कागज़ तो दिखाने पड़ेंगे से लेकर बोरिया बिस्तर बांध लो, वी हैव कम आ लॉन्ग वे। मज़ाक से इतर यह बात बेहद संजीदा और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका सरोकार देश की सुरक्षा, संसाधनों पर अधिकार और जमीन के मालिकाना हक से है जिसे घुसपैठिए अब तक अपनी बपौती समझते रहे।
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कोर्ट ने उठाया है बहुत बड़ा कदम
यह भारत और उसके राज्यों के लिए दुःख की बात है कि 1947 के बाद से शरणार्थी बनकर जिन्होंने देश में कदम रखा आज उन्होंने मूल भारतीयों की हालत शरणार्थी से बदतर कर दी है। यह वो सहिष्णुता है जिसे जम्मू और कश्मीर में गुपकार गैंग ने यासीन मलिक जैसे देशद्रोहियों के साथ प्रसारित किया। वहीं न्यायलय ने चले आ रहे इन सभी मिथकों को तोड़ दिया और उन सभी अवैध घुसपैठियों की जांच बैठानी शुरू कर दी है।
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने केंद्र शासित प्रदेश(जम्मू-कश्मीर) में अवैध रूप से रह रहे म्यांमार और बांग्लादेश के अप्रवासियों की पहचान करने के लिए सरकार को छह सप्ताह का समय दिया है। जिसके बाद रोहिंग्या मुद्दे पर जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने पूरे देश के लिए एक मिसाल कायम की है और आगामी निर्णयों और कदमों के लिए अन्य प्रदेशों के लिए जानकारी का स्त्रोत बन गया है।
बुधवार को मुख्य न्यायाधीश पंकज मिथल और न्यायमूर्ति मोक्ष खजूरिया काजमी की पीठ ने ऐसे अवैध अप्रवासियों के निर्वासन की मांग करने वाले वकील हुनर गुप्ता द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर आदेश पारित किया। “हम गृह सचिव, जम्मू-कश्मीर, केंद्र शासित प्रदेश को इस मामले पर विचार करने और सभी अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए एक तंत्र विकसित करने और उनकी पहचान करने के बाद एक सूची तैयार करने का निर्देश देते हैं। पीठ ने पिछले सप्ताह अपने आदेश में कहा, “उक्त अभ्यास को छह सप्ताह की अवधि के भीतर सबसे शीघ्रता से किया जा सकता है।”
सरकारी आंकड़ें क्या कहते हैं
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, रोहिंग्या और बांग्लादेशी नागरिकों सहित 13,700 से अधिक विदेशी जम्मू और कश्मीर के जम्मू और सांबा जिलों में बसे हैं, जहां 2008 और 2016 के बीच उनकी आबादी में 6,000 से अधिक की वृद्धि हुई है।
पिछले वर्ष मार्च में ऐसे सभी तत्वों के वेरिफिकेशन के अभियान के दौरान जम्मू शहर में अवैध रूप से रह रहे 200 से अधिक रोहिंग्या, म्यांमार के एक बंगाली-बोली बोलने वाले मुस्लिम को कठुआ के एक होल्डिंग सेंटर में बंद कर दिया गया था क्योंकि उक्त व्यक्ति अवैध रूप से सीमा पार कर देश में दाखिल हुए थे। तब सत्यापन करने के लिए UNHRC के कार्ड को आधिकारिक दस्तावेज मान उसके आधार पर लोगों का सत्यापन किया गया और उन्हें कोई अधिक कार्रवाई या प्रक्रियाओं में डालकर परेशान नहीं किया गया।
ऐसे में सरकार की भी मंशा यही है कि जो वैध हैं उन्हें कोई हानि नहीं होगी पर जो गलत मंशा पाल अवैध रूप से देश के भीतर दाखिल होते हैं उन्हें निपटाना बेहद आवश्यक है क्योंकि इन्हीं में से कल को कोई अबु सालेम, अफ़ज़ल गुरु और यासीन मालिक बन देश और राज्य की हालत दयनीय कर देते हैं, जिसका एकमात्र उद्देश्य होता है कट्टरपंथ का फैलाव।
