बुल, बिस्वास, दसवीं – अभिषेक बच्चन, जिन्हें बॉलीवुड में अब तक उचित सम्मान नहीं मिला

अभिनय की परिभाषा हैं अभिषेक बच्चन!

अभिनेता अभिषेक बच्चन

Source- TFIPOST

“मुझे यह गोल्फ खेलना नहीं आता था, न ही यह घोड़े की रेस खेलता हूँ, पर अपने धंधे का मजबूत खिलाड़ी हूँ।” इस संवाद का महत्व ‘गुरु’ में तब भले समझ न आया हो, लेकिन ‘मनमर्जियाँ’ से लेकर ‘दसवी’ तक अपनी अदाकारी से प्रभावित करने वाले अभिषेक बच्चन को देखकर स्पष्ट समझ में आता है। अपने अभिनय से लोगों के दिलों पर राज करने वाले अभिनेता अभिषेक बच्चन को बॉलीवुड में अभी तक वो सम्मान नहीं मिला था जिसके वो हकदार थे, लेकिन अब उन्हें वास्तव में वो पहचान मिल रही है, जिससे वो वंचित रह गए थे। दरअसल, हाल ही में आई फिल्म ‘दसवीं’ ने सबको अपनी ओर आकर्षित किया है। नेटफलिक्स पर स्ट्रीम हो रही इस फिल्म में अभिनेता अभिषेक बच्चन प्रमुख भूमिका में हैं और उनका साथ दिया है यामी गौतम, निमरत कौर इत्यादि जैसे कलाकारों ने। ये कथा है गंगाराम चौधरी की, एक पूर्व मुख्यमंत्री जो घोटाले के मामले में जेल में बंद है और अपनी दसवीं की पढ़ाई पूरी करना चाहता है। इस फिल्म से एक बार अभिषेक बच्चन के बेजोड़ परफ़ॉर्मेंस की चर्चा हो रही है।

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अभिनय की दुनिया के बेताज बादशाह हैं अभिषेक बच्चन

आप अभिनेता अभिषेक बच्चन को शायद केवल ‘द्रोणा’, ‘हाउस्फुल’ या ‘हैपी न्यू ईयर’ जैसी फिल्मों के लिए जानते होंगे, परंतु अभिनय में भी इस अभिनेता ने कम झंडे नहीं गाड़े हैं। कहने को अभिषेक बच्चन प्रख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन के सुपुत्र हैं, परंतु एक अभिनेता के रूप में उनकी अपनी अलग पहचान थी, जिसे वो दुर्भाग्यवश जनता के समक्ष सामने नहीं ला पा रहे थे। इसमें कुछ हद तक गलत स्क्रिप्ट का चुनाव और काफी हद तक दुर्भाग्य की महत्वपूर्ण भूमिका थी। लेकिन जब भी उन्हें अपनी प्रतिभा को निखारने का अवसर मिला, उसे उन्होंने हाथों हाथ लिया। वर्ष 2003 में भले ही ‘LOC कारगिल’ उतनी सफल नहीं हुई थी, लेकिन ‘शेरशाह’ के विश्वप्रसिद्ध होने से पूर्व कैप्टन विक्रम बत्रा को सिल्वर स्क्रीन पर सर्वप्रथम अभिनेता अभिषेक बच्चन ने ही आत्मसात किया था और यदि उन्होंने उस भूमिका में चार चांद नहीं लगाए, तो कम से कम अन्याय भी नहीं किया।

परंतु फिर वर्ष 2004 में आई ‘युवा’, जिसे निर्देशित किया मणि रत्नम ने और जिसमें अभिषेक बच्चन बने थे लल्लन सिंह। इस रोल ने सभी को चकित कर दिया और इसके लिए अभिषेक बच्चन को अनेकों पुरस्कार भी मिले। इसके बाद तो अभिषेक बच्चन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। प्रयोगों की यह रीति चलती रही और अभिषेक बच्चन ने अगले ही वर्ष 2005 में सरकार में शंकर नागरे के रूप में सबको सम्मोहित कर दिया। इसके अतिरिक्त कभी अलविदा न कहना, गुरु, बँटी और बबली से लेकर विभिन्न प्रकार के फिल्मों में उन्होंने अपने अभिनय से सभी का मन मोहा। परंतु अपने ऊपर से वो तब भी ‘अमिताभ बच्चन के बेटे’ का टैग नहीं हटवा पाए।

2018 से बदल गई किस्मत

लेकिन वर्ष 2018  तो मानो अभिनेता  अभिषेक बच्चन के लिए वरदान समान आया। उस वर्ष आई ‘मनमर्जियाँ’, जो ‘हम दिल दे चुके सनम’ एवं ‘वो 7 दिन’ का आधुनिक मिश्रण था, जिसे अनुराग कश्यप ने निर्देशित किया था। सभी की निगाहें विकी कौशल और तापसी पन्नू के परफ़ॉर्मेंस पर थी, परंतु जैसे ‘हम दिल दे चुके सनम’ में अजय देवगन ने सभी को पछाड़ते हुए लाइमलाइट बटोरी, वैसे ही इस कीचड़ समान फिल्म में अभिनेता अभिषेक बच्चन कमल के समान उभरे। बस, फिर क्या था, अभिषेक बच्चन एक बार फिर से जनता के दिलों में छाने लगे। वर्ष 2020 में नेटफलिक्स पर आई ‘लूडो’ में उनका किरदार बटुकेश्वर तिवारी उर्फ बिट्टू ने सबका मन मोह लिया। बीच में ‘Breathe: Into The Shadows’ जैसे वेब सीरीज़ से इन्होंने अपनी अलग छाप छोड़ी और फिर ‘बॉब बिस्वास’ तथा अब ‘दसवीं’ से ये सिद्ध हो गया है कि यदि सही स्क्रिप्ट हो और पर्याप्त अवसर, तो अभिषेक बच्चन भी अपने आप में एक मंझे हुए अभिनेता हैं और अगर उन्हीं की भाषा में कहें, तो “नाम था नहीं, है, और रहेगा, अभिषेक बच्चन।”

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