देश में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में लगभग समाप्त हो चुकी कांग्रेस के सामने अब दोहरी चुनौती है – अस्तित्व का संकट और पंजाब में आप की शानदार जीत के बाद विपक्षी खेमे के नेता के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखना। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस के लिए 2024 के चुनावों की राह और कठिन होती जा रही है क्योंकि यह एक ऐसी पार्टी है जो “आईसीयू में” है और इसे त्वरित समाधान के साथ पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता है।
आप की पंजाब की जीत ने इसे प्रमुख राज्य सरकारों के मामले में कांग्रेस के बराबर ला दिया है। कांग्रेस अब केवल राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपने दम पर सत्ता में रह गई है और महाराष्ट्र और झारखंड में गठबंधन सरकारों में एक जूनियर खिलाड़ी है। G 23 नेताओं के कुछ समूह के साथ कांग्रेस खेमे में असंतोष और “परिवर्तन” की बात शुरू हो गई है, जिन्होंने पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी को पत्र लिखकर बड़े पैमाने पर चुनाव पर चिंता व्यक्त करते हुए एक संगठनात्मक बदलाव की मांग की।
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आप ने पंजाब जीत के साथ यूपीए की बढाई मुश्किलें
ऐसा इसलिए प्रतीत हो रहा है क्योंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन मेजबानी की और उन्हें विकास के कथित दिल्ली मॉडल का प्रदर्शन करने के लिए सरकारी स्कूलों और मोहल्ला क्लीनिकों तक ले गए। दोनों नेताओं के बीच अजीबोगरीब मिलन ने अटकलों को हवा दी कि आप और द्रमुक भविष्य में तीसरा मोर्चा में शामिल होने के लिए साझा आधार की तलाश कर रहे थे।
जबकि पहले कोई भी गठबंधन यूपीए की व्यापक छत्रछाया में बनता था, यह तथ्य कि राजनीतिक हलकों में किसी ने भी यूपीए का उल्लेख नहीं किया है, यह बताता है कि क्षेत्रीय राजनीतिक दल भी यूपीए को छोड़ आगे बढ़ गए हैं। पिछले महीने 10 मार्च को पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे घोषित किए गए थे। बीजेपी ने चार राज्यों में जीत हांसिल की थी, वहीं आम आदमी पार्टी (आप) ने कांग्रेस की सरकार हरा कर राज्य से जड़ से उखाड़ फेंका।चुनावी राज्यों में से हर एक में कांग्रेस का सफाया हो गया था। प्रियंका और राहुल गाँधी की जोड़ी पूरी तरह फ्लॉप हो गई।
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यूपीए को दरकिनार करने की कोशिश में ममता और टीएमसी
और यह केवल AAP या केजरीवाल ही नहीं है जो कांग्रेस की जगह लेने की कोशिश रहे हैं। ममता बनर्जी के पिछले साल मई में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव जीतने के बाद, उन्होंने कांग्रेस के विकल्प के रूप में अपना दावा पेश करने के लिए देश के बड़े राज्यों में दौरा शुरू किया।
ममता की महत्वाकांक्षाएं दिल्ली की सत्ता पर है और उन्होंने कई बार संदेश दिया कि अन्य क्षेत्रीय पार्टी खुद को यूपीए तक सीमित नहीं रखना चाहती है।
ममता ही नहीं अब के चंद्रशेखर राव और जगन मोहन रेड्डी जैसे अन्य क्षेत्रीय नेताओं ने दक्षिणी राज्यों में अपना गढ़ बनाया है। कांग्रेस कहीं भी समीकरण में नहीं है और अगर यही सिलसिला जारी रहा तो ये दोनों यूपीए को राष्ट्रीय स्तर पर कमज़ोर करने का प्रयास करेंगे।
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कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाती आप
कांग्रेस को यह महसूस करना चाहिए कि आम आदमी पार्टी जिस भी राज्य में पैठ बनाती है उससे सबसे ज्यादा कांग्रेस को नुक्सान उठाना पड़ा है जैसे दिल्ली और पंजाब में आप ने कांग्रेस से सत्ता छीन लिया। आज के परिदृश्य में क्षेत्रीय पार्टिया कांग्रेस को भाव नहीं दे रही है उससे यह साफ़ प्रतीत हो रहा है की आने वाले समय में तीसरा मोर्चा बना कर यह पार्टियां कांग्रेस को भारतीय राजनीति से विलुप्त कर देंगी।