दुनिया में फिर से तेल संकट पैदा हो गया है। रूस-यूक्रेन विवाद के कारण तेल के दामों में उछाल आया है और इसका सीधा दबाव भारत पर भी पड़ रहा है। ऐसे में यह विमर्श और भी प्रासंगिक है कि भारत किस प्रकार तेल पर से अपनी निर्भरता समाप्त कर सकता है। भारत ने इसके उपाय पर कार्य शुरू कर दिया है। भारत की तीन बड़ी कंपनियां हाइड्रोजन फ्यूल (ग्रीन हाइड्रोजन) में भारत को अग्रणी बनाने के लिए साथ मिल कर काम करेने वाली हैं।
नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, “देश की सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (IOC), इंजीनियरिंग और निर्माण क्षेत्र की दिग्गज कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (Larsen & Toubro) और रिन्युअल एनर्जी कंपनी रिन्यू पावर (ReNew Power) ने ग्रीन हाइड्रोजन (Green Hydrogen) बिजनेस विकसित करने के लिए एक ज्वाइंट वेंचर बनाया है। आईओसी और एलएंडटी ने ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले विद्युत अपघटकों के विनिर्माण और बिक्री के लिए एक ज्वाइंट वेंचर बनाने के लिए करार किया है।”
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हाइड्रोजन कार से संसद गए थे गडकरी
यह पहला अवसर है जब तीन निजी कंपनियों ने इतना बड़ा फैसला एक साथ मिलकर लिया है। रिपोर्ट के अनुसार, कंपनियों ने एक बयान में संयुक्त रूप से कहा कि त्रिपक्षीय उद्यम एक सहक्रियात्मक गठबंधन है जो ईपीसी परियोजनाओं को रूपित, निष्पादित और वितरित करने में एलएंडटी की मजबूत साख, पेट्रोलियम रिफाइनिंग में आईओसी की स्थापित विशेषज्ञता और ऊर्जा स्पेक्ट्रम में रीन्यू की विशेषज्ञता को एक साथ लाता है। हाल ही में हाइड्रोजन फ्यूल को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी भारत की पहली हाइड्रोजन कार से संसद गए थे। इस हाइड्रोजन कार को नितिन गडकरी सहित चार केंद्रीय मंत्रियों द्वारा लांच किया गया है। महत्वपूर्ण है कि भारत के पास भविष्य में ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए दो विकल्प हैं। प्रथम यह कि भारत इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों पर अपनी निर्भरता बढ़ाएं और द्वितीय की भारत हाइड्रोजन कार को बढ़ावा दे।
लेकिन इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों पर निर्भरता में एक समस्या यह है कि भारत इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों के लिए बनाई जाने वाली बैटरी के संदर्भ में आत्मनिर्भरता प्राप्त नहीं कर सकेगा। भारत के पास लिथियम के भंडार उपलब्ध नहीं है। ऐसे में ग्रीन हाइड्रोजन गाड़ियों को बढ़ावा देना सही नीति है। हाइड्रोजन गाड़ियों की विशेषता यह भी है कि इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियां जहां प्राकृतिक संसाधनों जैसे लिथियम के उत्खनन पर निर्भर करती हैं, हाइड्रोजन कार पूरी तरह से इको फ्रेंडली है।
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ग्रीन हाइड्र्रोजन ही भविष्य है
हाइड्रोजन फ्यूल का निर्माण पानी में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के मॉलिक्यूल को अलग करके किया जाता। इसके लिए इलेक्ट्रो लाइजर का इस्तेमाल होता है। बिजली की सहायता से हाइड्रोजन को ऑक्सीजन से अलग करना संभव है और इस प्रक्रिया में प्राप्त हाइड्रोजन का प्रयोग ईंधन के रूप में हो सकता है। हाइड्रोजन फ्यूल न केवल इको फ्रेंडली है, बल्कि यह तेल की अपेक्षा सस्ता भी है। टोयोटा, जिसने भारत के लिए पहली हाइड्रोजन कार बनाई है, उसका दावा है कि यह कार 2 रुपये प्रति किलोमीटर की लागत पर चलती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि हाइड्रोजन गाड़ियों के प्रयोग में कुछ दिक्कतें थीं। हाइड्रोजन के स्टोरेज के लिए अत्याधिक दबाव की आवश्यकता होती है और इतने दबाव में हाइड्रोजन के घनत्व को बढ़ाने के लिए विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है। अब जब टोयोटा द्वारा ऐसी तकनीक का सफल प्रयोग कर लिया गया है तो भारत को हाइड्रोजन फ्यूल निर्माण पर ध्यान देने की विशेष आवश्यकता है, जिससे हाइड्रोजन गाड़ियों के निर्माण की तुलना में ईंधन आपूर्ति सुनिश्चित की जाए। हालांकि, भारत के निजी उद्यमी इस कार्य को आगे बढ़ाने में जी जान से लगे हुए हैं।