सनातन संस्कृति पुनः जागृत हो रही है और इसका प्रमाण है स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सात दर्शकों से अधिक समय तक जो मंदिर सरकारी नियंत्रण में रहा करते थे, अब वह भक्तों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं। कर्नाटक और उत्तराखंड में यह निर्णय हो चुका है और अब आंध्र प्रदेश भी इस मार्ग पर आगे बढ़ रहा है। हाल ही में हाई कोर्ट द्वारा एक निर्णय सुनाया गया है जिसके बाद यह अटकलें शुरू हो गई है कि आंध्र प्रदेश में भी मंदिर सरकारी नियंत्रण से मुक्त होंगे। 1 अप्रैल 2022 को, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि मंदिर के भक्तों को मंदिर चलाने के तरीके में अपनी बात रखने का अधिकार है। न्यायमूर्ति आर रघुनंदन राव की पीठ ने आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में श्री महाकाली अम्मावरी मंदिर के प्रस्तावित पुनर्निर्माण के खिलाफ येल्लंती रेणुका द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
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जानें क्या है पूरा मामला?
अपनी याचिका में येल्लंती रेणुका ने आरोप लगाया था कि श्री महाकाली अम्मावरु मंदिर में देवता को उनकी मां ने एक खाली जगह पर स्थापित किया था, जो उनकी थी। यह 1976 में वैदिक विद्वानों और पुरोहितों द्वारा प्रतिष्ठित किया गया था, जिन्होंने प्रासंगिक आगम शास्त्रों का पालन करते हुए संस्कार और अनुष्ठान किए थे। तब इसके बाद मंदिर को और विकसित किया गया। येल्लंती रेणुका ने मंदिर और देवता की स्थापना में अपनी मां और एक अन्य व्यक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने तर्क दिया था कि उन्हें मंदिर के वंशानुगत ट्रस्टी के रूप में माना जाना चाहिए।
विवाद तब शुरू हुआ जब मंदिर प्रबंधन ने मंदिर के पुनर्निर्माण का कदम उठाया और बंदोबस्ती विभाग के अधिकारियों को सूचित कर प्रक्रिया शुरू की। येल्लंती रेणुका और मंदिर के अन्य संस्थापक सदस्यों ने मंदिर के पुनर्निर्माण के फैसले का विरोध किया। हालांकि, मंदिर प्रबंधन अधिकारियों ने मंदिर के पुनर्निर्माण के प्रस्ताव पर अमल करने का फैसला किया और इसके लिए भक्तों से चंदा इकट्ठा करना शुरू कर दिया। येल्लंती रेणुका ने तब उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए कहा, “मंदिर के उक्त पुनर्गठन/पुनर्निर्माण की अनुमति नहीं दी जा सकती है और ऐसी कोई भी कार्रवाई भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन होगी।”
मंदिर प्रबंधन में सुनिश्चित होगी भक्तों की भागीदारी
येल्लंती रेणुका ने मंदिर से अपने पारिवारिक जुड़ाव के आधार एवं मंदिर में होने वाले विभिन्न क्रियाकलापों में अपनी उपस्थिति के आधार पर कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखा। अदालत ने कहा कि “आंध्र प्रदेश चैरिटेबल हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1987 की धारा 2(18)(बी) में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जो सेवा, दान या पूजा के कार्य में भाग लेने का हकदार है या (ऐसा करना) उसकी आदत है। संस्था से जुड़ा, ‘रुचि रखने वाला व्यक्ति’ (person having interest) होगा।”
अर्थात् जो व्यक्ति मंदिर के पूजा कार्य में भाग लेता है, दान अथवा सेवाकार्य करता है, उसका भी मंदिर के निर्णय पर अधिकार (Stake) है। क्योंकि ‛Person having interest’ को कानून संहिता में परिभाषित नहीं किया गया है इसलिए कोर्ट ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा, यह इस तथ्य की मान्यता है कि किसी मंदिर के भक्तों को एक संस्था या मंदिर चलाने के तरीके में अपनी बात रखने का अधिकार है और यह नहीं कहा जा सकता है कि रुचि रखने वाले ऐसे व्यक्तियों को, कुप्रबंधन की या पूजा के तरीकों या आवश्यक धार्मिक प्रथाओं का उल्लंघन की शिकायत होने पर, इस अदालत से संपर्क करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
आंध्र प्रदेश कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोई भक्त प्रथाओं के उल्लंघन, मंदिर के कुप्रबंधन अथवा शास्त्रीय पद्धति से पूजा संपन्न न होने की स्थिति में कोर्ट से शिकायत कर सकता है। ऐसे में अब इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट का यह निर्णय, मंदिर प्रबंधन में भक्तों की भागीदारी सुनिश्चित करने वाला है। यह मंदिरों की मुक्ति की नींव बन सकता है। आवश्यकता है मंदिरों की मुक्ति के लिए व्यापक आंदोलन की!