राजनीति का मंझा हुआ खिलाड़ी वही है जो अपने विपक्षी के चाल को चले जाने से पूर्व ही भांप ले। आम आदमी पार्टी जिस रफ़्तार के साथ अपने विस्तार में लगी हुई है, भाजपा को उससे अधिक सतर्कता के साथ अपने नीति-निर्माण तत्वों को भुनाने की आवश्यकता है। एक पार्टी के लिए उसके उद्गम की शुरुआत चुनावी जीत से होती है। 2012 में जन्मी इस पार्टी ने मात्र 10 वर्ष के अंतराल में दो राज्यों की सत्ता हासिल कर ली जिससे वो एक क्षेत्र तक सिमटे राजनीतिक दाल के टैग को लतिया बाहर फ़ेंक चुकी है।
भाजपा को चुनौतियों से पार पाना है
अब भाजपा के लिए जहां गुजरात में आगामी विधानसभा चुनाव में अपने किले को कायम रखने की चुनौती है तो दूसरी ओर उसे आम आदमी पार्टी को हल्के में लेने की भूल भी नहीं करनी चाहिए क्योंकि जिस रणनीति पर वो चल रही है वो कब किस पर भारी पड़ जाए कहना मुश्किल है।
दरअसल, केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली से पूर्ण राज्य पंजाब की सत्ता का लक्ष्य भेदने वाली आम आदमी पार्टी के हौसले पंजाब हाथ आने के बाद बुलंद हो गए हैं। अब वो आने वाले सभी चुनावी राज्यों को अपने नाम करने की जुगत में लग चुकी है जिससे अन्य सभी पार्टियों को संभलकर रहने की आवश्यकता है क्योंकि फ्री पुरुष वाली पार्टी कभी भी किसी जनता का भला नहीं कर पाई। चाहे वो श्रीलंका के वर्तमान हालत को देखकर समझ लें या दिल्ली में त्रस्त मध्यम वर्गीय और निम्नवर्गीय तबके की दुर्दशा को देखकर, फर्क दिख जाएगा कि ढकोसले वाली सरकार अपनी तिजोरी ही भरती है फिर चाहे पार्टी के नाम में कितनी भी बार “आम आदमी” ही क्यों न लिखा हो।
और पढ़ें- दिल्ली का शिक्षा मॉडल – महंगे प्राइवेट स्कूल और बिना हेडमास्टर के सरकारी स्कूल
गुजरात मॉडल का कोई तोड़ नहीं
गुजरात में पीएम मोदी ने ऐसा गुजरात मॉडल प्रस्तुत किया कि 2014 में वो प्रधानमंत्री बन गए, उनके बाद राज्य की कमान विजय रूपाणी और भुपेन्द्र भाई पटेल ने संभाली। अब इस श्रृंखला को बनाए रखने की जहां एक ओर बागडोर भाजपा के हाथ में है तो उसे यह भी देखना होगा कि स्वयं को मजबूत करने के लिए आम आदमी पार्टी राज्य के सभी दलों के वरिष्ठ और नामी नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करने के कार्यक्रम को शुरू का चुकी है। आलम तो यह है कि राज्य इकाई के प्रमुख दूसरे दलों के रूठे और रुष्ट नेताओं की सूची बना उन्हें सार्वजानिक रूप से पार्टी छोड़ने और “आप” में शामिल होने का आमंत्रण दे रहे हैं।
आम आदमी पार्टी के गुजरात प्रदेशाध्यक्ष गोपाल इटालिया ने कांग्रेस नेता हार्दिक पटेल को लेकर बड़ा बयान दिया है। इटालिया ने कहा है कि, हार्दिक पटेल की कद्र नहीं हो रही। अब यदि उन्हें कांग्रेस पसंद नहीं है, तो उन्हें हमारे जैसी विचारधारा वाली पार्टी में शामिल हो जाना चाहिए। इटालिया बोले, “अपना समय बर्बाद कर कांग्रेस से शिकायत करने के बजाय, हार्दिक पटेल को हमारे साथ आ जाना चाहिए। और, अपना योगदान देना चाहिए… कांग्रेस जैसी पार्टी में उनके जैसे समर्पित लोगों के लिए जगह नहीं होती।”
दरअसल,हाल ही में कांग्रेस से रूठे हार्दिक पटेल ने अपनी योग्यता अनुरूप कांग्रेस में तरजीह न दिए जाने पर कहा था कि,”पार्टी में मेरी हालत उस नए दूल्हे की तरह हो गई है, जिसकी नसबंदी करा दी जाती है।” अब आम आदमी पार्टी ने इसे लपक लिया और दे दिया ऑफर की कद्र यहां होगी और सही बात है भाई, नसबंदी हो भी सकती है क्योंकि पार्टी के एक नेता संजय गांधी भी तो थे ही जिन्होंने नसबंदी से दूर भाग रहे लोगों की पकड़-पकड़ कर नसबंदी कराई थी।
और पढ़ें- केजरीवाल के नकली शिक्षा मॉडल की जड़ें हिलाने आ गए हैं NCPCR Chairman प्रियांक कानूनगो
गुजरात कांग्रेस के कई नेता आप में शामिल हो गए
हार्दिक के आने न आने के कयास लगने की कड़ी में गुजरात कांग्रेस के कई नेता आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए। राजकोट से कांग्रेस के पूर्व विधायक इंद्रनील राजगुरु और राजकोट के पूर्व उम्मीदवार वासरामभाई सगथिया अपने समर्थकों के साथ आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए हैं। आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि“आप में सभी को गुजरात के लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।“
गुजरात विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ, आम आदमी पार्टी के अनुसार जहां उन्होंने राज्य में कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक ताकत में एक बड़ी सेंध लगा दी है। तो वहीं अन्य नेताओं पर गिद्ध दृष्टि बनाए हुए पार्टी आलाकमान ऐढी-चोटी का जोर लगा रही है कि कैसे भी गुजरात की सत्ता हाथ में आ जाए। ऐसे में क्या पाटीदार क्या पटेल और क्या अन्य जातियां, “आप” का ध्येय है कि गुजरात का किला कैसे भी फ़तेह किया जाए। ऐसे में अब न उसपर बल की कमी है, न ही बुद्धि की और धन की कमी तो उसके उद्योगपति साथी,भारत विरोधी गुट के कारण और जब से पंजाब हाथ में आया है तबसे तो पैसे की कमी हो ही नहीं रही है क्योंकि सत्ता पूरी तरह हाथ में है। अब ऐसे में यदि भाजपा आम आदमी पार्टी को हल्का आंकने की गलती करती है तो वो बेवकूफी से कम नहीं होगा।