2019 में जब विदेश मंत्रालय का पद रिक्त हुआ, तो सबका ध्यान इसी बात पर था कि सुषमा स्वराज की कमी को कौन पूरी करेगा। ऐसे में जब पीएम नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि सुब्रह्मण्यम जयशंकर अब भारत के विदेश मंत्री होंगे, तो तालियों से अधिक लोगों के चेहरों पर त्योरियाँ स्पष्ट दिखने लगी। आखिर एक कूटनीतिज्ञ इतने महत्वपूर्ण पद को कैसे संभालेगा? डॉक्टर एस जयशंकर निस्संदेह कई वर्षों तक एक राजनयिक के रूप में उपयोगी रहे, पर कूटनीति और राजनीति का कैसा संजोग?
कहते हैं, एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है, और सुब्रह्मण्यम जयशंकर पर हो रहे इस संदेह के पीछे एक नहीं, बल्कि दो दो कूटनीतिज्ञों के कारनामे शामिल थे। आज इन्ही में से एक कूटनीतिज्ञ की चर्चा होगी, जिन्होंने अपने कारनामों से न केवल राष्ट्रीय, अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को इतना शर्मसार किया, जिसके पीछे भारतीय कूटनीतिज्ञों के राजनीतिक कौशल तक पर प्रश्नचिन्ह लग गया। यह कोई और नहीं, कांग्रेस के बड़बोल राजनीतिज्ञ और भाजपा के दूसरे अनाधिकारिक ‘स्टार प्रचारक’ मणिशंकर अय्यर हैं।
10 अप्रैल 1941 को अविभाजित भारत के लाहौर में जन्मे मणिशंकर अय्यर एक सम्पन्न परिवार से संबंध रखते थे। इनके पिता एक धनाढ्य चार्टर्ड अकाउंटेंट थे, जिनकी मृत्यु 12 वर्ष की आयु में एक वायु दुर्घटना में हुई। इनकी शिक्षा दीक्षा देहरादून के सबसे सम्पन्न विद्यालयों, जैसे Welham Boys School, दून स्कूल, एवं दिल्ली के सेंट स्टीफेन्स कॉलेज में हुई, और ये नेहरू गांधी परिवार के बेहद खास थे।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक एवं परास्नातक करने के पश्चात मणिशंकर अय्यर ने कूटनीति में अपना करियर बनाया, और भारतीय विदेश सेवा को अपनी सेवा दी। लेकिन इन्होंने ऐसा क्या किया जिसके कारण इनकी प्रशंसा कम, और निन्दा अधिक होती है?
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दाग की शुरुआत!
इसका प्रारंभ होता है 2006 में, जब भारत 2010 में होने वाले दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों के लिए तैयारी शुरू कर चुका था, और साथ ही साथ 2014 के एशियाई खेलों की दावेदारी के लिए भी पूरी तरह मैदान में छाती ठोंक कर खड़ा था। लेकिन समाजवाद का घोल पिए मणिशंकर अय्यर ने स्पष्ट कह दिया कि बेहतर यही होगा अगर भारत सरकार इन खेलों पर पैसा बहाने के बजाए गरीबों के लिए कुछ करे, और फलस्वरूप 2007 में दक्षिण कोरिया के इंचेओन शहर को एशियाई खेलों की मेजबानी का अवसर मिला। आज भी कई भारतीय खेल संघों के पूर्व उच्चाधिकारी मानते हैं कि यदि मणिशंकर अय्यर को किसी ने नियंत्रित किया होता, तो शायद 2014 का एशियाई खेल भी नई दिल्ली में होता।
लेकिन मणिशंकर अय्यर इससे पूर्व में भी ऐसा उजड्डपना दिखा चुके थे। जब 2004 में वे अंडमान यात्रा पर गए थे, तब विनायक दामोदर सावरकर की स्मृति में एक स्तम्भ देखकर वे बौखला गए और उसे ध्वस्त कर वहाँ पर महात्मा गांधी की स्मृति में एक कविता स्तम्भ स्थापित करने को कहा। ये वो समय था, जब बालासहेब ठाकरे जीवित थे और शिवसेना सेक्युलरिज़्म के चपेट में नहीं आई थी, और इस विवादास्पद बयान का जमकर विरोध किया, जिसके कारण तत्कालीन मनमोहन सरकार को मणिशंकर के बयान से दूरी बनानी पड़ी। अब मुलायम सिंह यादव – अमर सिंह प्रसंग पर हम जितनी कम चर्चा करें, उतना ही अच्छा।
लेकिन मणिशंकर के उस विश्वप्रसिद्ध बयान को कौन भूल सकता है, जिसका ऋणी आज भी लगभग हर छोटा बड़ा भाजपा कार्यकर्ता कहीं न कहीं होगा ही? 2014 में जब ये स्पष्ट हो चुका था कि कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव की राह आसान नहीं होगी, तो उस समय नरेंद्र मोदी के प्रभाव पर तंज कसते हुए मणिशंकर अय्यर ने कहा था, “मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि 21वीं सदी में नरेंद्र मोदी कभी देश का प्रधानमंत्री नहीं बन सकता। लेकिन अगर वो चाय बेचना चाहे, तो हम यहाँ [कांग्रेस कमेटी स्थल] प्रबंध करा सकते हैं”। फिर वो एक दिन था और एक आज का दिन, और अगर छत्तीसगढ़ को छोड़ दें, तो लगभग पूरे देश से कांग्रेस का पत्ता साफ हो चुका है, और राजस्थान में भी उसके दिन लद चुके हैं, जिसमें मणिशंकर अय्यर का विशेष योगदान रहा है।
एक तरफ अपनी कुटिलता से मोहम्मद हामिद अंसारी जैसे कूटनीतिज्ञों ने हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा पर कीचड़ उछला, तो दूसरी ओर अपने बिगड़ैल बोल और अपनी चाटुकारिता के पीछे मणिशंकर अय्यर ने अन्य भारतीय कूटनीतिज्ञों के राजनीतिक कौशल पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया, जिसका कलंक हटाना कोई सरल कार्य नहीं था।
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