भारत ने ऑस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौता कर चीन को एक बड़ा झटका दे दिया है

अब चीन की लंका लगनी तय है!

PM Modi and Morisson

Source- TFI

भारत चीन को बैक-टू-बैक कुछ झटके दे रहा है और अब भारत ने उसे सबसे बड़ा झटका दिया है। उस झटके का नाम है- “भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक मुक्त व्यापार सौदा।’’ दरअसल, बीते शनिवार को एक बड़ा बड़ी अंतरराष्ट्रीय घटना घटी जिससे चीन गहरे संकट और दुविधा में फंसने का खतरा पैदा हो गया है। चीन के दो प्रमुख शत्रु, भारत और ऑस्ट्रेलिया ने एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जो चीन को हाशिए पर रखकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के व्यापारिक चरित्र को बदल देगा। कैसे? चलिए, पता करते हैं।

भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों ने महसूस किया है कि उन्हें अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को चीन से दूर रखने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। हालांकि, दोनों देशों ने एक दशक की बातचीत के बावजूद एक मुक्त व्यापार सौदा हासिल करने में असमर्थ रहें। लेकिन शनिवार को ऑस्ट्रेलिया-भारत आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते पर आखिरकार दोनों देशों के व्यापार मंत्रियों ने एक वर्चुअल समारोह में हस्ताक्षर कर दिए। इस समारोह में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष स्कॉट मॉरिसन भी मौजूद थे। मॉरिसन के जल्द ही चुनावों में जाने और व्यापार समझौते को एक बड़ी कूटनीतिक जीत के रूप में पेश करने की उम्मीद है, इस तथ्य को देखते हुए कि इस पर हस्ताक्षर करने में पूरे एक दशक का समय लगा।

और पढ़ें: भारत और UAE के बीच हुआ बहुत बड़ा समझौता, अब पाकिस्तान को अपना भीख वाला ‘कटोरा’ भी बेचना पड़ेगा!

नवीनतम व्यापार सौदे का क्या महत्व है?

ऑस्ट्रेलिया के खनिज उद्योग, कृषि, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र और शराब उद्योग चीनी अर्थव्यवस्था पर निर्भर हैं। ये क्षेत्र चीन को निर्यात के माध्यम से अपने राजस्व का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त करते हैं। जब से चीन-ऑस्ट्रेलिया के संबंध खराब हुए हैं, चीनी ऑस्ट्रेलियाई सामानों पर प्रतिबंधों और अनुचित शुल्कों की धमकी दे रहे हैं। यह स्कॉट मॉरिसन सरकार के लिए चिंता का एक प्रमुख कारण बन गया है। हालांकि, भारत-ऑस्ट्रेलियाई मुक्त व्यापार सौदे ने स्कॉट मॉरिसन सरकार को बचा लिया। इसलिए, मॉरिसन सरकार अपने निर्यात उद्योग में विविधता लाना चाहती है। यह ऑस्ट्रेलिया की चीन पर निर्भरता कम करने की रणनीति का हिस्सा है। इस सौदे के तहत भारत द्वारा 85 प्रतिशत से अधिक ऑस्ट्रेलियाई सामानों से निर्यात पर शुल्क हटा देगा, जिसकी कीमत 9।4 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। भेड़ के मांस, ऊन, तांबा, कोयला, एल्यूमीनियम और ताजा ऑस्ट्रेलियाई रॉक लॉबस्टर से शुल्क हटा दिया जाएगा। इसी तरह अलौह धातुओं और महत्वपूर्ण खनिजों पर शुल्क भी समाप्त किया जाएगा।

वहीं, दूसरी ओर 96 फीसदी भारतीय सामान को भी ऑस्ट्रेलिया में शुल्क मुक्त मिलेगी। डील को और आगे बढ़ाया जाएगा। भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने भी कहा कि भारत ऑस्ट्रेलिया के साथ “त्वरित तरीके से” पूर्ण मुक्त व्यापार समझौते की दिशा में काम करना चाहता है। मॉरिसन ने कहा कि दुनिया के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश के साथ मुक्त व्यापार सौदा आज दुनिया में खुलने वाले सबसे बड़े आर्थिक दरवाजों में से एक का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए भारत ने ऑस्ट्रेलिया के लिए अपने निर्यात में विविधता लाने के लिए एक मंच बनाया है। इसका मूल रूप से मतलब है कि चीन को दरकिनार कर दिया जाएगा और भारत उसकी जगह ले लेगा।

और पढ़ें: ‘रूस-भारत के रिश्ते को कम न आंके’, भारत के लिए रूस और पश्चिमी देशों में तनाव

भारत ने चीन के व्यापार को बर्बाद किया

यह मुक्त व्यापार सौदा हिंद-प्रशांत क्षेत्र के व्यापारिक गतिविधियों में नेतृत्व की भूमिका निभाने के बीजिंग के सपने को भी ध्वस्त कर देता है। भारत ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से बाहर रहने का विकल्प चुना था, जो कि एक प्रकार का मेगा मुक्त व्यापार समझौता है जिसमें इस क्षेत्र की अधिकांश बड़ी शक्तियां शामिल हैं। चीन RCEP को नियंत्रित कर भारत को बाहर करना चाहता था और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में व्यापार का नेतृत्व करना चाहता था।

हालांकि, ऑस्ट्रेलिया के साथ अपने मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देकर भारत यह स्पष्ट कर रहा है कि वह इस क्षेत्र को चीन के हाथों में नहीं छोड़ने वाला है। RCEP के बावजूद, चीन ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापार युद्ध लड़ रहा है। यह क्षेत्र की अन्य दो बड़ी शक्तियों- जापान और दक्षिण कोरिया के साथ विवादों में भी फंसा हुआ है। भारत ने ऑस्ट्रेलिया से मुक्त व्यापार समझौता कर चीनी व्यापारिक वर्चस्व को तोड़ने की है और अब वह जापान, दक्षिण कोरिया और आसियान देशों के साथ अधिक मुक्त व्यापार सौदों की तलाश कर सकता है। RCEP कमोबेश निष्प्रभावी हो गया है।

Exit mobile version