था, जबकि भारत दुनिया की 5 वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।

बैंकिंग सेक्टर के पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण सरकारी बैंकों का वित्तीय लेनदेन और सेवाओं पर अत्यधिक नियंत्रण है। सरकारी बैंक कितने कार्य कुशल है भारत का हर नागरिक जानता है। सरकारी बैंकों के ढुलमुल कार्य पद्धति फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी के विकास के साथ नहीं चल पाएगी। यही कारण है कि सरकार बैंकिंग सेक्टर में निजी बैंकों को बढ़ावा दे रही है। सरकारी बैंकों द्वारा आवंटित लोन प्रायः नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। बैंकों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण ही निवेशक सरकारी बैंकों में निवेश करने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि बाजार में पूंजी की बात करें तो एकमात्र प्राइवेट बैंक HDFC सभी सरकारी बैंकों पर भारी पड़ता है। HDFC लिमिटेड और HDFC बैंक का विलय न केवल इन कंपनियों के भविष्य के लिए आवश्यक है बल्कि यह भारत के हित में भी है कि वैश्विक स्तर पर एक प्राइवेट भारतीय बैंक अपना विस्तार करे। अन्य बैंकों को भी निवेशकों के माध्यम से HDFC की भांति विस्तार पर ध्यान देना चाहिए।

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