क्या इन्फोसिस जैसी कंपनी एक देश के बहिष्कार की घोषणा यूं ही कर सकती है?

भारत की छवि को बिगाड़ने का काम कर रही है इन्फोसिस!

इन्फोसिस रूस

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इन्फोसिस का नाम सुनते ही कई भारतीयों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। इस कंपनी ने आईटी क्षेत्र में निस्संदेह अपनी अलग पहचान बनाई है– लेकिन वास्तव में ‘ऊंची दुकान फीका पकवान’ को सार्थक करने के अलावा इस कंपनी की कोई विशेष उपलब्धि नहीं रही है। औसत दर्जे के आईटी उत्पाद उपलब्ध कराने के अलावा भारतीयों को बाहर भेजने में इस कंपनी ने अवश्य विशेषज्ञता प्राप्त की है और अब अपने आप को लाइमलाइट में बनाए रखने के लिए इसने रूस के बहिष्कार की घोषणा की है।

लेकिन इन्फोसिस के घटिया परफ़ॉर्मेंस का रूस के बहिष्कार से क्या नाता? इन दिनों रूस और यूक्रेन में भीषण युद्ध चल रहा है, जिसको लेकर विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं हर देश से देखने को मिल रही हैं। ऐसे में यूक्रेन में जो युद्ध हो रहा है, उस पर एक निष्पक्ष रुख अपनाकर स्थिति के अनुसार अपनी नीति निर्माण पर ध्यान देना चाहिए। परंतु इन्फोसिस जैसी कंपनियों को ऐसा लगता है कि यदि रूस को बुराई का प्रतीक नहीं बनाया गया, तो वह अन्य पाश्चात्य ‘clients’ से हाथ धो बैठेगा और इसीलिए इन्फोसिस ने रूस से बोरिया बिस्तर समेटने का निर्णय किया है

जी हां, आपने बिल्कुल ठीक सुना। इन्फोसिस ने हाल ही में बुधवार को निर्णय किया कि वह रूस में अब एक क्षण भी नहीं रुकेगा। मीडिया को संबोधित करते हुए कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर सलिल पारेख ने कहा, “जो कुछ भी हो रहा है उस क्षेत्र में, उसे ध्यान में रखते हुए हमने रूस में स्थित अपने सभी केंद्र रूस से बाहर निकालने का निर्णय किया है। आज न तो हमारे पास कोई रूसी ग्राहक है और न ही भविष्य में हमारे पास किसी रूसी ग्राहक के साथ काम करने का इरादा है।” इसके अतिरिक्त पारेख ने ये भी बताया कि वे यूक्रेन की स्थिति से बेहद चिंतित है और ‘मानवीय सहायता’ के आधार पर 1 मिलियन डॉलर की सहायता करने की घोषणा की है।

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सिर्फ नाम की एक भारतीय कंपनी है इंफोसिस!

इन्फोसिस के दोहरे मापदंडों पर हम चर्चा करें, इससे पूर्व हमको वर्तमान परिस्थितियों पर भी ध्यान देना होगा। दरअसल, काफी समय से ही इन्फोसिस पर विभिन्न देशों से रूस में अपने काम को बंद करने के लिए दबाव बनाया जा रहा था। कहा जाता है कि यूके के वित्त मंत्री ऋषि सुनक को इन्फोसिस से काफी वित्तीय लाभ प्राप्त हुआ है, क्योंकि उनकी पत्नी अक्षता मूर्ति की इन्फोसिस में हिस्सेदारी है। अक्षता इन्फोसिस के संस्थापक एन आर नारायणमूर्ति की पुत्री हैं और इसीलिए ये मामला और अधिक महत्वपूर्ण हो गया। इस समय भारत ने संयम से काम लेते हुए अपना पक्ष स्पष्ट रखा और पश्चिमी जगत के दबाव में बिल्कुल नहीं झुका।

लेकिन इस प्रकरण ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि आखिर क्यों इन्फोसिस सिर्फ नाम का भारतीय है और अपने इस कदम से इस कंपनी ने भारत के हितों के विरुद्ध जाकर अपनी शामत बुलाई है। वो कैसे? इन्फोसिस को विश्व एक भारतीय कंपनी के रूप में जानती है। इन्फोसिस भारतीय आईटी की सफलता का ‘पर्याय’ रही है। क्या ऐसे में इन्फोसिस द्वारा रूस छोड़ने से इसका असर भारत-रूस संबंधों पर नहीं पड़ेगा? क्या यह ऐसा संदेश नहीं भेजेगा कि भारत की एक प्रभावशाली कंपनी इसलिए रूस से निकल गई क्योंकि उसके अंदर पश्चिमी जगत से भिड़ने का सामर्थ्य नहीं!

कई बार विवादों के घेरे में आ चुका है इंफोसिस

इन्फोसिस को समझना होगा कि वह अपनी बचकानी हरकतों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दोहराकर नहीं निकल सकता। इससे पूर्व में भी वह कई बार इन्हीं कारणों से विवादों के घेरे में आ चुका है। उदाहरण के लिए अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने कार्यकाल में अमेरिका से नौकरियों को अन्य देशों में आउटसोर्स होते हुए देख इसे रोकने हेतु एच1-बी वीजा के नियमों को अधिक कड़ा कर दिया था। The Verge की रिपोर्ट के अनुसार आईटी सॉफ्टवेयर कंपनी Infosys ने भी अमेरिकी युवाओं की खूब भर्ती की। हालांकि, उनमें से अधिकतर युवाओं का मानना है कि उन्हें मोटी सैलरी मिली, लेकिन उनका काम कुछ नहीं था।

इसी रिपोर्ट के अनुसार Infosys ने सितंबर 2020 में घोषणा करते हुए कहा कि वह अगले दो वर्षों में 12,000 अमेरिकी युवाओं को नियुक्त करने की योजना बना रही है, जिससे वहां पांच वर्षों में 25,000 तक भर्ती के टारगेट को पूरा किया जा सके। वर्ष 2017 में, Infosys ने दो साल में 10,000 अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी देने के लिए कहा था, लेकिन इस कंपनी ने अमेरिका में 13,000 नौकरियां पैदा करके उस लक्ष्य को भी पार कर लिया था।

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आयकर विभाग भेज चुका है समन

लेकिन ये तो कुछ भी नहीं है। अगस्त 2021 में इन्फोसिस को उसके लचर प्रदर्शन के लिए लताड़ते हुए केंद्र सरकार ने आयकर विभाग के माध्यम से सूचित करते हुए बताया कि ‘वित्त मंत्रालय ने 23 अगस्त को इंफोसिस सीईओ श्री सलिल पारेख को समन किया है, जिससे कि वे बता सकें कि आखिर इनकम टैक्स पॉर्टल लॉन्च होने के बाद से उसकी दिक्कतें ठीक क्यों नहीं हो पा रही हैं। 21 अगस्त से तो पोर्टल ही उपलब्ध नहीं है” –

उपर्युक्त मामलों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इन्फोसिस द्वारा रूस से हटना न केवल हास्यास्पद है, अपितु चिंताजनक भी है। ये न केवल इस कंपनी की अपरिपक्वता को दर्शाता है, अपितु इस बात को भी प्रदर्शित करता है कि यदि इन्हें इनका दायित्व स्मरण नहीं कराया गया, तो ये आगे भी ऐसे ही भारत की नाक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कटवाते रहेंगे!

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