पाम ऑयल के निर्यात पर इंडोनेशिया का प्रतिबंध भारत के लिए वरदान साबित हो सकता है

इसके एक नहीं कई कारण हैं!

Palm Oil

Source- TFI

किसी ने क्या खूब कहा है,
“समस्या नहीं होती, होता है तो सिर्फ अवसर!”

जिसे आप अपने लिए संकट समझ रहे हो, वो आपके लिए क्या पता किसी वरदान से कम न हो। पाम ऑयल के संदर्भ में भी भारत में स्थिति कुछ ऐसी ही है। लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इंडोनेशिया द्वारा पाम ऑयल के निर्यात पर लगाया प्रतिबंध भारत के लिए एक अप्रत्याशित वरदान से कम नहीं।

दरअसल, पाम ऑयल एक बार फिर से चर्चा में है। पिछली बार पाम ऑयल के निर्यात पर मलेशिया के बड़बोले राष्ट्राध्यक्ष महातिर मोहम्मद ने प्रतिबंध लगवाया था, ताकि भारत को वह ‘सबक सिखा सके!’ यह अलग बात है कि बाद में जनाब अपनी ही सत्ता से हाथ धो बैठे! भारत अपनी पाम ऑयल की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु मलेशिया से इंडोनेशिया स्थानांतरित हो गया और वहां से पाम ऑयल आयात करने लगा। परंतु इस बार इंडोनेशिया ने भी तय कर लिया है कि वह पाम ऑयल का निर्यात नहीं करेगा, बस इसके लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत दोषी नहीं है।

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निर्यात पर प्रतिबंध के पीछे हैं ये कारण

असल में इंडोनेशिया द्वारा पाम ऑयल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के पीछे का प्रमुख कारण है इस दक्षिण एशियाई देश में खाद्य तेलों की उपलब्धता में भारी कमी एवं कीमतों में भारी उछाल। यूं तो इंडोनेशिया पाम ऑयल का सबसे बड़ा उत्पादक है, परंतु इसके दाम रूस-यूक्रेन झड़प के पश्चात आसमान छूने लगे हैं। चूंकि भारत भारी मात्रा में इंडोनेशिया से पाम ऑयल इम्पोर्ट करता आया है, इसलिए यह निर्णय उसके लिए कष्टकारी सिद्ध हो सकता है। प्रतिवर्ष भारत 8-8.5 मिलियन टन पाम ऑयल इम्पोर्ट करता है, जो वैश्विक अनुपात में सर्वाधिक है और इसमें लगभग 45 प्रतिशत केवल इंडोनेशिया से आता है। कहने को भारत मलेशिया से पुनः पाम ऑयल इम्पोर्ट कर सकता है, परंतु सत्ता परिवर्तन पर स्थिति भारत के अनुकूल बनी रहे, क्या इसकी कोई गारंटी है?

लेकिन पाम ऑयल इतना महत्वपूर्ण है? ये तेल अपने आप में काफी महत्व रखता है, क्योंकि यह बहुपयोगी तेल है, जिसका प्रयोग खाद्य उत्पाद, डिटर्जेंट, कॉस्मेटिक, बायोफ्यूल, साबुन, शैंपू, नूडल्स, बिस्कुट, चॉकलेट इत्यादि में किया जाता है। पार्ले प्रोडक्टस के सीनियर कैटेगरी हेड मयंक शाह बताते हैं कि “यह (चुनौती) सिर्फ कंपनियों के लिए नहीं अपितु FMCG उत्पाद बनाने वाली कंपनियों के लिए भी है, क्योंकि पाम ऑयल से कई कंपनियों का काम निकलता है। तो ये निस्संदेह एक चुनौतीपूर्ण कार्य होने वाला है।”

भारत में पाम ऑयल का उत्पादन

ऐसे में भारत के पास जो विकल्प है, वह है आत्मनिर्भरता। इसकी ओर कोई संकेत देते हुए पिछले वर्ष अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में पीएम नरेंद्र मोदी ने उन क्षेत्रों में पाम ऑयल के उत्पादन को बढ़ावा देने पर जोर दिया था, जहां पर भारी वर्षा होती है, क्योंकि पाम ऑयल का पैदावार ऐसे ही क्षेत्रों में बेहतर होता है। इसके लिए भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र सबसे उपयुक्त है, क्योंकि वह उपजाऊ भी है और वहां वर्षा की कोई कमी भी नहीं है। असम के गोलपुरा और कामरूप जिले तो पाम ऑयल उत्पादन में पहले से ही संलिप्त है, परंतु अब इस क्षेत्र को और बढ़ाना पड़ेगा।

भारत पाम ऑयल उत्पादन के परिप्रेक्ष्य में 3 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उत्पादन करता है और National Mission on Edible Oils – Oil Palm के अंतर्गत 2025-26 तक इस क्षेत्र को 650000 हेक्टेयर तक बढ़ाने तक है, जिसके अंतर्गत क्रूड पाम ऑयल का उत्पादन 2030 तक 28 लाख टन बढ़ाने का है। इससे भारत न केवल पाम ऑयल क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा, अपितु आने वाले समय में उसे इंडोनेशिया या अन्य देशों पर अपनी आवश्यकताओं के लिए अत्यधिक निर्भर होने की गुंजाइश नहीं होगी।

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