क्या बिहार में नीतीश युग का अंत हो गया है?

नीतीश को हो चुका है अपनी हैसियत का एहसास!

Nitish Kumar

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भारतीय राजनीति में किसी नेता के प्रादुर्भाव में जितना समय लगता है, उससे काफी कम समय उसके विलुप्त होने या यूं कहें कि उसकी लंका लगने में लगती है। भारतीय राजनीति में राजनीतिक जीवन जीने की जो कला हमारे नेताओं में है, वो विरले ही किसी में देखने को मिलती है। उनके लिए कुर्सी का मोह ऐसा कि सब छूट जाए पर कुर्सी न छूट पाए। और जब बात बिहार की राजनीति की हो, तो ऐसे कई नेताओं के उदाहरण देखने को मिल जाएंगे। फिर चाहे कुर्सी गर्म करने के आदी हो चुके आरजेडी नेता हो या अन्य दलों के नेता। हालांकि, राज्य की सत्ता को अपनी बपौती समझने वाले राजनेता अब अपनी स्थिति और हैसियत का अनुमान लगा चुके हैं कि उनकी सियासी पारी कितनी लंबी चलेगी। अगर हम बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बात करें तो उनके हालिया बयानों से यह प्रतीत हो रहा है कि वो अब बिहार की राजनीति को टाटा-बाय-बाय कर अपने राजनीतिक सफर के उस अंतिम पड़ाव पर पहुंच गए हैं, जहां कथित तौर पर कोई भी राजनेता अमूनन अपने राजनीतिक सफर को पूर्णविराम लगाने जाते हैं, वो स्थान है संसद या उच्च सदन! नीतीश के हालिया बयान इस बात की तस्दीक करते हैं कि बिहार में नीतीश युग का अंत हो गया है।

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नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षाएं…

बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार का 17 साल का समय बीत चुका है। 2020 के विधानसभा चुनावों में JDU को झटका कुछ इस प्रकार लगा कि भाजपा NDA गठबंधन में सबसे अधिक सीटें जीतने में सफल रही। हालांकि, JDU की कम सीटें होने के बावजूद भाजपा ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाकर अपने बड़े भाई होने का परिचय दिया। भाजपा ने एनडीए गठबंधन में सबसे अधिक 74 सीटें होने के बावजूद नीतीश को ही अपना नेता माना। अब राजनीतिक माहौल बदल गया है, VIP के तीनों विधायक भाजपा में शामिल हो गए हैं, जिसके बाद बिहार में 77 विधानसभा सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में अपना नाम इंगित करा चुकी है।  ऐसे में निश्चित रूप से भाजपा का भी यह ध्येय होगा कि अभी नहीं तो कभी नहीं और इसलिए अब भाजपा राज्य में अपना मुख्यमंत्री बनाने के मूड में दिख भी रही है।

दरअसल, नीतीश कुमार ने मीडिया से कहा है कि वह भी किसी समय राज्यसभा के सदस्य बनना चाहते हैं। वह अब तक बिहार विधानसभा, विधान परिषद और लोकसभा के सदस्य रह चुके हैं बस राज्यसभा नहीं पहुंचे हैं। ऐसी में दो सूरतों में ही नीतीश की यह मनोकामना पूरी हो सकती है या तो राज्यसभा सदस्य के तौर पर राज्यसभा जाकर या लंबे समय से दिल में चली आ रही राष्ट्रपति बनने की कसक के वैकल्पिक रूप में उपराष्ट्रपति बनकर उनका यह स्वप्न पूर्ण हो सकता है, क्योंकि राज्यसभा के सभापति देश के उपराष्ट्रपति ही होते हैं। इसी कड़ी में नीतीश के दोनों हसीन सपने साकार तो हो जाएंगे पर उस राजनीतिक कालखंड और विरासत का भी अंत हो जाएगा, जिसको संजोकर नीतीश कुमार अब तक बिहार में चले आ रहे थे। इसे नीतीश कुमार के राजनीतिक सफर और बिहार में नीतीश युग के अंत के रूप में भी देखा जा सकता है।

भाजपा शीघ्र ही अपने पत्ते खोलना प्रारंभ करेगी

ध्यान देने वाली बात है कि बीते दिन गुरूवार को नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा में अपने कार्यालय में पत्रकारों से हो रही अनौपचारिक वार्ता में उनसे कहा कि वह भी किसी समय राज्यसभा के सदस्य बनना चाहते हैं। मीडिया के साथ एक अनौपचारिक बातचीत में की गई इस टिप्पणी ने सियासी पारा चढ़ाने के साथ ही अटकलों का बाजार गरम कर दिया है। चूंकि नीतीश कुमार, 17 साल से अलग-अलग अंतराल में मुख्यमंत्री रहे हैं और अब वो एक नई भूमिका के लिए इच्छुक हैं। नीतीश कुमार से जब यह पूछा गया कि क्या वह नालंदा से लोकसभा चुनाव लड़ने पर विचार कर रहे हैं, क्योंकि हाल ही में नीतीश ने उस इलाके में बाढ़ प्रभावित कई क्षेत्रों का दौरा किया था। इसपर जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि “यह मेरा बिलकुल निजी दौरा है, 2 साल तक कोरोना काल के कारण मैं नहीं जा पाया था, इसलिए वहां जा रहा हूं। लोगों से मिल रहा हूं, समस्याएं सुन रहा हूं और लोकसभा चुनाव लड़ने का इरादा नहीं है।”

हालांकि, अब नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा राज्यसभा जाने की है, तो भाजपा अपने पत्ते खोलना शीघ्र ही प्रारंभ करेगी, क्योंकि इस लिहाज से अब भाजपा अपना मुख्यमंत्री बनाने का प्रयास ही नहीं बल्कि डंके की चोट पर अपनी पार्टी के ही नेता को मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश करेगी। चूंकि नीतीश एक ओर अपनी महत्वकांक्षा लिए बैठे हैं तो अपने राजनीतिक सफर को एक साफ़ और स्वच्छ विदाई देने के लिए वो हर उस अनुबंध के लिए तैयार हो जाएंगे, जो उनकी महत्वकांक्षा की पूर्ति करता हो। अंततः अब यह घटनाक्रम बिहार में नीतीश युग का अंत करने वाला है।

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