भारतीय दवा उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रमुख योगदानकर्ताओं में से एक है और यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उद्योग है। भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग की सफलता का श्रेय निर्माण विकास में इसकी विश्व स्तरीय क्षमताओं, और अपने देश के लोगों की उद्यमशीलता की क्षमता को विश्वपटल पर दर्शाता है। भारत एक मिशन पर है और वह चीन को दवा उद्योग से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला से बाहर निकालना चाहता है और अपने नवीनतम कदम में, भारत ने चीन को उसको दवा उद्योग से बाहर कर दिया है। भारत दवाइयों का निर्माण तो करता था लेकिन एक लम्बे समय से भारत को कच्चे उत्पादों के लिए चीन पर निर्भर रहना होता था लेकिन अब यह स्थिति बदलने वाली है|
भारतीय दवा उद्योग और चीनी एपीआई निर्माता बहुत लंबे समय से युद्ध लड़ रहे हैं, और पूर्व में भारत अपने API निर्माण उद्योग को चीन के चलते नहीं बढ़ा पा रहा था लेकिन अब, सरकार के हस्तक्षेप से, हम इस लड़ाई को जीतने और निष्क्रिय एपीआई उद्योग को पुनर्जीवित करने और आत्मानिर्भर भारत की उपलब्धि में महत्वपूर्ण योगदान देने की उम्मीद करते हैं। वहीं API में आत्मनिर्भरता के साथ, भारत फार्मास्यूटिकल्स में वैश्विक नेता के रूप में अपनी स्थिति की पुष्टि करने में कामयाब हो जाएगा और भारत अब मेडिकल क्षेत्र में चीन को पटखनी देने के लिए पूरी तरह तैयार हो गया है।
भारत में API यानि सक्रिय औषधि सामग्री शुरू हो गया है
हाल ही में रसायन और उर्वरक मंत्री केंद्रीय मंत्री मनसुख मंडाविया ने खुलासा किया कि भारत में 35 सक्रिय दवा सामग्री का निर्माण शुरू हो गया है। अब तक भारत इन 35 एपीआई का आयात करता था और इसके लिए वह कमोबेश चीन पर निर्भर था। मंत्री ने कहा, “35 एपीआई का निर्माण 32 विभिन्न विनिर्माण संयंत्रों से किया जा रहा है। इससे आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा मिलेगा।” मंत्री ने यह भी कहा कि इस कदम से भारत को प्रमुख क्षेत्र में आयात पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।
मंडाविया ने कहा कि फार्मास्युटिकल क्षेत्र ने पीएलआई योजना को अच्छी प्रतिक्रिया दी है। कुल 53 एपीआई हैं और शेष 18 एपीआई का उत्पादन भी समय के साथ भारत में शुरू होने की उम्मीद है। आपको बताते चलें कि फार्मास्युटिकल क्षेत्र के लिए 15,000 करोड़ की पीएलआई योजना की घोषणा पिछले साल की गई थी। इस कदम का घोषित उद्देश्य “भारत से बाहर वैश्विक चैंपियन बनाना है जो अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करके आकार और पैमाने में बढ़ने की क्षमता रखते हैं और इस तरह वैश्विक मूल्य श्रृंखला में प्रवेश करते हैं”।
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सन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज, अरबिंदो फार्मा, डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज, ल्यूपिन, मायलन लैबोरेटरीज, सिप्ला और कैडिला हेल्थकेयर जैसी कुछ बड़ी नाम वाली 55 कंपनियां इस योजना के तहत प्रोत्साहन के लिए योग्य हैं। योग्य कंपनियों को प्रोत्साहन का भुगतान अधिकतम छह साल की अवधि के लिए किया जाएगा। भारत फार्मास्युटिकल क्षेत्र का सबसे बड़ा स्तम्भ है। इसका फार्मास्युटिकल्स उद्योग पिछले कई वर्षों से फलफूल रहा है। हालांकि, एपीआई की आयात निर्भरता देश के लिए चिंता का विषय रही है।
मांडविया ने उद्योग के प्रतिभागियों से स्थानीयकरण प्रभाव को बढ़ाने और घटकों के घरेलू निर्माण को गहरा करने की दिशा में ठोस प्रयास करने का आग्रह किया था। मंत्री ने उद्योग के खिलाड़ियों को इस क्षेत्र में आयात-निर्यात व्यापार अंतर को कम करने की दिशा में काम करने के लिए भी प्रोत्साहित किया।
भारत के लिए यह बड़ी समस्या रही है
गौरतलब है कि भारत में API के लिए 90 प्रतिशत आयात निर्भरता है जो इस क्षेत्र में कच्चे माल के रूप में काम करती है। कई भारतीय दवा निर्माता एपीआई की सोर्सिंग के लिए चीनी कंपनियों पर निर्भर हैं। अब, यह भारत के लिए दो तरह से समस्याग्रस्त था। सबसे पहले, चीन ने भारत को एपीआई की आपूर्ति के आधार पर भारतीय फार्मास्युटिकल क्षेत्र से भारी निर्यात लाभ कमाया और दूसरी बात, भारत की दवा कंपनियां असुरक्षित हो गईं और उसे हानि झेलना पड़ा। हम कभी नहीं जानते थे कि सीसीपी कब भारत को एपीआई की आपूर्ति बंद कर देगी और भारत में फलफूल रहे उद्योग को बर्बाद कर देगी। बिगड़ते चीन-भारत संबंधों और बढ़ते तनाव के साथ, चीन द्वारा एपीआई को नुक्सान पहुंचाने का भी व्यापक डर था क्योंकि चीन एक चालबाज और धोखेबाज़ देश है।
भारत हालांकि चीनी जाल से बचने में कामयाब रहा है। यह प्रभावी रूप से चीन को दवा क्षेत्र में स्वायत्तता बनाए रखने में मदद करता है। भारत का संदेश इस प्रकार स्पष्ट है कि यह अब चीन पर निर्भर नहीं रहेगा और सक्रिय रूप से सभी चीनी जाल से खुद को बाहर निकाल लेगा।
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