महिला सशक्तिकरण हेतु लिए गए अपने फैसले के साथ ही विपक्ष को पूरी तरह से कुचलने को तैयार हैं बिप्लब देब

त्रिपुरा में फिर से लहराएगा भगवा!

Biplab Kumar Deb, Tripura

Source-TFI

सत्ता प्राप्ति किसी भी राजनीतिक दल का वो लक्ष्य है, जिसकी प्रतीक्षा में उसके कार्यकर्ता आधा हो जाते हैं पर सत्ता मिलते ही मानों वर्षों पुरानी इच्छा पूरी हो गई हो ऐसा प्रतीत होता है। वर्ष 2014 के बाद से मानों भाजपा चुनाव जीतने की मशीनरी बन गई है, जिसको हराना पुराने से पुराने दल के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। जिस प्रकार वयोवृद्ध कांग्रेस पार्टी का राजनीतिक रूप से भाजपा लहर ने समूल नाश किया था, ऐसा ही हाल पूर्वोत्तर राज्यों में तब हुआ जब वामपंथी और लेफ्ट शासन को यही भाजपाई घोल कर पी गए और डकार भी नहीं मारे। अब इस श्रृंखला को कायम रखने के लिए भाजपा त्रिपुरा अपने मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब के नेतृत्व में कमर कस चुकी है और इस बार चुनाव जीतने से ही नहीं, बल्कि चुनाव प्रचंड बहुमत से कैसे जीता जाए उसपर भाजपा का ध्यान केंद्रित है। ऐसे में बिप्लब देब अब महिला सशक्तिकरण के कार्ड से विपक्ष को एक बार फिर से धराशाई करने के लिए तैयार हैं।

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त्रिपरा में फिर लहराएगा भगवा

जैसे-जैसे त्रिपुरा में 2023 के विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, भारतीय जनता पार्टी ने फिर से अपनी महिला-केंद्रित नीतियों के आधार पर पूर्वोत्तर राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए दावा पेश कर दिया है। इसमें सबसे बड़ा आधार है महिलाओं के लिए सभी नौकरियों में 33% आरक्षण और कानून व्यवस्था को मजबूत करना। यूं तो स्वयं भाजपा भी कह चुकी है कि इस चुनाव में भाजपा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या सीपीआई (एम) के बीच एक द्विध्रुवीय मुकाबला होगा।

वैसे तो त्रिपुरा में ममता बनर्जी और उनकी पार्टी टीएमसी के दखल बढ़ती जा रही है पर इस आधार को सीएम बिप्लब देब निराधार बता रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि इससे राज्य के राजनीतिक समीकरणों में हलचल भी नहीं होने वाला है। बीते सोमवार को राजधानी दिल्ली में मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सत्तारूढ़ दल के लिए एक खतरे के रूप में उभरने वाले दावे को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि भाजपा “आराम से जीतने” वाली है और पार्टी को इस पर पूरा भरोसा है। उन्होंने कहा कि 60 सदस्यीय विधानसभा में उसे जो भी विरोध का सामना करना पड़ेगा वह माकपा की ओर से होगा। देब ने कहा, “त्रिपुरा में शायद ही कोई विपक्ष हो….जो कुछ भी बचा है वह सीपीएम है।” ऐसे सटीक बोल बिप्लब देब के तीखे-तल्ख़ तेवर उनकी 2023 की रणनीति का भाग-1 है।

महिलाओं के लिए सभी नौकरियों में 33 फीसदी आरक्षण

ध्यान देने वाली बात है कि राज्य के 2023 विधानसभा चुनावों की बिसात अभी से बिछनी शुरू हो गई है और इस बार यह रणनीति महिला वोटरों को साधने की है, जिसके लिए सरकारी योजनाओं और वादों का पिटारा खुल चुका है। मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने कहा, “राज्य में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सरकार द्वारा किया गया कार्य उपलब्धियों की सूची में सबसे ऊपर है। हमने सभी नौकरियों में 33% आरक्षण की घोषणा की है और यह भी सुनिश्चित किया है कि महिलाएं प्रमुख प्रशासनिक और न्यायिक पदों पर हैं, वे कानून और व्यवस्था बनाए रखने में हितधारक हैं। उन्हें पुलिस या मजिस्ट्रेट के रूप में नामांकित करने का एक सचेत प्रयास किया गया है क्योंकि हम महिलाओं के खिलाफ अपराध को नियंत्रित करना और कानून व्यवस्था को मजबूत करना चाहते थे।”

सीएम के अनुसार त्रिपुरा में, स्थानीय निकायों में भी 50% सीटें और पद महिलाओं के लिए आरक्षित किए गए हैं। महिलाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा, राज्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग, सामान्य डिग्री कॉलेजों सहित सभी उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण और राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों में प्रवेश पाने वाली छात्राओं के लिए 3% ब्याज सबवेंशन योजना भी प्रदान करता है। यही नहीं, स्टार्टअप जैसी गतिशील योजनाओं के तहत महिला स्टार्ट-अप को प्रोत्साहित करने के लिए, राज्य सरकार द्वारा सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट के समर्थन से ₹ ​​2 करोड़ तक के संपार्श्विक मुक्त ऋण प्रदान करने के प्रयास किए जा रहे हैं और उद्यम पूंजी निधि में महिला उद्यमियों के लिए 50% धनराशि निर्धारित की जा रही है।

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चुनावों का केंद्र बनता जा रहा है महिलाओं का विकास

बताते चलें कि उत्तर प्रदेश, मणिपुर, गोवा और उत्तराखंड में फरवरी-मार्च में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा के अनुकूल परिणाम के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा महिला-केंद्रित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया था, जहां कहा गया था कि महिला मतदाताओं ने निर्णायक रूप से पार्टी के लिए मतदान किया था। मार्च में गुजरात पंचायत महासम्मेलन को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि पार्टी को महिलाओं से जबरदस्त समर्थन मिला है। अब जब नेता ही महिलाओं की भागीदारी को रेखांकित करने से नहीं चूक रहे हैं, तो उनके अनुयायी अर्थात् भाजपा शासित राज्यों की सरकारे इससे कैसे चूक सकती हैं।

यह भी सर्वविदित है कि जितनी महिला मतदाता अब निर्णायक भूमिका में मताधिकार का प्रयोग कर रही हैं, पीएम मोदी और भाजपा इस मुद्दे को भुनाने और अपने पक्ष में करने के लिए जुट चुकी है। सीएम बिप्लब देब तो एक झांकी हैं, धीरे-धीरे अब चुनावों का केंद्र महिलाओं का विकास होता जा रहा है जो महिलाओं के भविष्य को सुरक्षित करने की ओर अग्रसर है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि जात-पात वाली राजनीति के दिन अब लद गए हैं और अब काम तथा विकास पर मतदान होगा और राजनीतिक पार्टियों को भी उसी के अनुरूप चलना पड़ेगा।

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