महबूबा मुफ़्ती और अन्य पार्टियों की सरकारों में हज़ारों रोहिंग्या मुसलमानों को जम्मू-कश्मीर में मात्र एक ही उद्देश्य से दाखिल कराया गया क्योंकि इन नेताओं की सहानुभूति हमेशा से उन्हीं के प्रति रही है, भारतीय और गैर मुसलमान उन्हें काटने को दौड़ते हैं। अब जब न्यायलय इन सभी तथ्यों की जांच कर रहा है तो दूध का दूध और पानी का पानी भी हो जाएगा क्योंकि इन सभी नेताओं की संलिप्तता ने ही जम्मू-कश्मीर को देश के स्वर्ग से देश के तनावपूर्ण क्षेत्र की संज्ञा के साथ लाद दिया जो वाकई में शर्मनाक है।
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‘वास्तविक आंकड़े आधिकारिक आंकड़ों से कहीं अधिक’
याचिकाकर्ता ने कहा कि वास्तविक आंकड़े आधिकारिक आंकड़ों से कहीं अधिक थे। यह प्रस्तुत किया गया था कि 1982 में म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को गैर-राष्ट्रीय घोषित कर दिया, जिसके कारण उनका पड़ोसी बांग्लादेश, थाईलैंड और यहां तक कि पाकिस्तान में प्रवास हुआ। “हालांकि, इन देशों में उनका स्वागत नहीं किया गया और इससे बांग्लादेश के साथ झरझरा सीमा के माध्यम से भारत में उनका आगमन हुआ।
लगभग 1,700 रोहिंग्या परिवार जिनमें लगभग 8,500 लोग हैं (आधिकारिक आंकड़े 1,286 और 5,000 हैं) जम्मू और कश्मीर की विभिन्न बस्ती कॉलोनियों में रहते हैं। भू-माफिया राज्य की भूमि, विशेष रूप से वन क्षेत्रों के साथ-साथ जल निकायों पर अतिक्रमण करने के लिए, बांग्लादेश और म्यांमार के इन अवैध अप्रवासियों को वन क्षेत्रों और जल निकायों के पास बसाते हैं। यह प्रस्तुत किया गया है कि बांग्लादेश और म्यांमार के कई अवैध प्रवासियों ने अवैध रूप से राशन कार्ड, वोटर कार्ड, आधार कार्ड और साथ ही स्थायी निवासी प्रमाण पत्र हासिल कर लिया है।
याचिकाकर्ता के अनुसार, उन पर राष्ट्र के दुश्मनों के इशारे पर विभिन्न राष्ट्र विरोधी गतिविधियों जैसे मादक पदार्थों की तस्करी, हवाला लेनदेन आदि में शामिल होने का संदेह था। “बांग्लादेश और म्यांमार के अवैध प्रवासियों के कारण, जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों के साथ-साथ भारत विरोधी गतिविधियों में वृद्धि होगी, विशेष रूप से सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील जम्मू क्षेत्र में, जिसने अब तक परिपक्वता और सहिष्णुता प्रदर्शित की है। इन अप्रवासियों को उनके मूल स्थानों पर स्थानांतरित करने के लिए उत्तरदाताओं को तत्काल और आवश्यक दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है।”
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ब्रह्मास्त्र चलाना बहुत आवश्यक है
इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायलय ने केंद्र शासित प्रदेश के गृह सचिव आरके गोयल को म्यांमार और बांग्लादेश के अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए एक तंत्र विकसित करने और उनकी पहचान करने के बाद एक सूची तैयार करने का निर्देश दिया है। जिसके साथ ही अन्य प्रदेशों और विशेषकर जिनकी सीमा पड़ोसी देशों से लगती है उन सभी के लिए द्वार खुल गए हैं कि वो अवैध प्रवासियों की विरुद्ध अब No Tollerance Policy का ब्रह्मास्त्र चला ही दें जो आज के समय की मांग और देश के भीतर हो रही अंदरूनी टूट का एकमात्र समाधान है।