अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अमेरिका आज से पहले कभी इतना असहाय और लाचार नहीं दिखा। खाड़ी के देशों में उसकी स्थिति खराब हुई। पाकिस्तान दूर हुआ। ईरान परमाणु समझौता से बाहर निकला। चीन ने उसके वर्चस्व को चुनौती दी। अफगानिस्तान से उसे भागना पड़ा। संयुक्त राष्ट्र संघ और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में भी उसके वर्चस्व को चुनौती मिली। पर, हाल के रूस-यूक्रेन विवाद ने यह स्पष्ट रूप से साबित कर दिया कि विश्व द्विपक्षीय नहीं बल्कि बहुपक्षीय है और इसी बहुपक्षीय विश्व की धुरी है भारत। एक ओर अमेरिका यूरोपीय संघ और उसके सहायक देश हैं तो वहीं दूसरी तरफ रूस चीन और ईरान जैसे अमेरिका विरोधी देश। और जो तीसरा पक्ष है- वह है भारत, जिसके पीछे वह देश खड़े हैं, जो विश्व में शांति की स्थापना हेतु प्रतिबद्ध हैं। जो देश अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की स्वायत्तता के लिए उद्धत है तथा स्वतंत्र विदेश नीति को बनाए रखते हुए राष्ट्रहित और मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता देते हैं।
इसीलिए, अमेरिका ने भारत को डराने का खूब प्रयास किया। परंतु, भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति और राष्ट्रहित का पालन करते हुए चट्टान की तरह रूस के पक्ष में खड़ा रहा। इसीलिए, बाइडेन प्रशासन ने भारत को धमकाने का अंतिम प्रयास करते हुए उप सुरक्षा सलाहकार दिलीप सिंह को भारत भेजा। परंतु, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर सहित भारत के कूटनीतिज्ञों और राजनयिकों ने ऐसा करारा जवाब दिया कि शायद उल्टा अब संयुक्त राज्य अमेरिका ही अब भारत से भयभीत हो चुका है।
अमेरिका की धमकी
दरअसल हुआ कुछ यूं कि अमेरिका ने बृहस्पतिवार 31 मार्च को अपने उप सुरक्षा सलाहकार दिलीप सिंह को भारत भेजा। दिलीप सिंह ने नई दिल्ली में मीडिया के समक्ष बोलते हुए भारत को धमकाने का दुस्साहस किया। उन्होंने तीन बातें कहीं। पहली बात यह कि जो भी देश रूस के खिलाफ लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों को नहीं मानेंगे, उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे।
दूसरी बात यह थी की अगर कोई भी देश रूस के साथ व्यापारिक और आर्थिक संबंध बनाकर डॉलर आधारित अर्थव्यवस्था में रूसी रूबल को मजबूत करने का प्रयास करेंगे, उन्हें दंडित किया जाएगा। तीसरी बात उन्होंने यह कहीं कि अगर चीन भारत के साथ सीमा विवाद को लेकर कोई दुस्साहस करता है तो रूस उसकी मदद के लिए आगे नहीं आएगा। दिलीप सिंह ने चीन का नाम लेकर भारत को धमकाते हुए रूस को चीन का जूनियर पार्टनर तक बता दिया। उन्होंने भारत को रूस से किसी भी प्रकार का व्यापार और हथियार ना खरीदने की हिदायत दी। दिलीप सिंह को लगा कि वह भारत को डरा धमका कर अपने अपने काबू में कर लेंगे, परंतु, ऐसा कुछ हुआ नहीं। उल्टे भारत ने ना सिर्फ मजबूती से उनका जवाब दिया बल्कि साफ-साफ शब्दों में स्पष्ट कर दिया कि भारत की कूटनीति का आधार राष्ट्रहित है और वह उसी का पालन करेगा।
