पाकिस्तान में सरकार बदल चुकी है और नए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भारत के साथ संबंध सुधारना चाहते हैं। इमरान खान के 4 वर्षों के कार्यकाल में भारत पाकिस्तान के संबंध बहुत खराब हुए हैं। इसका प्रत्यक्ष नकारात्मक प्रभाव पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर देखने को मिला है। इसलिए नई सरकार की मजबूरी भी है कि अर्थव्यवस्था की सेहत सुधारने के लिए वह भारत के साथ बातचीत के रास्ते पर आगे बढ़े और शाहबाज शरीफ के इस बयान के पीछे भी यही कारण है।
शाहबाज शरीफ ने कहा पाकिस्तान “भारत के साथ ‛शांतिपूर्ण और सहकारी’ संबंधों की तलाश में है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार शाहबाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई संदेश भेजा था। अपने पत्र में भारतीय प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने की मंशा प्रकट की थी। इसके उत्तर में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री द्वारा भारत के प्रधानमंत्री को पत्र भेजकर भारत के साथ संबंध सुधारने की बात स्वीकार की गई है।
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भारत-पाकिस्तान सबंध
कई ऐसे समीकरण है जिसके कारण यह पाकिस्तान की मजबूरी भी बन चुका है कि वह भारत के साथ अपने संबंध ठीक करें। सर्वप्रथम तो यही तथ्य है कि पाकिस्तान की सेना और सुरक्षा से जुड़ा थिंक टैंक भी यह समझ चुके हैं कि भारत अब एक वैश्विक शक्ति बन चुका है जिसके साथ पाकिस्तान बराबरी के स्तर पर प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता। हाल ही में पाकिस्तानी सेना द्वारा जारी की गई राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में भी यह बात स्वीकार की गई थी कि आर्थिक शक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटक है। सभी जानते हैं विश्व का कोई भी देश वर्तमान समय में भारत और चीन को दरकिनार करके आर्थिक रूप से सशक्त होने का सपना नहीं देख सकता।
पाकिस्तान को चीन पाक इकोनामिक कॉरिडोर से जो आर्थिक लाभ होने की उम्मीद थी वह भी पूरी नहीं होने वाली। CPEC की असफलता ने चीन और पाकिस्तान के आर्थिक संबंधों को कमजोर किया। इसके स्थान पर भविष्य में भारत और हमारे मित्र देशों द्वारा तैयार किए जा रहे नॉर्थ साउथ इकोनामिक कॉरिडोर के जरिए पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था सुधर सकती है।
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विदेश नीति पर सुधार
तीसरा पहलू यह भी है कि चीन का पाकिस्तान की विदेश नीति पर इस समय व्यापक प्रभाव है। वर्तमान में यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिम के देश रूस के विरुद्ध लामबंद हैं। रूस और चीन के बेहतर संबंधों और चीन तथा अमेरिका की आपसी प्रतिस्पर्धा के कारण रूस और चीन मिलकर दुनिया में पश्चिम के विरुद्ध एक अलग ध्रुव बना रहे हैं। भारत अभी निष्पक्ष है किंतु रूस के मुद्दे पर भारत और पश्चिमी देशों के सम्बंध में थोड़ा खिंचाव आया है। ऐसे में चीन को मौका मिला है कि पिछले दो वर्षों में भारत चीन संबंध में जो खटास आई है उसे ठीक करे। चीन का पिछलग्गू पाकिस्तान भी चीन के रास्ते पर ही चलेगा।
पाकिस्तान की मूलतः कोई स्वतंत्र विदेश नीति है ही नहीं कि पाकिस्तान की नीतियों पर सऊदी अरब और सहयोगी देशों, चीन और अमेरिका का प्रभाव पड़ता है। विदेश नीति के निर्धारण का एक बड़ा कारक होता आर्थिक हित। यह सभी अवयव पाकिस्तान को मजबूर कर रहे हैं कि वह भारत के साथ संबंध सुधारे। इसलिए शाहबाज शरीफ के कार्यकाल में पाकिस्तान सुधरने का प्रयास करेगा।
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किंतु भारत को पाकिस्तान की मूल प्रवृत्ति को नहीं भूलना चाहिए। इस्लामी कट्टरपंथी के विचार पर बना यह देश भारत के साथ कभी भी दीर्घकालिक शांति स्थापित नहीं कर सकता। वैश्विक आतंकवाद की नर्सरी पाकिस्तान अपनी मूल प्रवृत्ति में भारत विरोधी है। पाकिस्तान में प्रभावी आतंकी समूह मुगल मानसिकता से ग्रसित है और आज भी दिल्ली पर कब्जे का सपना देखते हैं। संसार में शक्ति की पूजा होती है, गोस्वामी तुलसीदास ने सुंदरकांड में लिखा है, ‛भय बिनुहोइ न प्रीति’, भारत की पाकिस्तान नीति का सारतत्व यही पंक्ति होनी चाहिए।