गुजरात में कांग्रेस की ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकती है खंभात हिंसा और पटेलों की नाराजगी

गुजरात में भी अपनी अंतिम सांसे गिन रही है कांग्रेस पार्टी!

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Source- TFI

देश की सबसे बयोवृद्ध पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपनी पतन की तरफ बढ़ चुकी है। कांग्रेस की आज वो हालत हो चुकी है कि उसके भरोसेमंद नेताओं ने भी पार्टी छोड़ दिया। कांग्रेस की पतन का सबसे प्रमुख कारण है जमीनी नेताओं को दरकिनार करना और उसका हिन्दुओं के मुद्दों को अनदेखा करना। यही विरोध फिर एक बार गुजरात में देखने को मिला, जब पिछले दिनों रामनवमी पर आनंद जिले के खंभात क्षेत्र में हिंदुओं द्वारा प्रभु राम का जन्मदिन मनाते हुए शोभायात्रा निकाला गया। यह शोभा यात्रा जब एक मस्जिद के पास से गुजरी तो उसपर पथराव किया गया और करीब 7-8 दुकानों में आग लगा दी गई।

ऐसी ही एक अन्य घटना में गुजरात के हिम्मतनगर में रामनवमी के शोभायात्रा पर पथराव किया गया। इस घटना लेकर राज्य प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि राज्य में शांति और सद्भाव को बाधित करने की कोशिश करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि अब इस मामले पर राजनीति शुरू हो गई है और कांग्रेस पार्टी खंभात हिंसा के दंगाइयों का समर्थन करने के साथ-साथ उनपर की जा रही कार्रवाई का विरोध कर रही है। कांग्रेस ऐसा कर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम कर रही है और उसकी यही गलती आने वाले गुजरात विधानसभा में पार्टी का सूपड़ा साफ कर सकती है।

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गुजरात में तय है कांग्रेस का बिखरना

हिंदु विरोध के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी शुरू से ही अपने जमीनी स्तर के नेताओं को दरकिनार करते आई है। उन्हें राज्य में पंख फैलाने से पहले ही उनके पर कतर दिए जाते हैं। गुजरात की सियासत का एक बड़ा रास्ता पटेल समाज की ओर से होकर गुजरता है, लेकिन अपने कर्मकांडों के लिए मशहूर कांग्रेस पार्टी पटेलों को भी साइडलाइन करने में कोई कसर नहीं छोड़ती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य में चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, कांग्रेस का अभियान वहां से आगे ही नहीं बढ़ रहा है, जहां से उसने छोड़ा था। दिवंगत दिग्गज कांग्रेस नेता अहमद पटेल के बेटे फैसल पटेल की दुविधा, पाटीदार नेता हार्दिक पटेल की बेचैनी और प्रभावशाली विधायक इंद्रनील राजगोपाल का आगे बढ़ना, यह सभी उन चुनौतियों की ओर इशारा करते हैं, जिनका सामना आम तौर पर भाजपा को बढ़त देने वाले राज्य में कांग्रेस के सामने है।

इस साल के अंत में होने वाले गुजरात चुनाव में कांग्रेस की संभावनाओं को बड़ा झटका देते हुए हाल ही में गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने पार्टी में “अलग-थलग” किए जाने पर नाराजगी व्यक्त की थी। जिसके बाद उनके कांग्रेस छोड़ने की अटकलें भी लगने लगी थी। गुजरात में सत्तारूढ़ भाजपा के साथ आमने-सामने की लड़ाई के लिए कांग्रेस की तैयारी के बीच हार्दिक पटेल ने अपने पार्टी नेतृत्व पर उन्हें नजरअंदाज करने और उन्हें दरकिनार करने का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि गुजरात कांग्रेस के नेता उन्हें परेशान कर रहे हैं और चाहते हैं कि वह पार्टी छोड़ दें।

हार्दिक ने कहा, “मुझे इतना परेशान किया जा रहा है कि मुझे इसका बुरा लग रहा है। गुजरात कांग्रेस के नेता चाहते हैं कि मुझे पार्टी छोड़ देनी चाहिए।” उन्होंने कहा कि वह गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। इसके बावजूद उन्हें कोई काम नहीं दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें महत्वपूर्ण बैठकों में शामिल होने के लिए नहीं बुलाया जाता है। किसी निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनाया जाता है।

जल्द ही इतिहास बन जाएगी कांग्रेस

आपको बता दें कि हार्दिक पटेल ने 2015 में गुजरात में आरक्षण के लिए शक्तिशाली पाटीदार आंदोलन का नेतृत्व किया था। वह 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में शामिल हो गए । उनकी लोकप्रियता कम हो रही थी, इसलिए कथित तौर पर उन्होंने खुद को राजनीति से अलग कर लिया था। हालांकि, पार्टी ने 2017 के गुजरात चुनाव में लाभ कमाया, लेकिन पाटीदार समुदाय ने 2019 के लोकसभा  चुनाव या स्थानीय निकाय चुनावों में पार्टी का समर्थन नहीं किया। वर्ष 2017 में, राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने गुजरात में 77 सीटें जीती पर भाजपा को हराने में नाकाम रही।

हिंदुओं की आस्था पर हमला करने वालों का समर्थन और हार्टिक पटले के बगावती सुर गुजरात कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकते हैं। वैसे देखा जाए तो चुनावी राज्यों में चुनाव से कुछ महीनें पहले कांग्रेस की राज्य इकाई में फूट पड़ना अब आम बात हो चुकी है। पंजाब चुनाव से पहले पंजाब कांग्रेस की स्थिति पूरे देश ने देखी और पार्टी को उसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा था। गोवा में भी वही हुआ। अब हिमाचल में भी कांग्रेस पार्टी के नेता अब भाजपा और आम आदमी पार्टी की ओर बढ़ चुके हैं। ऐसे में अगर गुजरात कांग्रेस के शीर्ष नेता बगावत करते हुए अन्य पार्टियों को रूख करें तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। कांग्रेस पार्टी को अगर अस्तित्व में बचे रहना है तो उसे अपने हिंदू विरोधी और ‘तानाशाही’ रवैये से बाहर निकलना होगा, वरना वो दिन दूर नहीं जब यह पार्टी इतिहास बन जाएगी।

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