ब्लूमबर्ग जर्मनी द्वारा भारत के बहिष्कार की बात कर रहा था, रंगे हाथों पकड़ा गया

खुली ब्लूमबर्ग के दावे की पोल!

मोदी जी G7

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एक और पश्चिमी देश विशेषतः यूरोपीय देश धड़ल्ले से रूस से ऊर्जा संसाधनों की खरीद कर रहे हैं दूसरी ओर पश्चिमी मीडिया भारत पर दबाव बनाने के लिए झूठे और प्रोपेगेंडा से भरे लेख छाप रही है। इसी क्रम में ब्लूमबर्ग का एक लेख आया है, जिसमें बताया गया था कि जर्मनी रूस को समर्थन देने के कारण अपने यहां आयोजित होने वाले G7 सम्मेलन में भारत को आमंत्रित नहीं करने वाला है। हालांकि ब्लूमबर्ग के दावे की हवा जर्मनी ने ही निकाल दी है।

Germany Weighs Snubbing India as G-7 Guest Over Russia Stance नामक शीर्षक के साथ छपे लेख में बताया गया था कि जर्मनी रूस के मुद्दे पर भारत के रुख के कारण अब भारत को G7 की बैठक में आमंत्रित करने पर रुख कड़ा कर रहा है। सूत्रों का हवाला देकर लेख में कहा गया था “मामले से परिचित लोगों के अनुसार, यूक्रेन पर हमला करने के लिए रूस की निंदा करने के लिए भारत की अनिच्छा को देखते हुए, जर्मनी इस बात पर बहस कर रहा है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जून में आयोजित होने वाले सात शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया जाए।” इस बार G7 शिखर सम्मेलन जर्मनी के बायर्न राज्य में आयोजित किया जाएगा। जर्मनी आयोजक है इसलिए वह निर्धारित करेगा कि आमंत्रित देशों में किसे बुलाया जाए।

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ब्लूमबर्ग के लेख का खंडन

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में कहा गया था “जर्मनी बायर्न-बैठक में सेनेगल, दक्षिण अफ्रीका और इंडोनेशिया को अतिथि के रूप में शामिल करने के लिए तैयार है, लेकिन भारत का नाम विचाराधीन है। ब्लूमबर्ग ने अपने सूत्रों का नाम गोपनीयता की शर्त के कारण नहीं छापा था। हालांकि यह लेख 12 अप्रैल को 4 बजे के बाद प्रकाशित हुआ है और जर्मनी की सरकार ने त्वरित रूप से इसे खारिज कर दिया है।

रिपब्लिक टीवी की रिपोर्ट के अनुसार जर्मन सरकार ने अब उन रिपोर्टों का खंडन किया है जिसमें दावा किया गया था कि वह भारत को G7 शिखर सम्मेलन में एक मेजबान देश के रूप में आमंत्रित नहीं करने पर विचार कर रही थी।

ब्लूमबर्ग का लेख हवा में चलाया गया एक तीर था। वास्तविकता यह है कि यूरोपीय देश किसी भी स्थिति में भारत के साथ अपने संबंध खराब नहीं करना चाहते हैं। भारत पर रूस विरोधी रवैया अपनाने के लिए दबाव बनाने पर भारत का निश्चय और अधिक दृढ़ होता जाएगा। यह तय है और अमेरिका को इसका आभास भारत द्वारा कराया जा चुका है।

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पश्चिमी देश यह नहीं चाहते कि चीन के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी उभरती हुई अर्थव्यवस्था भी पूरी तरह से रूस के पक्ष में खड़ी हो जाए, वैसे भी इस समय यूरोपियन यूनियन भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते के लिए प्रयास कर रही है। जर्मनी ऐसा कोई निर्णय नहीं करेगा जो उसके तथा यूरोप के अन्य देशों के व्यापारिक हितों को चोट पहुंचाए। ब्लूमबर्ग, न्यूयॉर्क टाइम्स, द वॉशिंगटन पोस्ट जैसे समाचार पत्र जो चाहे लिखें, उन्हें भारत सरकार एवं भारत की अधिकांश जनता महत्व नहीं देती। उल्टे ऐसी झूठी खबरें लिखकर वह अपनी विश्वसनीयता को और भी कमजोर कर रहे हैं।

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