Dear Time magazine, सच्चाई को बिना लाग लपेट के प्रस्तुत करना ‘कट्टरता को बढ़ावा’ देना नहीं होता है

आखिर इतनी कुंठा लाते कहां से हो ?

टाइम मैगजीन

Source- TFIPOST

भारत विरोधी पत्रकारिता की बात होगी तो विदेशी समाचार पत्रों में टाइम मैगजीन का नाम ऊपर की पंक्तियों में होगा। इस पत्रिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा और विशेष रूप से हिंदुओं के प्रति एक फोबिया देखने को मिलता है। इस्लामिक कट्टरपंथियों के प्रति अपने प्रेम और भारत के प्रति अपनी कट्टर और द्वेषपूर्ण भावना का यह पत्रिका समय-समय पर प्रदर्शन करती रहती है। टाइम मैगजीन समय-समय पर ऐसे लेख छापती रहती है, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी को मुसलमानों के सबसे बड़े दुश्मन के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। प्रायः यह मैगजीन भारत में मुसलमानों पर होने वाले कथित अत्याचार का तिलिस्म गढ़ने का प्रयास करती है। अब इसने द कश्मीर फाइल्स फ़िल्म को निशाना बनाया है। इस पत्रिका ने फिल्म पर टिप्पणी करते हुए लिखा, “इस फिल्म में मुसलमानों को ‛समान रूप से दुष्ट, विश्वासघाती और मांसभक्षी जानवर’ के रूप में चित्रित किया गया है। यहां तक ​​कि छोटे मुस्लिम लड़कों को भी शैतान के रूप में दिखाया गया है।”

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कश्मीरी हिंदुओं के साथ हुई त्रासदी का सच्चा चित्रण है कश्मीर फाइल्स

लेकिन सच्चाई यह है कि द कश्मीर फाइल्स शायद एकमात्र ऐसी फिल्म है जो कश्मीर में हिंदुओं के साथ 1990 के दौर में हुए नरसंहार की वास्तविकता दिखाने से नहीं कतराती है। यह फ़िल्म नहीं सत्य का प्रदर्शन है। इसलिए यह फिल्म उनके लिए बनी ही नहीं है, जो सत्य के विभत्स रूप को नहीं देख सकते। या यूं कहें कि सत्य के विभत्स रूप की एक छोटी सी झलक देखकर जिनकी बेचैनी बढ़ जाती हो, यह फिल्म उनके लिए नहीं है। भले ही नदिमर्ग में हुआ नरसंहार हो, जिसमें 24 हिन्दुओं को मार डाला गया था या गिरिजा टिक्कू को आरे से काटने का प्रकरण या चावल कन्टेनर में छिपे बी के गंजू को गोली मारकर, उनके खून से सने चावल को उनकी पत्नी को खिलाना हो, फिल्म में उस भयावहता को बिना लाग लपेट प्रदर्शित किया गया है जो उस दौर में हिंदुओं को देखनी पड़ी थी।

फिल्म के लिए निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने कश्मीर हिन्दुओं के सैंकड़ों परिवारों का साक्षात्कार लिया था। प्रत्येक हिन्दू के समक्ष रखी गई शर्त ‛रलीव, सलिव या गलिव’ (धर्म बदलो, भाग जाओ या मारे जाओ) का सही चित्रण हुआ है। कश्मीर बनेगा पाकिस्तान, हिन्दू पुरुषों के बिना, हिन्दू औरतों के साथ, जैसे नारे ने कश्मीरी हिन्दुओं को भागने पर मजबूर किया था। टाइम मैगज़ीन को यह सत्य न तो दिखाई देता है, न इसे देखने की उनकी कोई इच्छा है, बल्कि इसकी आवाज को दबाने के लिए ही ऐसी पत्रिकाओं ने वर्षों से मेहनत की है और आज जब उनकी सारी मेहनत पर पानी फिरता दिख रहा है तो ये लोग बौखलाए हुए हैं।

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इतनी कुंठा लाते कहां से हो लिबरलों

To Kill A Democracy: India’s Passage to Despotism नामक पुस्तक, जिसमें भारत का लोकतंत्र कैसे मर रहा है इसकी मनगढ़ंत कहानी लिखी गई, इसके लेखक देवाशीष राय चौधरी ने टाइम मैगजीन में अपने लेख में कश्मीर फाइल्स पर कई आरोप लगाए हैं। उनके अनुसार भारत सरकार कश्मीरी हिंदुओं को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध नहीं है, बल्कि उसका उद्देश्य इस फिल्म के माध्यम से मुसलमानों के विरुद्ध आक्रोश को बढ़ाना है। देवाशीष का कहना है कि इसी उद्देश्य से भारत सरकार और प्रधानमंत्री मोदी इस फिल्म को बढ़ावा दे रहे हैं तथा भारत के कई राज्यों में इसे टैक्स फ्री किया गया है। लेखक का कहना है कि इस फिल्म के माध्यम से न केवल मुसलमानों, बल्कि सेक्युलर राजनीतिक दलों, उदारवादी विद्वानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं और ऐसे सभी लोग जिनका लोकतांत्रिक भारत में विश्वास है, उनके विरुद्ध हिंदुओं के मन में आक्रोश भड़काया जा रहा है। हिंदुओं की कट्टरता को सही ठहराने के लिए मुसलमानों द्वारा पूर्व में की गई गलतियों को बहाना बनाया जा रहा है।

हालांकि, यह सत्य है कि इस फिल्म ने हिन्दू समाज में आक्रोश बढ़ाया है लेकिन फिल्म में ऐसा क्या दिखाया गया है कि इनकी बौखलाहट बढ़ गई है? क्या सत्य दिखाना गलत है? सत्य देखकर उसपर हिन्दू समाज का आक्रोशित होना गलत है? सत्य छिपाने से मुसलमानों के पाप धुल जाएंगे, कट्टरपंथियों की प्रवृत्ति बदल जाएगी? क्या सौहार्द निभाने की जिम्मेदारी अकेले हिन्दुओं की है? हिन्दुओं द्वारा अपने ऊपर हुए अत्याचार की कहानी सुनाना टाइम मैगजीन को नाजीवाद लग रहा है। कश्मीर से 7 चरण में हिन्दू समुदाय के पलायन और नरसंहार में यह कहानी एक चरण की है, वह भी उसका एक छोटा प्रतिबिंब है। ऐसे अत्याचार अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे कई क्षेत्रों में हुए हैं जो भारत की वास्तविक भूमि का 40% होंगे। अपने ही देश में, अपनी ही भूमि पर सैकड़ों वर्षों में हिंदुओं का क्रमबद्ध नरसंहार हुआ और जब उसकी बात उठाई जा रही है तो इसमें इन्हें नाजीवाद दिखाई दे रहा है। टाइम मैगजीन वाले चाहे जितना रोएं, भारतीयों को उनकी बातों से घंटा फर्क नहीं पड़ता। द कश्मीर फाइल्स, एक क्रान्ति का बीज है, भविष्य में ऐसा सिनेमा लगातार बनेगा और दर्शकों द्वारा पसंद किया जाएगा!

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