सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने हाल ही में कहा है कि आम लोग न्यायालयों में प्रयोग होने वाली भाषा को आसानी से नहीं समझ पाते। उन्होंने कहा है कि जिस प्रकार लोग मंत्र का अर्थ नहीं समझते, कोर्ट की भाषा समझने में भी उन्हें उसी प्रकार की बाधा का सामना करना पड़ता है। मुख्य न्यायाधीश महोदय ने लोगों द्वारा मंत्रों की भाषा को न समझ पाने के बारे में बताते हुए न ही कोई शोधपत्र का संदर्भ दिया, न किसी सर्वे की जानकारी दी। उन्होंने यह नहीं बताया कि उनका दावा किस आधार पर स्थित है।
भारत की आजादी के बाद भी एक पक्ष ऐसा है जहां पर हम आज भी स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे हैं। वह पक्ष है वैचारिकी का। भारत में आधुनिकता के नाम पर जो वैचारिकी फैलाई गई उसका तादात्म्य यह था कि हम अपनी संस्कृति की जड़ों से कटे रहे और अपनी सांस्कृतिक पहचान को बार-बार तुच्छ सिद्ध करते रहे। आधुनिकता की यह विकृत परिभाषा भारतीय जनमानस पर किस प्रकार हावी है कि हम न भी चाहे तो भी अनजाने में हम ऐसा कुछ बोल देते हैं अथवा ऐसा कुछ कर देते हैं जिससे हम अपनी सांस्कृतिक पहचान के महत्व को कम करते हैं। मुख्य न्यायाधीश रमन्ना द्वारा मंत्रों के संदर्भ में कही गई बात भी ऐसी ही मानसिकता का प्रमाण है। उन्होंने अनजाने में मंत्र की भाषा अर्थात संस्कृत का अपमान किया है। भारत के बुद्धिजीवी समुदाय द्वारा मुख्य न्यायाधीश के वक्तव्य पर चर्चा न करने का यह बताता है कि संस्कृत तथा इस जैसी सभी सांस्कृतिक धरोहरों के संदर्भ में भारतीय समाज कितना और संवेदनशील है।
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एनवी रमन्ना के शब्द
शनिवार, 23 अप्रैल को, भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना मद्रास उच्च न्यायालय के नौ मंजिला प्रशासनिक ब्लॉक की आधारशिला रखने के लिए चेन्नई में गए थे। शिलान्यास के बाद अपने भाषण में, CJI ने भारतीय न्यायिक व्यवस्था के कामकाज की कुछ प्रमुख समस्याओं पर बोलना शुरू किया।
माननीय CJI ने स्वीकार किया कि न्यायपालिका में लोगों का विश्वास बनाए रखने का आज की सबसे बड़ी चुनौती है। संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने की दिशा में अपने काम के बारे में देश को अवगत कराते हुए CJI ने कहा, “भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के पिछले एक वर्ष के दौरान, मैं हमारी कानूनी प्रणाली को प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों पर प्रकाश डालता रहा हूं। न्यायपालिका सहित आजकल सभी संस्थानों को प्रभावित करने वाला सबसे बड़ा मुद्दा जनता की आंखों में निरंतर विश्वास सुनिश्चित करना है। न्यायपालिका को कानून के शासन को बनए रखने और विधायी और कार्यकारी ज्यादतियों की जांच करने की अत्यधिक संवैधानिक जिम्मेदारी मिली है।”
इसके साथ ही मुख्य न्यायाधीश ने विभिन्न न्यायालयों में भाषा की बाधाओं के मुद्दे को भी संबोधित किया। उन्होंने उच्च न्यायालयों में क्षेत्रीय भाषाओं को न्यायिक कार्यप्रणाली में सम्मिलित करने के महत्व पर जोर दिया। CJI ने कहा कि इससे वादियों के लिए मुकदमेबाजी की प्रक्रिया और आसान हो जाएगी। क्षेत्रीय नेताओं द्वारा पूर्व में भी यही मांग उठाई गई है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को अन्य राज्यों से नियुक्त किए जाने के कारण, तर्क, अभिवचन और प्रस्तुति कि कानूनी प्रक्रिया करने के लिए अंग्रेजी माध्यम का उपयोग किया जाता है।
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इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने अपने भाषण के मंत्र वाले भाग का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, “पक्षों की चल रही अदालती प्रक्रिया और उनके मामले के विकास को समझना चाहिए। यह एक शादी में मंत्र जाप जैसा नहीं होना चाहिए, जो हम में से ज्यादातर लोगों को समझ में नहीं आता है। समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों से मांग की गई है कि संविधान के अनुच्छेद 348 के तहत उच्च न्यायालयों के समक्ष कार्यवाही में स्थानीय भाषा के प्रयोग की अनुमति दी जाए।”