और पढ़ें- राजस्थान के करौली हिंसा में भी सामने आया PFI का नाम
भारत का करारा जवाब
पूर्व कूटनीतिज्ञ सैयद अकबरुद्दीन ने ट्वीट के माध्यम से उनका जवाब देते हुए कहा कि यह दोस्ती की भाषा नहीं है। यह कूटनीति की भाषा नहीं है। यह धमकी की भाषा है। कोई इस युवा उप सुरक्षा सलाहकार को समझाएं की एकतरफा आर्थिक प्रतिबंध अंतरराष्ट्रीय नियमों का हनन है।
भारत-ब्रिटेन सामरिक फ्यूचर्स फोरम में बोलते हुए, भारत के विदेश मंत्री (ईएएम) एस जयशंकर ने यूएस को आइना दिखाते हुए बताया कि यूरोपीय देश रूसी गैस और तेल के सबसे बड़े आयातक हैं। विदेश मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि भारत के लिए ऊर्जा आपूर्ति पर अच्छे सौदे प्राप्त करना महत्वपूर्ण था। जो रूस ने ऐसे समय में पेश किया जब वैश्विक बाजार अस्थिर थे।
एस जयशंकर ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत ने अपनी अधिकांश ऊर्जा आपूर्ति मध्य पूर्व से खरीदी है। उन्होंने बताया कि कुल तेल आयात का लगभग 8% संयुक्त राज्य अमेरिका से था जबकि कच्चे तेल की 1% से भी कम खरीद रूस से हुई थी। 31 मार्च को भारत आए अमेरिका के उप सुरक्षा सलाहकार दिलीप सिंह भारत को धमका कर गए थे। 5 अप्रैल को व्हाइट हाउस की अक्ल ठिकाने आ गई। महज 5 दिनों में, पांच अप्रैल को व्हाइट हाउस ने कहा कि भारत रूस से ऊर्जा का जो आयात कर रहा है, वह उसके कुल ऊर्जा आयात का केवल एक से दो प्रतिशत है। इसके साथ ही उसने स्पष्ट किया कि ऊर्जा के लिए नई दिल्ली से किए जा रहे भुगतान पर प्रतिबंध नहीं लगाए गए हैं।
और पढ़ें- ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में आसमान छूने को तैयार है भारत, यहां जानिए कैसे?
अमेरिका की अक्ल आई ठिकाने
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने सोमवार को दैनिक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि रूस से ऊर्जा का आयात बढ़ाना भारत के हित में नहीं है और बाइडन प्रशासन इसके लिए नई दिल्ली के साथ मिलकर काम करने को तैयार है। साकी ने कहा- “अभी भारत द्वारा रूस से आयातित ऊर्जा उसके कुल ऊर्जा आयात का महज एक से दो प्रतिशत है।”
अमेरिका को समझ आ गया कि भारत कोई पाकिस्तान ईरान या इराक नहीं है, जो उसे डरा-धमका कर काबू में किया जा सकता है। इस बहुपक्षीय और बहूध्रुवीय विश्व में भारत तीसरे पक्ष और धुरी का प्रतिनिधित्व करता है। भारत एक संप्रभु राष्ट्र है जिसकी एक स्वतंत्र विदेश नीति है। भारत किसी के पाले में खड़ा होने वाला देश नहीं बल्कि स्वयं ही विश्व को राह दिखाने वाला नेतृत्वकर्ता है। अमेरिका को आखिरकार यह एहसास तब हुआ जब भारत के विदेश मंत्रालय, विदेशमंत्री एस जयशंकर तथा अन्य राजनीतिज्ञों और कूटनीतिज्ञों ने अमेरिका को आईना दिखाया और यह बताया रूप से सबसे ज्यादा तेल तुम और तुम्हारे सहयोगी खरीदते हैं। भारत का स्थान इस मामले में शीर्ष 10 में भी नहीं है। ऊपर से भारत के बाजार और आर्थिक संपन्नता का सबसे बड़ा लाभार्थी पश्चिम जगत ही है ना कि रूस।
और पढ़ें- Twitter पर सवाल उठाने वाले एलन मस्क तो ट्विटर की गोद में ही जाकर बैठ गए हैं