बिहार उप चुनाव का परिणाम बीजेपी के लिए एक छिपा हुआ संदेश हैं

अस्तित्व विहीन होती भाजपा !

BJP, Bihar

Source-TFI

बिहार में विपक्षी राजद ने शनिवार को सत्तारूढ़ एनडीए से बोचहां विधानसभा सीट छीन ली, जिसमें उसके उम्मीदवार ने भाजपा उम्मीदवार को 35,000 से अधिक मतों के बड़े अंतर से हराया। भाजपा बोचहां सीट पर हार और राजद जीत मिली। राजद उम्मीदवार अमर पासवान के पिता मुसाफिर पासवान की मृत्यु के कारण यहाँ उप चुनाव हुआ। अमर पासवान को 82,116 वोट मिले, जबकि उनकी निकटतम भाजपा प्रतिद्वंद्वी बेबी कुमारी को केवल 45,353 वोट मिले। निष्कासित राज्य मंत्री मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के टिकट पर मुसाफिर पासवान ने 2020 मेंये सीट जीती थी। पर, इस उपचुनाव में स्वयं वीआईपी सुप्रीमो 29,671 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहें। आपकी जानकारी के लिए बता दें की करीब एक महीने पहले तक वीआईपी एनडीए का घटक था।

और पढ़ें: बिहार विधान परिषद चुनाव के मायने : भाजपा तुझसे बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं

राजद उम्मीदवार अमर पासवान अपने पिता के मृत्यु पश्चात अंतिम समय में मुकेश साहनी का हाथ छोड़कर राजद के पाले में जा मिले और वीआईपी उम्मीदवार के दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु के बाद खाली हुई ये सीट राजद के पास चल;ई गयी है लेकिन, इस चुनाव में ऐसी ढेरों राजनीतिक सीख छुपी हुई है जिससे भाजपा सबक ले सकती है।

भूमिहार हुए अलग

बोचहां उपचुनाव भूमिहार मतदाताओं के राजद की ओर राजनीतिक झुकाव प्रतिबिम्बित करता है। कहा जाता है कि करीब 20-25 फीसदी भूमिहार मतदाताओं ने राजद का समर्थन किया है। कई भूमिहार युवाओं को तेजस्वी प्रसाद यादव के साथ मंच साझा करते देखा गया। आपको बता दें बोचाहन में 55,000 से अधिक भूमिहार मतदाता हैं।

भूमिहार भले ही राजद के साथ पूरी तरह से न गए हों, लेकिन उन्होने भाजपा को ये संदेश दे दिया है कि उन्हें कभी हल्के में नहीं लिया जा सकता। बोचहां उप चुनाव के परिणाम राजनीतिक संबद्धता को स्थानांतरित करने की दिशा में संकेत नहीं हो सकते हैं, लेकिन एनडीए को स्पष्ट संदेश भेज रहे हैं की समुदाय के मामूली या शून्य राजनीतिक प्रतिनिधित्व से वे गुस्से में हैं।

बोचहां की हार में एक बड़ा कारण पूर्व भाजपा विधायक सुरेश शर्मा भी थे जो स्वयं भूमिहार समुदाय से आते हैं और समुदाय में भाजपा के प्रति व्याप्त गुस्से को खत्म करने के बजाय उन्होने खुद को बोचहां अभियान से अलग कर लिया था। सुरेश शर्मा, 2020 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा से नाराज हैं। शर्मा पार्टी द्वारा मुजफ्फरपुर के एक अन्य नेता, रामसूरत राय (यादव) को अधिक वजन देने से भी नाराज थे, जो अब एक मंत्री हैं। एनडीए ने बोचहां को लगातार तीन बार जीता था, लेकिन राजद “परेशान मल्लाह” और “असंतुष्ट भूमिहार” को अपने पाले में करने में सफल हुए।

और पढ़ें: VIP पार्टी ने बिहार में भाजपा को फिर से जीवंत करने का एक और मौका दिया है

प्लान ‘बी’ की कमी

भाजपा में ‘प्लान बी’ की कमी हमेशा से दिखी है। अपने राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति ना होने पर क्षेत्रीय नेताओं द्वारा बगावत करने की प्रथा अब आम हो चुकी है। भाजपा को भरोसेमंद नेताओं पर निवेश और बगावत करने वालों को निष्काषित करना चाहिए। अंतिम समय में ऐसे किसी भी प्रकार के बगावती नुकसान को कम करने का ‘प्लान बी’ हमेश तैयार होना चाहिए। प्रश्न उठता है की इस चुनावी परिदृश्य में साफ साफ दिख रहा था की भूमिहार तेजस्वी के साथ मंच साझा कर रहें है। भूमिहारों के नेता और पूर्व भाजपा विधायक सुरेश शर्मा भूमिहारों के गुस्से को शांत करने के लिए कुछ नहीं कर रहें है। निषादों का वोट खींचने के लिए वीआईपी सुप्रीमो लड़ रहें हैं। पार्टी में अनुशासनहीनता का बोलबाला है और भाजपा के उम्मीदवार का जनाधार नहीं है, तो आखिर चुनाव की समीकरण और रणनीति पर लड़ा गया? मंथन आवश्यक है वरना अति अनुशासनहीनता को बल मिलता रहेगा।

और पढ़ें: क्या बिहार में नीतीश युग का अंत हो गया है?

Exit mobile version