“The common citizen of this country cannot understand the language of the court. The parties must understand the language used in the court. IT SHOULD NOT BE LIKE MANTRAS USED IN A WEDDING, WHICH MOST OF US DO NOT UNDERSTAND,” CJI Justice NV Ramana says pic.twitter.com/eB3evYP45i
— LawBeat (@LawBeatInd) April 23, 2022
मंत्र वाले कथन की सोशल मीडिया पर आलोचन होने लगी। एक व्यक्ति ने लिखा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश मंत्र का अर्थ नहीं जानते हैं।
Well it is shameful that dear Milord doesn’t know meaning of mantras . May be he should educate himself now and be a Berger informed Milord . https://t.co/nFRAM01YzG
— Krishnasutra (@Krishnasutra1) April 23, 2022
सुप्रीम कोर्ट के वकील शशांक शेखर झा ने कहा कि CJI औसत हिंदू का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि CJI को ऐसी तुलना करने से बचना चाहिए।
Sorry, but CJI doesn’t represent Hindus.
He may not remember the Mantras, but Hindus in general are aware about their Dharma and culture.
He must refrain from drawing such weird comparisons.
— Shashank Shekhar Jha (@shashank_ssj) April 23, 2022
बहुत से लोगों ने इस वक्तव्य की आलोचन
Seriously???? Again shaming our Hindus mantras? In Bharat it's so easy to call names and put blames on Hindus, their religion, their rituals, their way of life, even the holy mantras. Sorry to say, but we do understand our mantras.
— JAI BHARAT🇮🇳 (@Hindust73231409) April 23, 2022
“The common citizen of this country cannot understand the language of the court. The parties must understand the language used in the court. IT SHOULD NOT BE LIKE MANTRAS USED IN A WEDDING, WHICH MOST OF US DO NOT UNDERSTAND,” CJI Justice NV Ramana says pic.twitter.com/eB3evYP45i
— LawBeat (@LawBeatInd) April 23, 2022
CJI sir – you would not have either understood had you not studied law. Did you study sanskrit? That's why you didnt understand mantras. Did your priest not explain? Courts are for citizens. Then why do you talk in a language that we don't understand? You are in public service
— lmaheswa (@lmaheswa) April 23, 2022
हालांकि मुख्य न्यायाधीश ने मंत्रों के संदर्भ में टिप्पणी करते हुए किसी शोध का उल्लेख नहीं किया किंतु हम यहां मंत्र की महत्ता को सिद्ध करने के लिए एक लेख को उद्धृत कर रहे हैं। यह लेख द हिंदू समाचार पत्र में छपा था। लेख बताता है कि “वैज्ञानिकों का कहना है कि जब किसी मंत्र का लयबद्ध जप किया जाता है, तो यह एक तंत्रिका-भाषाई प्रभाव पैदा करता है। मंत्र का अर्थ न जानने पर भी ऐसा प्रभाव होता है। ”लेख कहता है जाप अंततः हमें ध्यान करने के लिए प्रेरित करता है। ध्यान के लिए एकाग्रता की आवश्यकता होती है, जिसे प्राप्त करना कठिन होता है। लेकिन, जब आप ध्यान के साथ मंत्र जाप करते हैं, तो मन एकाग्र हो जाता है। इसका अर्थ समझने पर लक्ष्य प्राप्ति और आसान हो जाती है। मंत्रो के संदर्भ में और भी वैज्ञानिक दावे हैं, इसलिए मुख्य न्यायाधीश रमन्ना जी के वक्तव्य का यह भाग सर्वथा गलत है। यह सही है कि न्यायिक कार्य प्रणाली में भाषा को और अधिक सुबोध और सुग्राह्य बनने आवश्यक है, किन्तु उनके द्वारा की गई तुलना अनुचित और अनावश्यक थी।
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